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एक्कारसमो उद्देस
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सुकुमारकोमलंगी मंदकसाया फलासिणो' जीवा । जुवलाजुवलुप्पण्णा चउत्थभत्तेण पारिति ॥ १८८ ते सव्वे मरिऊणं णियमा गच्छति तह य सुरलोयं । ण य अण्णत्थुप्पत्ती णिद्दिद्वा सव्वदरिसीहिं ॥ १८९ जंबूधादगिपोक्खरदीवाणं ती भोगभूमीसु । जे जादा णरतिरिया नियमा ते जंति सुरलोयं ॥ १९० भवणवइवाणविंतरजोइसभवणेसुं ताण उप्पत्ती । सम्मत्तेण य जुत्ता सोधम्मादीसु जायंति ॥ १९१ जे सेसा णरतिरिया धम्मं काऊण सुद्धभावेण । ते कालगदा संता विमाणवासेसु जायंति ॥ १९२ णवणउदिजोयणाई उड्टं गंतूण तह सहस्साई । तो चूलियाए उवरिं होइ विमाणं उडुविमाणं ॥ १९३ मणिरयणभित्तिचित्तं कंवर्णवरवइरसोहियपदेसं । माणुसखेत्तपमाणं होइ विमाणं उडुविमाणं ॥ १९४ एक्कं तु उडुविमाणं माणुसखेत्तेण होदि सममाणं । अवसेसा दु विमाणा लोगादो जाव लोगंतं ॥ १९५ तं सुचिम्लिकोमल तोरणवरमंगलुस्स विद सोहं"। पासादवलभिविरईये उन्भासतं दसदिसाओ ॥ १९६ णिच्चं मणोभिरामं फुरंतमणि किरण सोहसंभारं । कंचणरयणमहामणिल्हसंतपासाद संघायं' 13
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अंगोंवाले, मंदकषायी, फलभोजी एवं युगल-युगल रूपसे उत्पन्न होकर चतुर्थ भक्तसे भोजन करते हैं; वे सब मरकर नियमसे सुरलोकको जाते हैं । उनकी उत्पत्ति सर्वदर्शियों द्वारा अन्यत्र नहीं निर्दिष्ट की गई है ॥ १८६ - १८९ ॥ जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और पुष्कर द्वीपोंकी तीन ( उत्तम, मध्यम व जघन्य ) या तीस भोगभूमियों में जो मनुष्य व तिर्यंच उत्पन्न होते हैं वे नियमसे सुरलोकको जाते हैं । [ इनमें जो सम्यक्त्व से रहित होते हैं ] उनकी उत्पत्ति भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके भवनों में है । किन्तु जो सम्यक्त्वसे युक्त हैं वे सौधर्मादिकों में उत्पन्न होते हैं ॥। १९०-१९९१ ॥ शेष जो मनुष्य व तियंच शुद्ध भावसे धर्मको करके मरणको प्राप्त होते हैं वे विमानवासी देवोंमें उत्पन्न होते हैं ॥ १९२ ॥ निन्यानच हजार योजन ऊपर जाकर मेरुकी चूलिकाके ऊपर ऋतु विमान स्थित है ॥ १९३ ॥ मणिमय एवं रत्नमय भित्तियोंसे विचित्र और सुवर्ण व उत्तम वज्रसे शोभित प्रदेशवाला ह ऋतुविमान मानुषक्षेत्र के प्रमाण अर्थात् पैंतालीस लाख योजन विस्तृत है ॥ १९४ ॥ एक ऋतु विमान तो मानुषक्षेत्रके बराबर है, शेष विमान लोकसे लोकके अन्त तक हैं ॥ १९५ ॥ वह विमान पवित्र, निर्मल, कोमल व श्रेष्ठ तोरणरूप मंगलोत्सवसे शोभायमान; प्रासाद व वलभियोंसे विरचित, दशों दिशाओंको प्रकाशित करनेवाला, नित्य मनोहर, प्रकाशमान मणिकिरणोंकी शोभाके संभारसे संयुक्त; सुवर्ण, रत्नों व महामणियोंसे चमकते हुए प्रासादसमूहसे सहित;
१ उश कोवलंगा २ उ फलोसिनो, क फलसिणा, ब कलासिणो, श फलोसणो. ३ क ब भुंजंति, शपरिति ४ उ श जो. ५ जोइसिठाणेसु. ६ क ब गवणवइ जोयणाणं, श णवणउदिजोयणइं. ७ क तो सहसाई, ब तो सहइसाई, श सहसहस्ताई. ८ ब भत्तिचित्तं कंचण, शमित्तिकंचण. ९ क सोहेयपदेसे, ब सोहियपदे से १० उब शतं सुविणिम्मल, ११ क मंगलस्स किदसोहं, व मंगलुस्सकिद सोहं. १२ उश वलइविरहिय १३ श लसंतपासादसच्याए.
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