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________________ २३८ जबूदीवपणची - [१२.५ पदुस्तर चदुसदी बधिणं तह य होह पकया। समकरण काणं वडिषण ता य घेत्तव्य' । ५. बहीण मज्मदे गुणिदे तह स्वहीणवकएण । वळयाणं सम्वाणं बधिर्ण होह गायम्बा ॥ ५.. दीयोबहीण पर्व सम्वाण तह य होदि णियमेण | मूलुत्तररासीण मेलवर्ण तह य कायम्बा ।। ५२ एवं मेलविदे पुण वलयाणं जे धणाणि' सम्वाणि । चदुगुणधदुगुणचंदा दीवसमुसु होति ॥५॥ वीबोवहीण सेवा विरलेवूण तु स्वपरिहीणं । पदुरो चदुरो य वहा वादूर्ण तेसु स्वेसु ॥ ५४ ॥१९॥ तथा चारको आदि लेकर जो वलयोंके उत्तरोत्तर चार चार चन्द्रोंकी वृद्धि हुई है, यह उनका वृद्धिधन है । इस वृद्धिधनको समकरण (संकलन ) करके ग्रहण करना चाहिये ।। ५०॥ विशेषार्थ- गाथा ४८ के उदाहरणमें उत्तरधन लाने का एक प्रकार बतलाया जा चुका है। इसी उत्तरधनको प्राप्त करनेका यहां अन्य प्रकार बतलाया जा रहा है। यथा- प्रत्येक दीप अथवा समुद्रके जितने वलय हैं उनमेंसे चूंकि प्रथम वलयको छोड़कर शेष सब वलयोंमें यथाक्रमसे उत्तरोत्तर ४-४ अंककी वृद्धि हुई है, अतएव गच्छ (क्लयसंख्या) मेसे एक अंक कम कर शेष संख्याका संकलन करके उसे ४ (वृद्धिप्रमाण) से गुणा करना चाहिये । इस प्रकार जो राशि प्राप्त होगी वह विवक्षित द्वीप या समुद्रके वलयोंका उत्तरधन होगा। संकलनके लानेका सामान्य नियम यह है कि १ अंकको आदि लेकर उत्तरोत्तर १-१ अधिक क्रमसे जितने अंकोंका संकलन लाना इष्ट है उनमेंसे अन्तिम अंक १ अंक और मिलाकर उससे उक्त अन्तिम अंकके अर्थ मागको गुणित करनेसे उतने अंकोंका संकलन (जोड़) प्राप्त हो जाता है। जैसे १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, इनका संकलन-[३x (९+१)= १५]। अब यहां उपर्युक्त नियमके अनुसार उदाहरणके रूपमें पुष्करयर समुद्र सम्बन्धी वलयोंका उत्तरभने निकाला जाता है-- इस समुद्रमें वलयोंका प्रमाण ३२ है। अत एव उनका उत्तरधन इस प्रकार होगा- २२.१४३२ = १९६ यह १ अंकसे कम गन्छ (३२) का संकलन हमा ४९६ x ४ = १९८१ उत्तरधन । . वृद्धियोंके मध्य चन्द्र ( मध्यधन ) को एक कम वलयप्रमाणसे [गुणित करके पुनः उसे चौसठसे 7 गुणित करनेपर जो प्राप्त हो वह सब वलयोंका वृद्धिधन जानना चाहिये (देखिये गाया ४८ का उदाहरण) ॥ ५१ ॥ इसी प्रकार नियमसे सब द्वीप-समुद्रोंका वृद्धिधन शेताहै। तथा मूल व उत्तर राशियोंका योग करना चाहिये ॥५२॥ इस प्रकार उन दोनों राशियोंके मिलानेपर वलयोंके जो सब धन हों वे आगेके द्वीप-समुद्रोंमें [अपने अपने मध्यधनसे अधिक) चौगुने चौगुने चन्द्र होते है ॥ ५३ ॥ एक कम द्वीप-समुद्रोंके अंकोंका विरलन कर तथा उन अंकोंके ऊपर चार चार अंक देकर परस्पर गुणा करनेपर जो प्राप्त हो 10 बळयान वर्ण. १ शमवं. ३ उ वट्ठीण, श मट्ठीण. ४ उशबणाणि. ५४श बर्ष, पर पान. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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