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दीवपण्णत्ती
[ ९. १८९
संतकुसुममाला गंधग्वमुदिंगसहगंभीरा । वरबुबुदेहिं छण्णा किंकिणिझंकाररमणीया ॥ १८९ बज्जततरणिवहा सुरबहुणडेहि सुटेरमणीया। कालागरुगंधढा बहुकुसुमकयञ्चणसणाहा ॥ १९० बलिवदीवणिवहा कुंकुमकप्पूरगंधसंपण्णा । णाणापडायपउरा बहुकोदुगमंगलसणाहा ॥ १९१ सीहासणछत्तत्तयभामंडलचामरादिसंजुत्ता। जिणपडिमा णिहिट्ठा णाणामणिरयणपरिणामा ॥ १९२ एक्कक्के पासादे जिणपडिमा विविहरयणसंछण्णा । अट्ठसयं भट्टसयं णायम्वा होति णियमेण ॥ १९३ पंचधणुस्सयतुंगा पलियंकासमणिबद्धवरदेहा । लक्खणवंजणकलिया भंगोवंगेहि संछण्णा ॥ १९४ अटुसर्य भट्ठसयं एक्केक्कजिणिंदपडिमस्स । उवयरणा णिहिट्ठा कंचणमणिरयणकयसोहा ॥ १९५ ससुरासुरदेवगणा विज्जाहरगरुडकिंणरा जक्खा । महिमं करंति सददं जिणपडिमाणं पयत्तेण ॥ १९६ सयलावबोहसहियं संतियरं सयलदोसपरिहीणं । वरपउमणंदिणमियं संतिजिणिदं णमंसामि ॥ १९७ ॥ इय जंबूदीवपण्णत्तिसंगहे महाविदेहाहियारे अवरविदेहवण्णणो णाम णवमो उद्देसो समतो ॥९॥
उत्तम दपोंसे विभूषित, श्रेष्ठ, लटकती हुई पुष्पमालाओंसे संयुक्त, गन्धवों व मृदंगके शब्दसे गम्भीर, उत्तम बुबुदोंसे व्याप्त, किंकिणियोंके झंकारसे रमणीय, बजते हुए वादिनसमूहसे युक्त, बहुतसे नर्तक देवोंसे अतिशय रमणीय, कालागरुके गन्धसे व्याप्त, बहुत कुसुमो द्वारा की गई पूजासे सनाथ, बलि, धूप व दीपोंके समूहसे संयुक्त; कुंकुम व कपूरके गन्धसे सम्पन्न, नामा पताकाओंके प्राचुर्यसे सहित और बहुत कौतुक-मंगलोंसे सनाथ हैं ॥ १८७-१९१॥ उन जिनप्रासादोंमें सिंहासन, तीन छत्रों, भामण्डल व चामरादिसे संयुक्त ऐसी नाना रत्नों के परिणाम रूप जिनप्रतिमायें निर्दिष्ट की गई हैं ॥१९२॥ विविध रत्नोंसे व्याप्त ये जिनप्रतिमायें एक एक प्रासादमें नियमसे एक सौ आठ एक सा आठ जानना चाहिये ॥१९३॥ उक्त जिनप्रतिमायें पांच सौ धनुष ऊंची, पल्यंकासनसे युक्त उत्तम देहवाली तथा लक्षणों व व्यञ्जनोंसे युक्त अंगोपांगोंसे व्याप्त हैं ॥१९॥ एक एक जिनेन्द्रप्रतिमाके सुवर्ण, मणि व रत्नोंसे की गई शोभासे सम्पन्न एक सौ आठ एक सौ आठ उपकरण निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ १९५ ॥ सुर व असुर देवोंके समूह, विद्याधर, गरुड़, किंनर और यक्ष निरन्तर उन जिनप्रतिमाओंकी प्रयत्नपूर्वक महिमा (पूजा) करते हैं ॥ १९६ ॥ पूर्ण ज्ञानसे सहित, शान्तिकारक, समस्त दोषोंसे रहित और उत्तम पद्मनन्दिसे वन्दित ऐसे शान्ति जिनेन्द्रको मैं नमस्कार करता हूं ॥ १९७ ॥ ॥ इस प्रकार जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसंग्रहमें महाविदेहाधिकारमें अपरविदेहषर्णन नामक
___ नौवां उद्देश समाप्त हुआ ॥९॥
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उ श णदेहि मधु, क ब गदेहि सुट्ट. २ क बलिधूवणिवहा कुंकुम, श विडूसियापपरा णिवहा ऊंडम. १ उ यासदे, व पासादा, श पासवे. ४ उप श धासय.
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