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जंबूदीवपणाची
[ ११.२७५
पायाइपीडेवसदा रहतुरयगद दिग्वगंधब्वा । णट्टाणीयाण तहाँ नीकंजस महदरी जत्थे ॥ १७५ वाणामेण तर्हि पायाइबलस्सें मद्ददरो भो | सण्णद्ध बद्धकवभो सप्ताह कच्छाहि परिकिण्णो ॥ २०६ पडलिकच्छाएँ चुलसीदी होति सदसहस्साई । बिदियाए वहुगुणा संणद्धा सुरवरा होति ॥ २०७ एवं दुगुणा दुगुणा जाव गया होंति सप्तमीक छ । सतहं भणियाणं एसेव कमो मुणेयम्वो ॥ १७८ उज्जुदत्था सब्वे णाणाविहगहियपहरणाभरणौ । संणबद्धकवया भारक्खा सुरवरिंदस्स ॥ १७९ बाहिरपरिसा या मइरूंर्दा णिहुरा पयंडा य । बैठा उज्जुदसत्यां अवसारं तत्थ बोसंति ॥ १८० बेतलदागद्दियकरा मज्झिम आरूढवेसधारी" य । कंचुकदमेवस्था अंतेउरमहदरा बहु ॥ २८१ वग्वरिचिलादिसुंज्जा कम्मतियदा सिचेडिवग्गो य । अंतेउराभियोगा करंति णाणाविधे वेसे ॥ १८१ पीढाणीयस् त महदरओ सो हरिति णायध्वो । उच्चासना सहस्सा सपायपीठा तहिं देदि ॥ १८३ तस्स वि य ससकेंच्छा बोद्धब्बा होति भाणुपुथ्वीय । कच्छासु सो विश्चिदि" भूमिभागं बियाणंतो ॥ १८४
और दिव्य गन्धर्व ये सात अनीक हैं, तथा जहां नर्तकी अनीकोको महत्तरी नीलंजसा है ॥ २७५ ॥ युद्धमें उद्युक्त होकर कवचको बधिनेवाला व सात कक्षाओंसे वेष्टित वायु नामक देव उक्त सेनाओसे पदाति सेनाका महत्तर जानना चाहिये || २७६ ।। प्रथम कक्षामें चौरासी लाख [ हजार ] और द्वितीय कक्षा में युद्धार्थ तत्पर रहनेवाले उत्तम देव उनसे दुगुणे होते हैं || २७७ || इस प्रकार सातवीं कक्षा तक उत्तरोत्तर दुगुणे द्रुगुणे देव हैं। सात अनीक का यही क्रम जानना चाहिये ॥ २७८ ॥ शस्त्र धारण करनेमें उद्युक्त व नाना प्रकारके शस्त्रों रूपी आमरण को ग्रहण करनेवाले तथा युद्धमें तत्पर होकर कवचको बांधे हुए वे सब सैनिक देव इन्द्रके रक्षक हैं ।। २७९ ।। बाह्य पारिषद देव अत्यन्त स्थूल, निष्ठुर, क्रोधी, अविवाहित और शस्त्रोंसे उयुक्त जानना चाहिये । वे
'असर' (दूर हटो ) की घोषणा करते हैं ॥ २८०॥ वेत रूपी लताको हाथमें ग्रहण करनेवाले, आरूढ वेषके धारक तथा कंचुकी (अन्तःपुरका द्वारपाल ) की पोषाक पहने हुए मध्यम [ पारिषद ] अन्तःपुरके महत्तर होते हैं ॥ २८९ ॥ वर्वरी, किराती, कुब्जा, कर्मान्तिका, दासी और नयनाना प्रकार के वेषमें अन्तःपुरके अभियोगको करता है ॥ २८२ ॥ तथा महान नामक देव जानना चाहिये । वह वहां पादपीठ सहित हजारों उच्च द है, दशसकी मी क्रमशः सात कक्षायें जानना चाहिये । वह उन कक्षाओं में भूमिके विभागको जानता हुआ उसे विभाजित करता है ॥ २८४ ॥ जो जिसके योग्य
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पायलट का पांचवी : जच्छा, व जक, राजन. ४ काल बद्री प्रमिति 0776 परणावरण. उस उक्त ११.१ विवाद. १४ क तहिं. १५ क स बिय सच, बसन्त बिसत, (शप्रतावस स्व
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