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________________ - १२. ६४ ] बारसमो उदेसो [ २३९ अपशोच गुनेश' वहा भविषणं संगुणं तदो किच्चा । इच्छोनहिदीकाणं इच्चवर्ण होइ णायखं ॥ ५५ दीवोवहिपरिमाणं विरलेवूणं तु सावरूवाणि । भट्टद्धं अट्ठद्धं दाऊणे य तेसु रुवेसु ॥ ५६ अष्णोष्णब्भस्थेण य रूऊणेण य तिरूवभजिदेण । मादिषणं संगुणिदे सम्बधणं होदि बोद्धव ॥ ५७ ते पुम्वुको रूवा दुगुणित्ता विलिदेसु रूवेसु । दो दो रूवं दादु अण्णोष्णगुणेण लद्रेण ॥ ५८ रूवर्णिता तिरूवभजिदेण लद्धसंखेण । भादिधणं संगुणिदे तह चैव य होदि सव्वधणं ॥ ५९ माणुसखेतद्दिद्धा सेसेोवहिदीवरूव विरलित्ता । करणं काऊण वदो' चंदा होइ सम्वाणं ॥ ६० तह ते शेष ये रूत्रा दुगुणित्ता विरलिहूण करणेणें । सो चेव होदि रासी दीवसमुद्देसु चंदाणं ॥ ६१ एवं होदिसि पुणो रज्जुच्छेदा छरूवपरिक्षीणा | जंबूदीवस्स तहा छेदविहीणं तदो किच्च ॥ ६२ रज्जूछेदविसे । दुगुणित्ता तह य दोखेँ पासेसु । विरलिता ते पुणो दो दो दाऊण रुबेर्सु ॥ ६३ भण्णोष्णगुणेण वहा दोसु वि पासेसु जादरासीणं । ताण पमाणं वोच्छं समासदो भागमबलेण ॥ ६४ इच्छित समुद्र [ एक कम] उससे आदिधनको गुणित करके प्राप्त राशि प्रमाण या द्वीपका इच्छित धन् होता है, ऐसा जानना चाहिये (विशेष जानने के लिये देखिये षट्खंडागम पु. १. १५९ ) ।। ५४-५५ ।। द्वीप समुद्दों प्रमाण सत्र अंकोंका विरलन कर और उन अंकों के ऊपर आठके आधे चार चार अंकों को देकर परस्पर गुणा करनेपर जो राशि प्राप्त हो उसमेंसे एक कम करके शेषमें तीनका भाग दे । फिर लब्ध राशिसे आदिधनको गुणित करनेपर सब धनका प्रमाण होता है, ऐसा जानना चाहिये ॥ ५६-५७ ॥ पूर्वोक्त उन अंकों को दुगुणे कर विरलित करे, फिर उन अंकों के ऊपर दो दो अंक देकर परस्पर गुणित करनेपर जो लब्ध हो उसमेंसे एक कम करके शेषमें तीनका भाग दे। इस प्रकार से जो संख्या प्राप्त हो उससे आदिधनको गुणित करनेपर सर्वधनका प्रमाण प्राप्त होता है ॥ ५८५९ ॥ मनुष्य क्षेत्रके बाह्य भागमें स्थित शेष समुद्रों एवं द्वीप के अंकोंका विरलन कर करण (?) करनेपर सब चन्द्रोंका [ प्रमाण ] होता है ॥ ६० ॥ तथा करणके द्वारा उन्हीं अंकोंको दुगुणे कर विरक्ति करके द्वीप समुद्रों में चन्द्रोंकी वही राशि होती है ॥ ६१ ॥ इस प्रकार राजु के जितने अर्धच्छेद हैं उनमें से छह अंकों को तथा जम्बूद्वीप के अर्धच्छेदों को भी कम करके राजु के अर्धच्छेदविशेषों को दुगुने कर व दोनों पार्श्वे में विरहित करके तथा उन अंकों के ऊपर दो दो अंकों को देकर परस्पर गुणा करनेपर जो दोनों पार्श्वों में राशियां उत्पन्न होती हैं उनका प्रमाण संक्षेपसे आगमानुसार कहते हैं ।। ६२-६४ ॥ उभय पार्श्व में चौसठसे माजित जो राजु निष्पन्न 1 डश अण्णोणगुणेन, प ब अण्णेन गुणन. २ क श णायव्वा. अदुवा असं दाहण ४ प व वायव्या. ५ उश पुम्वतो. ६ व विद्वीण. शो. ९ उ श वह ते वय. १० उ विरलिदून करणेना, प व विरलहण ११. दि. १२ डा छेदविदूनं तो विवा. १३ क विम्रसो ते १६ सा बाऊन तेषु रूवे. Jain Education International For Private & Personal Use Only ३ क अ अद्धं दादूण, प्रव • उश बहिद सोसोवहि. ८ उ करणेण, श विरभिदून करणेणा. १४ प व दुग्रणिता दो. १५ क्र www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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