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-१०.७८]
दसमो उद्देसो थूलसुहुमादिचारं णालोचह जे गुरूण पासम्मि । ते कालगदा संता कुमाणुसा होति णायम्वा ॥ ६७ समायणियमवंदण गुरुणा सहियं तु जे ण कुव्वंति । ते कालगदा संता कुमाणुसा होति णायचा ॥ ६८ रिसिसंघं छंडित्ता अच्छई जइ को वि तह य एगागी । ते कालगदा संता कुमाणुसा होति णायम्वा ॥ ६९ सम्धेहि जणहि समं कलहं कुवंति जे हु पाविट्ठा । ते कालगदा संता कुमाणुसा होति णायब्वा ॥ .. भाहारसण्णपठरा लोभकसाएण मोहिया जे दु । ते कालगदा संता कुमाणुसा हॉति णायम्वा ॥1 धरिऊण सिंगरूवं पावं कुम्वंति जे दु पाविट्ठा । ते कालगदा संता कुमाणुसा हॉति णायब्वा ॥ ७२ ण करंति जे हु भत्ती भरहताणं तहेव साहूणं । ते कालगदा संता कुमाणुसा होति णायन्वा ॥ ७३ घाउब्वण्णे संघे वच्छल्लं तह य जे ग कुन्वति । ते कालगदा संता कुमाणुसा होंति णायम्वा ॥ ७४ सिद्धंतं छोडत्ता जोइसमंतादिएसु जे मूढा । ते कालगदा संता कुमाणुसा होति णायन्वा ॥ ७५ धणधण्णसुवण्णादिं संजदरूवम्हि जे दु गिण्हति । ते काल गदा संता कुमाणुसा हॉति णायम्वा ।। ७६ कण्णाविवाहमादि संजदरूवम्हि जेणुमोदंति । ते कालगदा संता कुमाणुसा होति णायग्वा ॥ . मोणं परिग्चहत्त। मुंजंति पुणो वि जे दु पाविट्ठा । ते कालगदा संता कुमाणुसा होति णायम्वा ॥ ७८
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एवं सात इन तीन गारवोंसे तथा मैथुन संज्ञासे सोहित हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥६६॥ जो गुरुओंके पासमें स्थूल व सूक्ष्मादि क्रियाओंकी आलोचना नहीं करते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ६७ ॥ जो गुरुके साथ स्वाध्याय, नियम व वन्दना नहीं करते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ६८॥ यदि कोई ऋषिसंघको छोड़कर एकाकी रहते हैं. तो वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ६९ ॥ जो पापी सब जनोंके साथ कलह करते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ७० ॥ जो आहार संज्ञाकी प्रचुरतासे संयुक्त और लोभ कषायसें मोहित हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ७१ ॥ जो पापिष्ठ [जिन ) लिंग रूपको धारण कर पाप करते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ७२ ॥ जो अरहंतों तथा साधुओंकी मक्ति नहीं करते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ७३ ॥ जो चातुर्वर्ण्य संघमें वात्सल्य भावको नहीं करते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ७४ ॥ जो सिद्धान्तको छोड़कर ज्योतिष एवं मंत्रादिकोंमें मुग्ध होते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ७५ ॥ जो संयत रूपमें धन, धान्य एवं सुवर्णादिको ग्रहण करते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ।। ७६ ॥ जो संयत अवस्थामें कन्याविवाहादिकी अनुमोदना करते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ७० ॥ जो पापिष्ठ मौनको छोड़कर भोजन करते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ७८॥ कर्मोदयसे सम्यक्त्वकी विराधना करके
उक व श जो. २ श थूलसज्झाय. ३ श सीरीसंवच्छता. ४ उ श बुवंति सददं जे पावा, ब कुव्यंति सदद जे पावा. ५उ छरिता, कविता, बत्तिा . ६ उश जोदुस. ७ उ ब शमंतादिएहिं.
उश सुवण्णादि संजमरूवेहिकब सुषण्णादी, संजमरूवेहि. उधण्णाविवाहमादि संजमरूबेहि, ब कण्णाविवाहमाहिं संजदरूवेहि, श धण्णाविवाहमदि संजमरूवेहि.
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