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[दसमो उहेसो]
कुंथुजिणिंद पणमिय कम्मारिकलंकपंकउम्मुक्कं । लवणसमुहविभागं वोच्छामि जहाणुपुग्वीए ।। जंबूदीवं परियदि' समंतदो लवणतोयउदधी दु । सो बेण्णिसयसहस्सा णिहिट्ठो चक्कवालेण ॥२ पुग्वेण दु पायालं वलयमुई तह य होह भवरेण । दक्खिणदिसे कदंबगजुवकसरि होइ उत्तरदो ॥३ : पंचाणउदिसहस्सा ओगाहिय लवणचक्कचालम्मि । ते खिदिविवरे जाणसु भरंजणागारठाणा ॥ मूलेसु य वदणेसु य विस्थारा दससहस्स णिहिट्ठा । भोगाढ सयसहस्सा तत्तियमेत्ता य मोसु ॥५ पायालस्स तिभागो' हवदि य तेत्तीस नोयणसहस्सा । तिण्णितया तेत्तीला एक्कतिमागेण अदिरेया ॥६ हेटिल्लम्हि तिभागे वादों उदकं तु उवरिमतिभागे । मझिल्लम्हि तिभागे जलवादो° चलाचलो तस्थ ॥ मल्लिम्हि दु भागे उप्पिरले लवणउस्सो परमो । उप्पिल्ले उवसंते भवहिदा बेल उयहिस्स" ॥ ८
कर्म-शत्रुरूपी कलंक-पंक से रहित ऐसे कुंथु जिनेन्द्रको प्रणाम करके आनुपूर्वीके अनुसार लवण समुद्रके विभागको कहते हैं ॥ १ ॥ दो लाख योजन विस्तारवाला वह लवण समुद्र वृत्ताकार होकर चारों ओरसे जम्बूद्वीपको वेष्टित करता है, ऐसा निर्दिष्ट किया गया है ॥२॥ पूर्वमें पाताल, पश्चिममें वलयमुख ( वडवामुख ), दक्षिण दिशामें कदंबक और उत्तरमें यूपकेसरी, इस प्रकार ये चार पाताल लवण समुद्र की चारों दिशाओंमें स्थित हैं ॥ ३ ॥ वलयाकार लवण समुद्र में पंचानबै हजार योजन जाकर वे पाताल राजनके आकारसे स्थित है, ऐसा जानना चाहिये ॥ १ ॥ इनका विस्तार मूलमें व मुखमें दश हजार योजन, अवगाह एक लाख योजन तथा इतना ( एक लाख यो.) ही मध्यमें विस्तार मी निर्दिष्ट किया गया है ॥ ५॥ पातालके तीन त्रिभागों से प्रत्येक त्रिभाग तेतीस हजार तीन सौ तेतीस योजन और एक तृतीय भागसे अधिक ( ३३३३३, यो.) है ॥ ६ ॥ पातालोंके अधस्तन त्रिभागमें वायु, उपरिम त्रिभागमें जल, और मध्यम त्रिभागमें चलाचल जल-वायु है ॥ ७ ॥ मध्यम त्रिमागके उत्पीड़ित होनेपर . अर्थात् उसके जलभागसे रहित होकर केवल वायुसे परिपूर्ण होनेपर लवण समुद्रका उत्कृष्ट उत्सेध होता है । उत्पीड़नके शान्त होनेपर समुद्रकी बेला अवस्थित रहती है ॥ ८॥ उनके
उश परिस्यदि. २ उ कलंवगहुवकेसरि, क कलंबुअजुगकेसरि, व कलंगजुगकेसरि, श कलंबकावकेसरि. ३ क अलजणायार, ब अलंजेणायार. ४ उ मूळेसु वि वदणेम वि, ब मूळेसु य वहणेसु य, श मूळेस वि दणेसु वि. ५ उ उग्गाय सय, व उग्गाड सय, श उग्गायण सय. उश पायालसतिमांगो, ब पायलस्स विभागे. . उ श तम्निसया. ८ उश एक्कतिमागेण अरेय, क एयतिमागेहिं अधिरेया, ब एयतिमागेय अधिरेया. ९ क तेहिं तिमागेहिं अधो वादो, बतिहि तिमागेहिं अधो वादो. १० उश जलवदो, कब जलवाद "उश उ संओ, ब उस्मउ, १२ ७ श अवढिदो चेल उवहिस्स, क अवद्विदा वेल उहियस्स.
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