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________________ २२ जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना जितना गुणनफल प्राप्त हो उतने समयों का एक उद्धार पल्योपम माना गया है। यह गुणनफल राशि उद्धार पल्य कही गई है। और फिर अद्धा पस्य=(उद्धारपल्य राशि: असंख्यात वर्षों के समयों की राशि) जितना गुणनफल प्राप्त हो उतने समयों का एक अद्धा पल्योपम माना गया है और इस गुणनफल राशि को अद्धा पल्य माना गया है। इसे पल्य भी कहा गया है। इसके आगे १० कोडाकोड़ी व्यवहार पल्योपम-१ व्यवहार सागरोपम १. कोड़ाकोड़ी उद्धार पल्योपम=१ उद्धार सागरोपम १० कोड़ाकोड़ी अदा पल्योपम-१ अद्धा सागरोपम (गा. १. १३१) अब सच्यंगुलादि का प्रमाण निकालने के लिये अर्द्धच्छेद का उपयोग किया है। यह रीति गणन को अत्यन्त सरल कर देती है। छेदागणित का' प्रचुर उपयोग नवीं सदी के वीरसेनाचर्य द्वारा धवला टोका में हुआ है। आजकल की संकेतना में यदि किसी राशि य (x) के अर्द्धच्छेद प्राप्त करना हो तो य के अर्द्धच्छेद - छे.य अथवा Log,x होंगे। वास्तव में किसी संख्या के अर्द्धच्छेद उस संख्या के बराबर होते हैं जितने बार कि हम उसका अर्द्धन कर सकें। उदाहरणार्थ, यदि हम २ = य लें तो य के अर्द्धच्छेद अ होंगे। यदि अद्धापल्य के अद्धच्छेद Log,P से दर्शाया जाय, (जहां P अद्धापस्य है) तो जगश्रेणी = [ घनांगुल ( LogsP/असंख्यात ) __ और सूयंगुल = [P ( Log.P) इस तरह से प्राप्त सूच्यंगुल का प्रतीक पहिले की भांति २ और बगश्रेणी का प्रतीक एक आदी रेखा (-) दिया है। जगश्रेणा का मान इस सूत्र से निकाला जा सकता है, पर प्रश्न उठता है कि १जैनाचार्यों के द्वारा उपयोग में लाये गये छेदागणित को यदि आजकल की Logarithms (Gk : logos = reckoning, arithmos = number) की गणित का सर्वप्रथम और कुछ दृष्टियों से सदृश रूप कहा जाय तो गलत न होगा। इस गणित के दो स्वतंत्र आविष्कारक माने जाते हैंएक तो स्काटलैंड के बेरन नेपियर (१५५०-१६१७) और दूसरे प्रेग देश के जे. बी (१५५२१६३२)। इस गणित के आविष्कार के विषय में गणित इतिहासकार सेनफोर्ड का मत है, “The discovery of logarithms, on the other hand, has long been thought to have been independent of contemporary work, and it has been characterised as standing 'isolated, breaking in upon human thought abruptly without borrowing from the work of other intelleots or following known lines of mathematioal thought." -A short history of mathematios, P. 193. २ आब की संकेतना में यदि बेरन नेपियर के अनुसार n के Logarithm के प्रमाण को दर्शाया जाय तो वह 10 Loge (10'.n-1) होगा । यहाँ, प्रोफेसर प्लेफेअर के शब्दों में यह अभिव्यञ्जना स्पष्टतर हो जावेगी। __ "The numbers which indicate (in the Arithmetical Progression) the places of the terms of the Geometrical Progression are called by Napier, the logarithm of those terms."-Bulletin of Calcutta Mathematioal Society vol. VI.1914-16. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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