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[एक्कारसमो उद्देसो]
मशिजिणिदं पणमिय महंतवरणाणदसणपई। दीवीवहिणहकोए' सुरकोयं संपवक्खामि ॥ धादगिसंडो दीयो उदर्षि लवणोदयं परिक्खियदि । चत्तारिसयसहस्सा विस्थिण्णो चक्कवालहि ॥ दक्खिणउत्तरभागेसु तस्स दो दक्खिणुत्तरायामा । दीवस्स दु उसुगारा' पादगिदीवं पविमर्जति ॥ णिसधस्सुण्छेहसमा पुट्ठा कालोदयं च लवणं च । बाहिरपेरंतेसु य खुरप्परूवा गिरी हॉति ॥. . ते मंकमुहा खलु सहस्समेयं च होति विस्थिण्णा । सयमेयं उम्बेहो मायामो दक्खिणुत्तरदो ॥५ सधरा सधरो चउग्गुणो होइ धादगीसंरे । वंसादो दिय वंसो चउग्गुणो होइ बोम्यो। जो जस्स परिणिही खलु णदी वहो चावि महव बंपधरो। उम्वेधुन्देहसमा दुगुणा दुगुणा य विस्थारी. गरविवरसंठियाणि य धादगिसंरम्हि हनि साणि । अंतो संखित्ताई बाहिरपासम्हि दाई ॥ धादगिरे दीवे सम्वस्थ समा हवंति सधरा | भरहेसु रेवदे" खलु विस्थिण्णा दीहवेदना ॥
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महान् व उत्तम ज्ञान-दर्शनरूपी प्रदीपसे युक्त मल्लि जिनेन्द्रको प्रणाम करके द्वीप, उदधि, अधोलोक और सुरलोककी प्ररूपणा करते हैं ॥१॥धातकीखण्ड द्वीप लवण समुद्रको वेष्टित करता है । यह द्वीप वलयाकारसे चार लाख योजन विस्तृत है ॥ २ ॥ उस धातकीखण्ड द्वीपके दक्षिण-उत्तर भागे।में दक्षिण-उत्तर आयत ऐसे दो इष्वाकार पर्वत हैं, जो धातकीखण्ड दीपका विभाग करते हैं ॥ ३ ॥ निषध पर्वतके समान उत्सेधवाले तथा लवण व कालोद समुद्रसे स्पृष्ट ऐसे वे इष्वाकार पर्वत बाह्य भागमें क्षुरप्रके आकार तथा अभ्यन्तर मागमें अंकमुख हैं । इनका विस्तार एक हजार योजन, उद्वेध एक सौ योजन और आयाम दक्षिण-उत्तरमें [ धातकीखण्डके विस्तार प्रमाण ) है || ४-५ ॥ धातकीखण्ड द्वीपमें कुलपर्वतसे कुलपर्वत और क्षेत्रसे क्षेत्र चौगुणे जानना चाहिये [ जैसे भरतक्षेत्रका अभ्यन्तर विस्तार ६६१४३२२ यो. है, इससे चौगुणा ( २६४५८३९३ यो.) हैमवतक्षेत्रका अभ्यन्तर विस्तार है। ॥ ६॥ इस द्वीपमें स्थित नदी, द्रह और कुलपर्वत, इनमें जो जिसका प्रतिनिधि है उसका उद्वेध [ जम्बूद्वीपके समान; परन्तु विस्तार [ जम्बूद्वीपकी अपेक्षा ) दूना दूना है ।। ७॥ धातकखण्डमें स्थित क्षेत्र अरविवर (पहियेके मध्यमें लगी हुई लकड़ियों के बीचके छेद ) के आकार होते हुए अभ्यन्तर भागमें संक्षिप्त और बाह्य पार्श्वमें विस्तीर्ण हैं ॥ ८ ॥ धातकीखण्ड द्वीपमें वर्षधर पर्वत सर्वत्र समान हैं। यहां भरत और ऐरावत क्षेत्रोंमें विस्तीर्ण दीर्घ वैताब्य पर्वत स्थित हैं ॥९॥
उश अबकोए, व अवलोय. २ उ श मुरलोए. ३ उक उसगारा. ४ उश पुम्वा. ५३ श पेरतेस व खुरप्परूवा गिदी हाति, कं परतेस य खुरप्परूबा गिरि होर, बरतेस व खुरप्परवा निरि होय. ६उश तो..उशबंसबरो. ८ उश बोधबा. ९श विही..कबवावि..बशनिस्वाये. १२ असो सिचाई, गोलिवाई, श अतोसंबिताइ. १३कमरहे य खेदे.
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