________________
१४४]
जंबूदीवपण्णत्ती
[१०.९
तेलि उस्ससणेण य सिहा पवदिसम्बदोलवणे | सोकससहस्स मज्झे जोयणमई तुहमंते॥९ भवराणि य अण्णाणि य सहस्सं तम्हि सागरे । मोगाढाणि समतेण जलदो वित्यराणि य॥१. चदुसु वि दिसासु चत्तारि जेट्टयाँ मजिसमा य विदिसासु । अवरुत्तरमेव पणुवीस सयं महणा. " एगसहस्सं भटुत्तरं तु पादालेसंख विष्णेया। मुहमूलेसु सदं खलु सहस्स मोवेह गहराणं ॥॥ मुहमूले वेहो विपरहराण दसगुणं तु मनिझमया। सम्वस्थ मनिममा वि य वसगुणियमहल्लया होति ॥ णव चेव सयसहस्सा भडदालाई सहस्स छच्च सया। तेसीदिजोयणाई समधिय परिधी समुट्ठिा ॥१॥ सत्तावीससहस्सा दोण्णि य लक्खा तहेव सदरि सदं । साहियतिणि य कोसा सहतर जाण जेट्टाणे १५ एक्कं च सदसहस्सा" पंचासीदा य तेरससहस्सा । मजिसमपादालाणं तहत साहिपक्कोसं ॥ ॥
उच्छ्वाससे अर्थात् नीचेके दो त्रिभागोंके केवल वायुसे पूर्ण होनेपर लवण समुद्रके सब ओर मध्यमें सोलह हजार योजन और अन्तमें अर्ध योजन प्रमाण शिखा प्रवृत्त होती है ॥ ९॥ उस समुद्र में अन्य एक हजार जघन्य पाताल भी हैं। उनका अवगाह और मध्यम विस्तार (सी योजन) समान है (2) ॥ १०॥ चारों दिशाओंमें चार ज्येष्ठ पाताल और विदिशाओं में चार मध्यम पाताल हैं । इनसे एक एकके इस ओर तथा उस ओर एक सौ पच्चीस जघन्य पाताल स्थित हैं ॥ ११॥ पातालोंकी संख्या एक हजार आठ जानना चाहिये । इन जघन्य पातालोंका विस्तार मुखमें और मूलमें सौ योजन तथा उद्वेध एक हजार योजन प्रमाण है ११२॥ मध्यम पातालोंके मुख व मूलमें विस्तार तथा उद्वेधका प्रमाण जघन्य पातालोंकी अपेक्षा दशगुणा (१०००) है । ज्येष्ठ पाताल सर्वत्र मध्यम पातालोंकी अपेक्षा दशगुणित हैं ॥ १३ ॥ जवण समुद्रकी (मध्यम] परिधि नौ लाख अड़तालीस हजार छह सौ तेरासी योजनोंसे कुछ अधिक कही गई है ॥१॥ ज्येष्ठ पातालोंका अन्तर दो लाख सत्ताईस हजार एक सौ सत्तर योजन और तीन कोशसे कुछ अधिक जानना चाहिये (९४८६८३ - ४०००० + १ = २२७१७०३) ॥१५॥ (ज्येष्ठ] और मध्यम पातालोंका अन्तर एक लाख तेरह हजार पचासी योजन और एक कोशसे कुछ अधिक है (२२७१७०३ - १००० २= ११३०८५१) ॥१६॥
...........
१ श उस्ससमाणे सीहा वदति, ब उससेण य सिंहा पटेदि. २ उश असं मवे अंतो. ३ उ शिवराणि य बंताणिय अवराणि च अण्णाणि व. ४ क ब तहिं. ५ उश जलादी वित्वाणि य, क जलदी वित्याणिय, बलादो विस्थडा य. कजेहाया, ब भेडाया. ७ उश मनिझमाया, मज्झिमासु. ८७ अबक्त्तरमरक्कवक, ववरोत्तरमेक्केवकं, श अवरतरमक्कक्क.१.कबादाल... शब विष्णेय. " श मुलो. १२बय अबाण. १३ उश तिणि य कोसा मणिया तहत्तरं, १४ उशएवं च मयस्सा, बकब पदसहस्सा. १५ श तइतरं शोह कोसहिया.
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org