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एक्कारसमो उद्देसो
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जं जस्स जोगमहरिह उच्चं णिज्वं च मासणं दिग्वं । तं तस्स भूमिभागं णाऊण तर्हि तर्हि देदि ॥ २८५ वसभाणीयस्स ता महदरओ सो दु णाम दामड्डी' । तस्स वि य सत्त कच्छा देवाणं वसभरुषाणं ॥ २८६ पवणंजओ सि णामेण तस्स वरतुरगमद्ददरो देवो । सप्ताह कच्छाहिं समं तुरयसहस्सा बहुं देइ ॥ २८७
रावणो ति णामेण महदरो होदि सो गयाणीओ । विउरुग्वदि साहस्सा मत्तगयंदाण गाणं ॥ २८४ उत्तुंग मुसलता पभिण्णकरडा महागुलगुहिंसा | सप्ताहं कच्छाहिं ठिदा कुंजररूवेहि ते दिग्वा ॥ २८९ अवरो वि रहाणीमो" महदरको मादलि त्ति विक्खादो | सत्ता कच्छाहिं ठिदो देई' रहाणं सदसहस्सा ॥ १९० णामेण भरिजसो गंधवाणीय महदरो अवशे । सप्तहि कच्छाहिं समं गायदि दिग्वं महुरसई | १९१ हाणीयमद्ददरी जीजसे लक्खणपगन्भा । सतहिं कच्छाहिं समं चदि हं बहुवियप्पं ॥ २९२ गायंति य णच्वंति य अभिरामंति य भणोवमसुहेहिं । अमरे य अमरबहुओ इंदियविस समेहिं ॥ 1 इंदरस दु को विहवं उपभोगं तस्स तह य परिभोगं । वण्णेऊण समत्यो सोहग्गं स्वसारं च ॥ २९४
महाई (बहुमूल्य) ऊंचा व नीचा दिव्य आसन होता है वह उसके योग्य भूमिभागको जानकर वह वहां उसे देता है || २८५ || वहाँ वृषभानीकका महत्तर वह दामर्द्धि (दामयष्टि ) नामक देव है । उसके भी वृषभरूप देवोंकी सात कक्षायें होती हैं ॥ २८६ ॥ उस अश्वसेनाका महत्तर पवनञ्जय नामक देव होता है । वह अपनी सात कक्षाओं के साथ अनेक सहस्र अबको देता है ॥२८७॥ गजानीकका महत्तर वह ऐरावत नामक देव होता है । वह अनेक सहस्र मत्त गजेन्द्रोंकी विक्रिया करता है ।। २८८ ॥ मूसलके समान उन्नत दांतों सहित, मदको झरानेवाले गण्डस्थलोंसे युक्त, और गुल-गुल महा गर्जना करनेवाले वे दिव्य देव हाथी रूप सात कक्षाओंके साथ स्थित रहते हैं || २८९ || मातळी नामसे विख्यात दूसरा रथ अनीकका महत्तर भी सात कक्षाओंसे स्थित होकर लाखों रथोंको देता है ॥ २९० ॥ अरिष्टयश नामसे प्रसिद्ध दूसरा गन्धर्व अनीकका महत्तर सात कक्षाओंके साथ मधुर स्वरसे दिव्य गान करता है || २९१ ॥ नाव्यलक्षणमें समर्थ नीलंजसा नामक नर्तक सैन्यकी महत्तरी सात कक्षाओंके साथ बहुत प्रकारका अभिनय करती है ॥ २९२ ॥ वे देवांगनायें गाती हैं, नाचती हैं, तथा अनुपम सुखकारक सब इन्द्रियविषयोंसे देवोंको रमाती हैं ॥ २९३ ॥ उस इन्द्रके विभव, उपभोग, परिभोग, सौभाग्य तथा श्रेष्ठ रूप का वर्णन करनेके लिये कौन समर्थ है ! अर्थात् कोई नहीं है ||२९|| इस प्रकार महाऋद्धिका
१ उश उच्च चि. २ उ व श दामट्टी ३ क व दिव्वानं. ४ क एरामणो. ५ उश विवरम्बदि ६ सहरसा. ७ क णामाणं, व जागाणं • उश उच्छंग, व उकंग ९ क ब पमिष्ण करा. १० क ब रहानीदो. ११ उधा देहि १२ क णीक असा.
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