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जंबूदीवपण्णी
[ १२. ६५
चदुसद्विक्खभजिदं उभये पासेसु' रज्जुनिप्पण्णं' । सो चैव दु णायवो' सेडिस्त असंलभागोति ॥ ६५ सेढिस्स सत्तभागो' 'चउसट्टीलक्खजेोयणविभत्तो' । एवं होवूण ठिदा रासीणं छेदना जे र्यु ॥ ६६ सम्वाणि जोयणाणि य रासीणं भागद्दाररूंवाणि । दंबंगुळाणि य पुणो कायध्वं तह पयतेणं ॥ ६७ छप्पण्णा बेष्णिसदीं सूचीअंगुल करितु घेत्तूनं" । उभये पासेसु वहीं छेदाणं रासिमझादो ॥ ६८ सेटी इवंति सा संखेज्जी मंगुला हवे छेदा । वामे दाहिणपाले निद्दिट्ठा सम्बदरिसीहिं ॥ ६९ अंसो सगुणेण य छेदा छेदेण चेर्वे संगुणिदे । छेदंसणं दि" उप्पण्णाणं तु परिमाणं ॥ ७० पण्णा च सहस्सा पंचैव सयौं तदेव छत्तीसा । पदरंगुहाणि जादा संखेज्जगुणैर्ण तच्छेद ॥ ७१
सादु समुप्पर्ण जगपदरं तह में होइ निहिं" । भवसेसे जे वियप्पा ते संखेदेणं च योष्छामि ॥ ७९ जो उप्पण्णो रासी जोइसदेवाण सो समुद्दिट्ठो । संखेज्जदिमे भागे भवणाणि हवंति णायध्वा ॥ ०३ सम्वे विवेदिनिवहा सब्वे बहुभवणमंडिया रम्मा । सब्वे तोरणपउरा सध्वे सुरसुंदरीछण्णा ॥ ७४ नाणामणिरयणमया जिणभवणविहूसिया मणभिरामा | जोदिसगणाण जिलया निरिट्ठा सम्वदरिसीहिं ॥ ०५
है उसे ही श्रेणिका असंख्यातवां भाग जानना चाहिये ॥ ६५ ॥ श्रोणके सातवें भागको चौंसठ लाखसे विभक्त करे, ऐसा होकर स्थित जो राशियों के अर्धच्छेद हैं, तथा राशियोंके मागहार रूप जो सब योजन हैं, प्रयत्नपूर्वक उनके दण्ड एवं अंगुल करना चाहिये ॥ ६६-६७ ॥ तथा उभय पार्श्वे में अर्धच्छेदों की राशिके मध्य में से दो सौ छप्पन अंगुल करके ग्रहण करना चाहिये ॥ ६८ ॥ वाम व दाहिने पार्श्वमें अंश श्रेणि होते हैं तथा संख्यात भंगुल छेद होते हैं, ऐसा सर्वदर्शियों द्वारा निर्दिष्ट किया गया है ।। ६९ ।। अंशोंको अंशोंसे तथा छेदों को छेदोंसे गुणित करनेपर उत्पन्न छेदों व अंशोंका प्रमाण निर्दिष्ट किया गया है ॥ ७० ॥ संख्येयगुणसे वे छेद पैंसठ हजार पांच सौ छत्तीस प्रतरांगुळ होते हैं तथा अंशोंसे जगप्रतर उत्पन्न होता है, ऐसा निर्दिष्ट किया गया है । अवशेष जो और विकल्प हैं उनका संक्षेपसे कथन करते हैं ।। ७१-७२ ॥ जो राशि उत्पन्न होती है वह ज्योतिषी देवोंका प्रमाण कहा गया है। संख्यातवें भागमें उनके भवन होते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ ७३ ॥ ज्योतिषी देवसमूहके सत्र ही भवन सर्वदर्शियों द्वारा वेदी समूह से सहित, सब ही बहुत भवनोंसे मण्डित, रमणीय, सब ही तोरणोंसे प्रचुर, सब ही देवांगनाओंसे परिपूर्ण, नाना मणियों एवं रत्नों के परिणाम रूप, जिनभवन से विभूषित तथा मनोहर निर्दिष्ट किये गये हैं ।। ७४-७५ ॥ संक्षेपसे निर्दिष्ट किये गये ज्योतिषियोंके
१ क उमयो फासे, प ब उभयपासेस. २ प ब रजुणिपणं ३ उ श णायब्वा ४ क यसंखमागो. ५ उ श भागा, व भाग. ६ उ श जोयणेहि य विमत्ता, पब जोयणेविमत्तो. ७ प व तद्विदा. ८ क सखी छेदणा जे दु, प ब राखीणं कदना जे दु, श राखीणं ताण पमाण वोच्छं. ९ प या रासोएं भागहार, ब य रासाएँ तागहार. १० प ब बेदिसदा. ११ उ घेचणा, श व्वेतुंगा १२ उताह, श ताहा. १३ रा हवंति असंखेज्जा, १४ उ रा असो अंगुणिणे य छेदं छेदे च्छेद. १५ उ दिठ्ठा, श णिद्दिद्वा. १६ प ब परिमाणा. १७ प ब पंचसया. १८ उश बदा संखिज्जगुणेण १९ उ ते च्छेदा, प ब से छेदा २० उश या. २१ श निविट्टा. २१ उा अविसेस, १३ ला वे संोवेण बाच्छामि.
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