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________________ -१०. ९६] दसमो उहेसो । १८३ सूची विखंभूणा विक्खंभचदुगुणेण संगुणिदं । दीवपमाणं खंडा ते होति गायग्वा ।। ८९ जंबूदीवो दीवो जावरिलो होइ खेत्तगणिदेण । तावदियाणि दु लवणे खेतेण हवंति' चउवीसा ॥ ९० दुगुणम्हि दु विक्खंभे' दोसु वि पासेसु सोहियस्स कंदी। साम्सस्स दुचदुभागों वाग्गदगुणिदं च दसगुणं गणिदं ॥९१ विर्खभकदीय कदी दसगुण' करणी य होदि चदुभजिदं । वासद्धकदीय कदी दसगुण करणीय गणितपदं । एगट्ट णव य सत्त य तिय छं छक्क पंच व य छ इस यजोयणसंखा भणिया कवणसमुम्हि गणितपदं ॥ एगणवसत्तछच्चदुदुगतिगपंचतियसत्तछहसुण । जोयणसंखा भणिदा उभयोरकि होइ गणितपदं ॥ ९४ दीवस्स समुहस्स य विक्खंभं चदुहिए संगुणं णियमा । तिहि सदसहस्स उणा सा सूची सव्वकरणेसु॥ जस्थिच्छसि विक्खभं लवणादी जाव ताव दुगरासी । अण्णोणहि य गुणिदे पुणरवि गुणिदं सदसहस्सा ॥ विष्कम्भसे गुणित करके पुनः [एक लाखके वर्गसे विभक्त करनेपर ) जम्बूद्वीपके प्रमाण खण्ड होते हैं {(५०००००-२०००००) (२०००००४४) १०००००२ = २४ } ॥ ८९॥ क्षेत्रफल की अपेक्षा जितना जम्बूद्वीप है उतने क्षेत्रके प्रमाणसे लवण समुद्रके चौबीस खण्ड होते हैं । ९०॥ दोनों ही पाश्वों ( बाह्य सूची) मेसे दुगुणे व्यासको घटाकर शेषक वर्गको शोध्य राशिक चतुर्थ भागके वर्गसे गुणित कर पुनः दशगुणा करनेपर प्राप्त राशिके वर्गमूल प्रमाण [वलयाकार क्षेत्रका ) क्षेत्रफल होता है (:) ॥९१ ॥ विष्कम्भके वर्गके वर्गको दशगुणा कर उसका वर्गमूल निकालनेपर जो प्राप्त हो उसमें चारका भाम देनेसे [वृत्त क्षेत्रका ] क्षेत्रफल होता है । अथवा, अर्थ व्यासके वर्गके वर्गको दशगुणा करके उसका वर्गमूल निकालनेपर ( वृत्तक्षेत्रका ) क्षेत्रफल निकलता है ॥ ९२ ॥ अंकक्रमसे एक, आठ, नौ, सात, तीन, छह, छह, पांच, ना, छह और दश ( १८९७३६६५९६१० ) इतने योजन प्रमाण लवण समुद्रका क्षेत्रफल कहा गया है ॥९३ ॥ एक, नौ, सात, छह, चार, दो तीन, पांच, तीन, सात, छह और शून्य, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या (१९७६४२३५३७६०) उत्पन्न हो उतने योजन प्रमाण जम्बूद्वीप और लवण समुद्र इन दोनोंका सम्मिलित क्षेत्रफल कहा गया है ॥९४॥ द्वीप अथवा समुद्र के विष्कम्भको चारसे गुणित करके जो प्राप्त हो उसमेंसे तीन लाख कम कर देनेपर शेष रहा नियमसे सब करणों में उसकी सूची ( बाह्य ) का प्रमाणं होता है ॥९५॥ लवण समुद्रको आदि लेकर जिस किसी भी द्वीप अथवा समुद्र के विस्तारके जाननेकी इच्छा हो उतने दो अंकोंको रखकर परस्परमें गुणा करनेपर जो राशि प्राप्त हो उसे एक लाखसे फिरसे उश हवे. २ क ब विक्खंभो. ३ ब सोहस्स. १ब चदुमागे. ५ष गणिदे. ६ उश दसदसगुण. ७उ सटिकदीयकदी, श वासटिकदीयकदी. ८ उ श तियच्छ प्पिंच णव य सट्ठसयं, ब तिय छ छप्पंण्णव य छड्स य. ९उ एग णवच्छ सत्तच्चदु, ब पग णव सत्त कव्वदु, श एग णव सत णश्चदु. १. उश तिसयतच्छहसुण्णं. ११ब चदुह. १२उश तट्टिदसहस्सजीणा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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