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-११. २८]
एक्कारसमो उद्देसो
मूलम्हि दु विक्खंभो पंचाणउदि च जोयणसदाणि । परिरये तीससहस्सा बादालीसा य किंचूणा ॥ २० धरणितले विक्खंभों' चदुणउदी हति जोयणसदाणि | परिरय ऊणातीसं सत्त य पणुवीस साहीया ॥२॥ पंचेव जोयणसया उड्ढे गंतूण गंदणं होइ । पंचसदा विस्थिण्णा पढमा सेढी दुचुल्लाण ॥ २२ तेणउदि पण्णासा बाहिरविक्खंभ परिरमो तस्स | उणातीससहस्सा पंच य सत्तहि साहीया ॥ २३ तेसीदि पण्णासा अंतोविखंभपरिरभो तस्स । छव्वीसं च सहस्सा चदुसद पंचेव साहीया ॥ २४ पणवणं च सहस्सा पंचव सदाणि उवरि गंतूणं । सोमणसं णाम वणं णंदणवणसरिसविस्थारं ॥ २५ अट्ठत्तीससदाई बाहिरविक्खंभरिरमो तस्स । बारस' चेव सहस्सा सत्तरसा हॉति किंचूणा ॥ २६ भट्ठावीससदाई अंतोविक्खंभ० परिरमो तस्स | अट्ठासीदिसदाईचदुवण्णा हॉति साधीया ॥ २७ अट्ठावीससहस्सा उवरि गंतूण पंडगं होदि । सेसवियप्पा उवरि तुल्ला सम्वेसि मेरूणं ॥ २८
उदाहरण-ऊपरसे ८४००० यो. नीचे ( भूमितलपर ) आकर क्षुद्र मेरुओंका विस्तार ८४००० ’ १० + १००० = ९४०० यो.।
इन मेरुओं का विस्तार मूलमें पंचानबै सौ (९५००) योजन प्रमाण है। इनकी परिधि तीस हजार ब्यालीस (३००४२) योजनसे कुछ कम है ।। २० । उक्त मेहओंका विस्तार पृथिवीतलपर चौरानबै सौ (९४००) योजन प्रमाण और परिधि उनतीस [ हजार ) सात सौ पच्चीस (२९७२५) योजनसे कुछ अधिक है ॥२१॥ मेरुके ऊपर पांच सौ योजन जाकर पांच सौ योजन विस्तीर्ण नन्दन वन है। यह क्षुद्र मेरुओंकी प्रथम श्रेणी है ॥ २२ ॥ नन्दन वनके समीप क्षुद् मेरुओंका बाह्य विष्कम्भ तेरानबै सौ पचास ( ९३५० ) योजन और इसकी परिधि उनतीस हजार पांच सौ सड़सठ (२९५६७) योजनसे कुछ अधिक है ॥ २३ ॥ नन्दन वनके समीप क्षुद्र मेरुओंका अभ्यन्तर विष्कम्भ तेरासी सौ पचास ( ८३५०) योजन और इसकी परिधि छब्बीस हजार चार सौ पांच ( २६४०५) योजनसे कुछ अधिक है ॥ २४ ॥ नन्दन वनसे पचवन हजार पांच सौ योजन ऊपर जाकर उक्त वनके समान विस्तारवाला सौमनस नामक वन स्थित है ॥ २५ ॥ सौमनस वनके समीपमें क्षुद मेरुओंका बाह्य विस्तार अडतीस सौ ( ३८०० ) योजन और उसकी परिधि बारह हजार सत्तरह (१२०१७) योजनसे कुछ कम है ॥ २६ ॥ सौमनस वन के समीपमें उक्त मेरुओंका अभ्यन्तर विष्कम्भ अट्ठाईस सौ ( २८०० ) योजन और उसकी परिधि अठासी सौ चौवन (८८५१) योजनसे कुछ अधिक है ॥ २७॥ सौमनस वनसे अट्ठाईस हजार योजन ऊपर जाकर पाण्डुक वन स्थित है। शेष ऊपरके विकल्प सब मेरुओं के समान हैं ॥ २८ ॥ धातकीखण्डमें स्थित दो मेरु, दो इष्वाकार पर्वत,
१श जोयणसया. २श णाहिय. ३ उश क्यालीसा.. ४ उ विवखंभे श विश्वं मो. ५ उश घुस्लाणं.. उ तोणउदि, श तेणउदि. ७ श तेसीदि पणासीय परिरउ, ८ उश सदायं वाहिरणविक्खम, ९श अरस. १.उश अंते विखंभे, बस विक्वंम."उशचवणा. ११३श सम्वेस.
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