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-११. ३१३ ]
एक्कारसमो उद्देसो
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पच्छिदिसाए गंतुं णामेण य जलजलं ति' विक्खायं । उत्तर दिलाए' गंतुं दिग्वविमाणं रयणचितं ॥ ३०४ एदेसु लोगवरला वसंति सामाणिया य अवरेसु । परिहंदा इंदरस दु चदुसु चि दिसासु णायज्वा ॥ ३०५ तुल्ल बल रूव विक्कमपयावजुत्ता हवंति ते सध्वे । सामानिया वि' देवा मणुसरिसा लोग वालाणं ॥। २०६४ अध्चन्भुदइ त्रिजुदा अच्च भुदरूव कित्तिसंजुत्ता | अध्चन्भुदेण णेया उबवण्णां ते सवेणं पि ॥ ३०७ उत्तरसेढीए पुणो गंतूणं जोयणा भसंखेज्जो । ईसाणस्स दु सीमा दंडाय दबेदिया दिग्वा ॥ ३०८ ततो दुपभादो विय महारसमम्मि वरविमाणम्मि | ईसांणेति विमाणं ईसा निंदो तहिं बसह ॥ ३०९: तस्स वि योगपाला सत्ताणीया य तिण्णि परिसाओ । महदाइ डीए जुदो सोधम्मादो विसेसेण ॥ ३१० चुलसीदिं च सहस्सा तस्स वि सामाणियाण देवाणं । बलरिद्धिसुहपभावो सोहम्मादो विसेसेण ॥ ३११ विदिडिवियतुल्हा सामाणिय कोगपाल देवेहिं । माणाइस्सरिएणे य अधिभो हंदो दु णायम्वो ॥ ३१२ सिरिमदि" शहा खुसीमा वसुमित्त वसुंधरा रा य धुवसेगी । अन्यसेणा य सुसेना अट्ठमिया से पभासंधी ॥११३
रूप,
जाकर जल-जल ( जलप्रभ, नामसे विख्यात और उत्तर दिशामें जाकर रत्नचित ( वल्गु ) दिव्य विमान है || ३०४ || इन विमानोंमें लोकपाल देव रहते हैं तथा इतर विमानों में सामानिक देव रहते हैं । इन्द्र के प्रतीन्द्र चारों ही दिशाओंमें स्थित जानना चाहिये ॥ ३०५ ॥ वे सब तुल्य बल, विक्रम एवं प्रतापसे युक्त होते हैं । सामानिक देव भी लोकपालोंके सदृश होते हैं ॥ ३०६ ॥ अत्यन्त आश्चर्यजनक ऋद्धिसे युक्त, तथा अत्यन्त आश्चर्यजनक रूप एवं कीर्तिसे संयुक्त वे देव अतिशय आश्चर्यकारक तपसे ही उत्पन्न होते हैं; ऐसा जानना चाहिये ॥ ३०७ ॥ पुनः उत्तर श्रेणिमें असंख्यात योजन जाकर ईशान कल्पकी सीमा स्वरूप दण्डके समान आयत दिव्य वेदिका स्थित है ॥ ३०८ || उस प्रभ इन्द्रकी [ उत्तर दिशामें स्थित बत्तीस श्रेणिबद्ध में ] अठारहवें ईशान नामक श्रेष्ठ श्रेणिबद्ध विमानमें ईशानेन्द्र निवास करता है ॥ ३०९ ॥ उस ईशान इन्द्रके भी लोकपाल, सात अनीक और पारिषद देव हैं । सौधर्म इन्द्रकी अपेक्षा यह विशेषतया महा ऋद्धिसे संयुक्त है ।। ३१० ॥ उसके भी सामानिक देवोंका प्रमाण चौरासी हजार है । यह सौधर्म इन्द्रकी अपेक्षा विशेषतया बल, ऋद्धि, सुख एवं प्रभावसे युक्त है ॥ ३११ ॥ सामानिक व लोकपाल देव धृति, ऋद्धि और विषयों में इन्द्रके समान होते हैं । इन्द्र केवल इनसे आज्ञा व ऐश्वर्यमें अधिक जानना चाहिये || ३१२ ॥ श्रीमती, सुसीमा, वसुमित्रा, वसुन्धरा, ध्रुवसेना, जयसेना, सुसेना और आठवीं प्रभासंती ( प्रभावती ), ये आठ ईशानेन्द्रकी
१ उ गतूणामेळ यजर जलं ति, क गंतुं णामेण जयंजल चि, प मंतुं णामेण जलजल चि, ब गंतु णामेण जल चि, श गं तूणामेव य जल्जलं ति २ उ रा उत्तर दिसाएण. ३ क प ब रयणचित्तं. ४ उ श एदे सलोगपाळा, क देवा सलोयपाला, पब देवसुलोगपाला ५ प ब सामाणियाणि ६ उ प ब शमणुसरिसा ७ उ श उववण्णो. ८ क प व पुण. ९ शयसंखेज्जा, प ब असंखेज्जं. १० प ब वेदियाबुद्धा, क वेंदिया बद्धा. ११ क ईसरिएण, प ब इसरिएण १२ श सिरिमादि. १३ उ श य हुवसेणा, क य जुवसेणा पब या जुनसेण १४ उ अट्ठमिया से पभासेति क प ब अट्ठमिया से पमासंति, श अट्ठमिया भासेति. जं. दी. २८.
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