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जंबूदीवपणती
[.१०.०९
कम्मोदएण जीवा सम्मत्तं विराहिऊणे ते सम्वे । उप्पज्जेति वराया कुमाणुसा लवणदीवेसु ॥ ७९ गब्भादो ते मणुगा णिस्सरिऊणं सुद्देण वरजुअला । उणवण्णदिणेहिं पुणो सुजोग्वणा होति णायन्त्रा ॥ ८० बेधणुसहस्सतुंगा मंदकसाया महंतलायण्णा । सुकुमारपाणिपादा णीलुप्पलसुरद्दिगंधड्डा ॥ ८१ वरपंचवण्णजुत्ता णिम्मलदेहा अणेगसंठाणा । कप्पतरुजनिय भोगा पलिदोवमभांडगा सब्बे ॥ ८२ लवणोव हिदीवेसु य भात्तूर्णं कुमाणुसाण वरभोगं । मरिऊण सुहेण पुणो णरणारिगणा य जे तेसु ॥ ८.३ उप्पज्जंति महत्या मणिकंचणमंडिदेसु दिव्वेसु' । सुरसुंदरिपठरेसु य' ते सध्ये देवलोएसु ॥ ८४ भवणवद्दवाणविंतर जोइसभवणेसु ताण उत्पत्ती । ण य अष्णरथुप्पत्ती बोद्धब्वा होइ नियमेण ॥ ८५ सम्मर्द्दसणरयणं जेहिं सुगद्दियं नरेहिं णारीहिं' । ते सब्वे मरिऊणं सोहम्माईसु जायेति ॥ ८६ पण्णारसयसहस्सा एगालीदा सयं च उगुदालें । किंचिविसेसेणूणा होइ य लवणोवद्दिप्परित्री ॥ ८७ बाहिरसूचीवग्गो अब्भंतर सूचिकागपरिद्दीणो । जंबूदीवपमाणा खंडा ते होंति णायव्वा ॥ ८८
वे सब जीव वेचारे इन लवण समुद्रके द्वीपोंमें कुमानुष उत्पन्न होते हैं ॥ ७९ ॥ वे मनुष्य सुखपूर्वक गर्भसे उत्तम युगलके रूपमें निकल कर उनंचास दिनमें यौवन युक्त हो जाते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ ८० ॥ वे सब दो हजार धनुष ऊंचे, मंदकषायी, अतिशय सौन्दर्यसे परिपूर्ण, सुकुमार हाथ-पैरोंसे सहित, नीलोत्पलके समान सुगन्ध गन्वसे व्याप्त, उत्तम पांच वर्णोंसे युक्त निर्मल देवाले, अनेक आकारसे सहित, कल्पवृक्षोंसे उत्पन्न भोगों से युक्त और पल्योपम प्रमाण आयुसे सहित होते हैं ।। ८१-८२ ॥ जो नर-नारीगण लवणोदधिके उन द्वीपोंमें कुमानुषों के उत्तम भोगको भोगकर सुखसे मरते हैं वे सब महात्मा मणियों व सुवर्ण से मण्डित तथा प्रचुर देवाङ्गनाओंसे संयुक्त ऐसे दिव्य देवलोक में उत्पन्न होते हैं ॥ ८३८४ ॥ उनकी उत्पत्ति नियमसे भवनपति, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके भवनों में होती है, अन्यत्र नहीं होती; ऐसा जानना चाहिये ॥ ८५ ।। जिन नर-नारियोंने सम्यग्दर्शनरूपी रत्नको 1. ग्रहण कर लिया है वे सब मरकर सौधर्मादिक स्त्रों में उत्पन्न होते हैं ॥ ८६ ॥ लवणोदधिकी परिधि पन्द्रह लाख इक्यासी [ हजार ] एक सौ उनतालीस ( १५८११३९ ) योजन से -कुछ कम है ॥ ८७ ॥ अभ्यन्तर सूचीके वर्गसे रहित बाह्य सूची के वर्गको [ वर्गात्मक जम्बूद्वीप के विष्कम्मसे विभक्त करनेपर ] जम्बूद्वीप के प्रमाण खण्ड होते हैं {(५०००००१ १००.०००१ )÷ १०००००१ = २४} ॥ ८८ ॥ विष्कम्भसे रहित] [बाह्य ] सूचीको चौगुणे
११ व श. समत विराहिओण, क सम्मते, विराहिऊण, ब सम्मताविराहिऊण. १ व मंडिस सम्मे. ३ ब रेय शदिवे य. ४ उ रा संजमदंसण. ५ श रयणं रेहि नारीहिं. ५ उश युगासीदा. स. वयं च जगदाळा, चाएगासीदो सय च उगुदाकं. ६ उ लबणे। यही परिही, व कळवणाव ही परिभ्रा, श वसोयही परिहीणो.
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