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१८०] जंबूदीवपण्णत्ती
। १०.५६ - हेमगिरिस्स य पुव्वावरम्हि मच्छमुहकालवदणा य । तह दक्षिणवेदड्ढे मेसमुहा' गोमुहा होति ॥ ५६ मेहमुहा विज्जुमुहा सिहरिस्स गिरिस्स पुश्वभवरम्हि । भादसणहस्थिमुहा उत्तरवेदढणगसीसे ॥ ५. एगोरुगा गुहाए भूमि जेमंति सेसगा य दुमे । जेमंति' पुप्फफळभोयणाणि' पल्लाउगा सम्वे ॥ ५८ भविकाहलोहहीणा मंदकसाया पियंवदा धीरा । धम्माभासं किच्चा मिच्छत्तकलंकनोसेण ॥ ५९ धम्मफलं मग्गंता कायकिलेसं करित्तु गरुयं पि । भण्णाणतिमिरछण्णा पंचग्गित परमधारं ॥ ६०
तेण तवेण तहा मरिउणं अंतरेसु दीवसु । उप्पज्जति महप्पा कुमाणुसा भोगसंपण्णा ॥६१ सम्मईसणहीणा काऊणं बहुविहं तवोकम्मं । उप्पज्जति यधण्णा कुमाणुसा स्वपरिहीणा ! ६२ अदिमाणगग्विदा जे साहूणं पुण करंति अवमाण । ते कालगदा संता कुमाणुसा हॉति णायव्वा ॥ ६३ संजमतवोधणाणं जिग्गंथाणं भसंति जे पावा । ते कालगदा संती कुमाणुसा होति णायम्वा ॥ ६४ संजमतवेण हीणा मायाचारी हवंति जे पावा । ते कालगदा संता कुमाणुसा हति णायवा ॥ ५५ रसइदिवसादगारवमेहुणसणेहि मोहिदा जे दु । ते कालगदा संता कुमाणुसा होति णायया ॥ ६५
कपिमुख मनुष्य होते हैं ॥ ५५॥ हिमवान् पर्वतके पूर्व व पश्चिम भागमें मत्स्यमुख और काल. मुख, दक्षिण वैताढ्यके दोनों ओर मेषमुख और गोमुख, शिखरी पर्वतके पूर्व व पश्चिम भागमें मेघमुख और विद्युन्मुख, तथा उत्तर वैताढ्यक शिखरपर आदर्शमुख और हस्तिमुख मनुष्य रहते हैं ॥ ५६-५७ ।। एक ऊरुवाले कुमानुष गुफॉमें रहते हुए मिट्टीको खाते हैं, तथा शेष कुमानुष वृक्षके नीचे रहकर पुष्प व फल रूप भोजनोंको खाते हैं। इन सबकी आयु एक पल्य प्रमाण होती है ॥ ५८ ।। अधिक क्रोध व लोभसे रहित, मंदकषायी, प्रियभाषी और धीर प्राणी मिथ्यात्व रूप कलंकके दोषसे धर्मामासका सेवन करके, धर्मफल ( सुख ) को खोजते हुए भारी कायक्लेशका करके, सथा अज्ञानाधकारसे व्याप्त होते हुए अतिशय घोर पंचाग्नि तपको तपकर उस घोर तपके प्रभावसे मरकर वे प्राणी अन्तरद्वीपोंमें भोगौस सम्पन्न कुमानुष महात्मा उत्पन्न हात है ॥ ५९-६१ ॥ सम्यग्दर्शनसे हीन होकर जो बहुत प्रकारके तपश्चरणको करते हैं वे पापी सुन्दरतासे रहित होते हुए कुमानुष उत्पन्न होते हैं ॥ ६२ ॥ मानसे अत्यन्त गर्वित होकर जो साधुओंका अपमान करते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ ६३ ॥ जो पापी संयम व तपरूपी धनसे युक्त नियोको भूकते हैं, अर्थात् निन्दा करते हैं, वे मरकर कुमानुष होते हैं ॥ ६४ ॥ जो पापी संयम व तपसे हीन तथा मायाचारी होते हैं वे मरकर कुमानुष होते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥६५॥ जो रस, ऋद्धि
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उश मेंदमुहा, कमंटगृहा, ब मेहमुहा. ३ उश दुमो. ३ कब जायति. ४कब मोइणो य. ५ उप श सम्वो. ६ ब बहुयं. ७ उकब तो, ८ कब तदा. ९ श मरिऊणं वहुविई तवो कम्मेसु. १. ब तसंति. "उतक्कालगदा सत्ता, शतक्कालगदा साता. १२ उबश सत्ता.
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