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________________ २१८ जंबूदीवपण्णची [११. ३११ सोकस देविसहस्सा पत्तेयं महिलियाण परिवारा। वररूवसालिणीमो मच्छरयपेरछणिज्जामो ॥३१४ को एदाण मणुस्सो अणतरूवाण चेव देवीणं । चण्णेज स्वविभवं हड्डिविलासं च सोखं च ॥ ३१५ मणिरयणहेमजालाउलेसु सिरिदामगंधकलिदेसु । सुत्रिणिम्मलदेहधरा रमति कालं तहिं सुचिरं ॥१॥ ईसाणविमाणादो गंतूणं जोयणा असंखेज्जा । पश्छिमदिसासु दिव' होदि भवरं तु सम्बदोभई ॥३१७ जंबूणयरयदमए णाणामणिकिरणविप्फुरंतम्मि । जत्य जमो सि महप्पा पठमिल्लयलोगपालो सो' ॥३॥ सोधम्मे जह सोमो तह सो वि जमो अणोवमसिरीभो। सामाणियग्गमहिसीहि चेय ताई चाहिं संजुत्तो ॥ इंदविमाणादु पुणो गंतूणं जायणा असंखज्जा | अस्थि सुभद्द त्ति तहिं देवविमाणं रदणचितं ॥ ३२० जत्थ कुबेरो त्ति सुरो पडिइंदो इंदतेयेसुरसारो । सो बिदियलोगपालो भच्छेरयभोगपरिभोगो" ॥ ३२१ ईसाजिदपुरादो गंतूणं जोयणी असंखिज्जा । पुम्वेण वरविमाण समिदं फिर णाम गामेण ॥ ३२९ तस्थ अणावमसोभो" मुत्तामणिहेमजाल कालदम्मि५ । वरुणो त्ति लोगपालो तिहुषणविक्खादकित्तीभो॥ ............... अग्रदेवियां हैं ॥ ३१३ ॥ इन महिलाओं से प्रत्येकके उत्तम रूपसे शोभायमान और साश्चर्य दर्शनीय सोलह हजार परिवारदेवियां होती हैं ॥ ३१ ॥ अनन्त सौन्दर्यवाली इन देवियों के रूप-वैभव, ऋद्धि, विलास व सौख्यका वर्णन कौन मनुष्य कर सकता है ! अर्थात् कोई भी नहीं कर सकता ॥ ३१५ ॥ मणि, रत्न व सुवर्णके समूहसे व्याप्त तथा सुन्दर मालाओंके गन्धसे सहित वहां ( विमानोंमें ) शुचि एवं निर्मल देहको धारण करनेवाली वे देवियां चिर काल तक रमण करती हैं ॥ ३१६ ॥ ईशान विमानसे असंख्यात योजन जाकर पश्चिम दिशामें सर्वतोभद्र नामक दूसरा दिव्य विमान है, सुवर्ण व रजतसे निर्मित तथा नाना मणियोंकी किरणोंसे प्रकाशमान जिस विमानमें यम नामक महात्मा निवास करता है। वह उक्त इन्द्रका प्रथम लोकपाल है ॥ ३१७-३१८ ॥ सौधर्म विमानमें जिस प्रकार सोम लोकपाल रहता है उसी प्रकार अनुपम शोभावाला वह यम लोकपाल भी सामानिकों और चार अप्रदेवियोंसे संयुक्त होकर वहां रहता है ॥ ३१९॥ पुनः इन्द्रकविमानसे असंख्यात योजन जाकर वहां रत्नोंसे विचित्र सुभद्र नामक देवविमान है, जहां इन्द्रके समान तेजस्वी श्रेष्ठ देवोंसे सहित और आश्चर्यजनक भोग-परिमोगोंसे संयुक्त वह कुबेर नामक द्वितीय लोकपाल प्रतीन्द्र रहता है ॥३२०-३२१ ।। ईशानेन्द्रपुरसे असंख्यात योजन जाकर पूर्वमें समित ( अमित ) नामक उत्तम विमान है ॥ ३२२ ॥ मुक्ता, मणि एवं हेमजालसे कलित उस विमानमें, जिसकी कीर्ति तीनों लोकोंमें विख्यात है ऐसा अनुपम शोभावाला वरुण नामक लोकपाल निवास करता है उप बश वाणिज्ज. २ उपबश विसालं. ३ उ दिसास दिटुं, श दिसासमाविडं. ४ उ यवर. सवदीमई, पब यवरसवदोमव्वं. ५ क से. ६ पब सोधम्मो, श धम्मो. ७क जओ, पब जउ. ८क पबचव तह. ९ उश इंदतोय. १०क पडिइंदतिलयसमासारो. "उपबश परिमोगो. १२ उश बोयण. १३ उकिर णामेण. १४ उश अणोक्सोमे. १५उ शकलदम्मि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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