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________________ १८८] जंबूदीवपण्णती [ ११.२९ दोई मेरुण तहा दोहं इसुगारंपवदाणं तु । धादगिदुमाण दोण्हं दोण्ह वरसामलिदुमाणं ॥ २९ भट्ट जमगाणं गयदंताण तहेव अटुंण् । दिसगयवरगामाणं सोलसवरतुंगसेलाणं ॥ ३. चवीसविमंगाणं अट्ठावीसामहाणदीणं तु । वक्खारणगाण तहा बत्तीसह विचित्तवण्णाण ॥ ३॥ पचीसदहवराणं बारसकुलपम्वदाण तुंगाणं । अट्टण्हं णायम्वा गाभिगिरीणामसेलाणं ॥ ३२ महसढिकुमुदसणिभवेदवणगाण धादगीसंडे । छपणं कम्मखिदीर्ण छप्पण्णसदाण तह य कुंडाणं ॥ ३३ भादगिसंडस्स हा चवीसविहंगकुंडाणं । भडसट्टिकणयसंणिमरिसभगिरीणामसेलाणं ॥१४ सम्वाण पम्वदाणं चदुसदवरकणयणामधेयाणे । जह वण्णणा दु पुष्वं णिरवयवा सह य कायध्वा ॥ ३५ सम्वे वि वेदिसहिया सम्वे वणसंडमंडिया दिव्वा । सवे तोरणणिवहा जिभवणविहूसिया दिव्वा ॥ ३६ भरवीससयणतीणं बारसवरभोगपउरभूमीणं । छक्खंडाण य णेया अडसट्टा भेदभिषणाणं ॥ ३७ अबूदीवस्स पुणो जह पुष्वं वण्णणा समुहिट्ठा । धादगिसंडस्स तहा णिरवयवा वण्णणा होइ ॥ ३८ अंबूदीवो भणिदों जावदियं चावि खेत्तगणिदेण । तावदियं च सदं खलु चोदालं' धादगीसंडे ॥ १९ एकारसहतीसा इगिदालं तह य हेदि णवणउदा । सगवण्णा छच्च सदा एगट्टा खेत्तगणिदेण ॥ ४० दो धातकी वृक्ष, दो शाल्मलि वृक्ष, आठ यमक, उसी प्रकार आठ गजदन्त, सोलह उन्नत उत्तम दिग्गजेन्द्र नामक शैल, चौबीस विभंगानदियां, अट्ठाईस महानदियां, विचित्र वर्णवाले बत्तीस वक्षारपर्वत, बत्तीस उत्तम द्रह, उन्नत बारइ कुलपर्वत, आठ नाभिगिरि नामक शैल, कुमुद ( सफेद कमल ) के सदृश अड़सठ वैताढ्य पर्वत, छह कर्मभूमियां ( २ भरत, २ ऐरावत, २ विदेह); गंगा, सिन्धु, रक्ता और रक्तोदाके एक सौ छप्पन कुण्ड; चौबीस विभंगाकुण्ड, सुवर्ण सदृश अड़सठ ऋषभगिरि नामक शैल तथा चार सौ उत्तम कांचन नामक पर्वत, इन सबका पूर्वमें जैसा वर्णन किया गया है वैसा ही पूर्ण रूपसे यहाँ भी करना चाहिये ॥ २९-३५ ।। सब ही [ उपर्युक्त मेरुपर्वतादि ] वेदियों से सहित, वनखण्डोंसे मण्डित, दिव्य, सब तोरणसमूहसे सहित और जिनभवनोंसे विभूषित हैं ॥ ३६ ॥ चौंसठ विजयोंकी एक सौ अठाईस नदियों, बारह श्रेष्ठ भेगप्रचुर भूमियों ( २ हैमवत, २ हरि, २ देवकुरु, २ उत्तरकुरु, २ रम्यक २ हैरण्यक्त) और अड़सठ मेसेि भिन्न छह (६८४६) खण्डोंका जैसा वर्णन जम्बूद्वीपमें किया गया है वैसा ही वर्णन पूर्णतया धातकीखण्डमें भी है ॥ ३७-३८ ।। जम्बूद्वीपके क्षेत्रफलका जितना प्रमाण कहा गया है उतने क्षेत्रफलकी अपेक्षा धातकीखण्डके एक सौ चवालीस खण्ड होते हैं ॥ ३९ ॥ धातकीखण्डका क्षेत्रफल ग्यारह, अड़तीस, इकतालीस, निन्यानबै, सत्तावन और छह सौ इकसठ (११३८११९९५७६६१) योजन प्रमाण है ॥ ४०॥ एक, तीन, १उ सुराग, श इसुराण. २ उश दिसगयवराणमाणं. ३ क ब वनीसविचित्तविण्णाणं. ४ ब अंडसद्धि, शअमसहित ५उश सदाणि, ६ उश जंबूदीवेहि णिदो, ७क सदं चोदालं, सदं खलु चउदालं. ८ उ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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