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जंबूदीवपण्णत्ती
[ १०.९६ --
लवणसमुद्दस्स तथा वज्जमया' वेदिया समुद्दिट्ठा | अद्वेव य उग्विद्धा कंचणमणिरयणसंछष्णा ॥ ९७ मूले बारह जायण मज्झे अद्वेष जोयणा गया । सिहरे चत्तारि हवे वित्थिण्णा वेदिया दिग्वा ॥ ९८ बेजोयणअवगाहा धयचामरमंडिया मणभिरामा । सुरसुंदरिसंजुत्ता सुरभवणसमाउला रम्मा ॥ ९९ धुम्वतधयवढाया जिणभवणविहूसिया परमरम्मा । परिवेढिऊण' उवहिं समेत दो संठिया दिग्वा ॥ १०० चदुगो उरसंजुत्ता चोइसवरतोरणेहि रमणीया । वरकप्परुक्खपउरा णाणातरुसंकुला रम्मा ॥ १०१ अट्ठद्ध कम्मर हियं भट्ठमहापाढिदेरसंजुत्तं । वरपडमर्णदिणमियं भरतित्थयरं णमंसामि ॥ १०२
॥ इय जंबूदीवपण्णत्तिसंग लवणसमुद्रवावण्णणो णाम दसमो उद्देसो समतो ॥ १० ॥
गुणित करना चाहिये | जैसे पुष्कर द्वीपका विस्तार - १००००० x (२×२ × २×२ ) = १६००००० यो. ] ।। ९६ ॥ तथा लवण समुद्रकी सुवर्ण, मणि एवं रत्नोंसे व्याप्त आठ योजन ऊंची वज्रमय वेदिका कही गई है ॥ ९७ ॥ यह दिव्य वेदिका मूलमें बारह, मध्य में आठ और शिखरपर चार योजन विस्तीर्ण है, ऐसा जानना चाहिये || ९८ || दो योजन अवगाहसे युक्त, ध्वजाओं व चामरोंसे मण्डित, मनको अभिराम सुरसुन्दरियों से संयुक्त, रम्य, देवभवनों से व्याप्त, फहराती हुई ध्वजापताकाओंसे सहित और जिनभवन से विभूषित ऐसी वह अतिशय रमणीय दिव्य वेदिका लवण समुद्रको सब ओरसे वेष्टित करके स्थित है ॥ ९९-१००॥ उक्त रमणीय वेदिका चार गोपुरोंसे संयुक्त, चौदह उत्तम तोरणों से रमणीय, श्रेष्ठ कलावृक्षों की प्रचुरता से सहित और नाना वृक्षीसे व्याप्त है ॥ १०१ ॥ आठके आधे अर्थात् चार कर्मोंसे रहित, आठ महाप्रातिहायोंसे संयुक्त और श्रेष्ठ पद्मनन्दिसे नमस्कृत ऐसे अर तीर्थंकरको मैं नमस्कार करता हूं ॥ १०२ ॥
|| इस प्रकार जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसंग्रह में लवणसमुद्रव्यावर्णन नामक दशवां उद्देश समाप्त हुआ ॥ १० ॥
१ उ श जाम ताम. २३ श सय सहस्सं, ब सहसहस्सा ३ उश वब्जमय ४ उ परवेदिओण, श वरिवेट्ठिओण.
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