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________________ -९.११४] णवमो उद्देसो धण्णड्ढगामणिवहो णणादोणामुहेहि कयसोहो । वरदीवणयरपउरो संबाहविहूसिमो रम्मो' ॥ ११४ वेदड्ढपत्रएण' य रत्तारत्तोदएहि कर्यसोहो । पोक्खरणिवाविपउरो वणसंडविहूसिमो दिध्वो ॥ १५ देसस्स तस्स या होइ जयंत त्ति' णाममो यरी । वेरुलियकणयमरगयरयणप्पासायसंछण्णा ॥११॥ घरपउमरायपायारंपरिउडा खाइएहि संजुत्ता । जासवणकुसुमसपिणभमाणितोरणभासुरा रामा ॥ ११७ सिसिरयरहारसणिमजिगिंदभवणेहि सोहिया दिव्वा । वरपंचवण्णणिम्मलपडायणिवहेहि सोहंता ॥196 पुन्वेण तदो गंतुं होई पुणो सूरपम्वदो रम्मो। णवचंपयवरवण्णो' जिणभवणविहूसिमओ तुंगो ॥१९ कणयमयवेदिणिवहीं मरगयमणितोरणेहि कयसोहो । अद्धट्टकूडसहिमो बहुभवणविहूसिमो दिवो ॥१२० भाइच्चदेवसहिलो वणसंबविहूसिमो मणमिरामो । सुरसुंदरिसंछण्णो पउमिणिसंडेहि रमणीमो ॥१२॥ पुग्वेण तदो गर्नु होइ तहा वप्पकावदी विजभो । धणधण्णरयणणिवहो गोमहिसीसमाउलो दिवो ॥ १२२ बहुकब्बडेहि रम्मो पट्टणणिवहेहि मंडिभो दिव्यो । रयणायरेहि" पुण्णो मबखेडाहि रमणीओ ॥ १२३ दोणामुहेहि छण्णो णाणागामेहि तह य कयसोहो । संवाहणयरपउरो वरदविविहूसिओ रम्मो ॥ १२४ नाना द्रोणमुखोंसे शोभायमान, उत्तम द्वीपों व नगरोंके प्राचुर्यसे सहित, संबाहोंसे विभूषित, रम्य, वैताढ्य पर्वत व रक्ता-रक्तोदा नदियोंसे शोभायमान, प्रचुर पुष्करिणियों व वापियोंसे युक्त, दिव्य और वनखण्डोंसे विभूषित है ॥ ११२-११५ ॥ उस देशकी राजधानी जयन्ता नामकी नगरी जानना चाहिये । यह नगरी वैडूर्यमणि, सुवर्ण व मरकत रत्नोंके प्रासादोंसे व्याप्त: उत्तम पद्मराग मणिमय प्राकारसे वेष्टित, खातिकाओंसे संयुक्त, जपाकुसुमके सदृश मणिमय तोरणोंसे भासुर, रम्य, चन्द्र व हारके सदृश वर्णवाले जिनेन्द्रभवनोंसे शोभित, दिव्य, और उत्तम पांच वर्णवाली निर्मल पताकाओंके समूहोंसे शोभायमान है ॥ ११६-११८॥ उससे पूर्वकी ओर जाकर रम्य सूर पर्वत है । यह पर्वत उत्तम नवीन चम्पकके समान वर्णवाला, जिनमवनसे विभूषित, उन्नत, सुवर्णमय वेदिसम्हसे युक्त, मरकतमणिके तोरणोंसे शोभायमान, आठके आधे अर्थात् चार टोसे सहित, बहुत भवनोंसे विभूषित, दिव्य, आदित्य नामक देवसे सहित, वनखण्डोंसे विभूषित, मनको अभिराम, देवांगनाओंसे व्याप्त और पद्मिनीखण्डोंसे रमणीय है ॥ ११९-१२१ ॥ उसके पूर्वमें जाकर वप्रकावती नामका देश है । यह देश धनधान्य व रत्नसमूहसे सहित, गायों व भैसोंसे भरपूर, दिव्य, बहुत कर्बटोंसे रमणीय, पट्टनसमूहोंसे मण्डित, दिव्य, रत्नाकरोंसे पूर्ण, मटंबों व खेड़ोंसे रमणीय, द्रोणमुखोंसे आच्छन्न, नाना ग्रामोंसे शोभायमान, प्रचुर संबाहों व नगरोंसे सहित, रम्य और उत्तम द्वीपोंसे विभूषित है १ उश विहसिओ परम्मो, ब विभूसिउरम्मेण. २ उ श पुव्वएण. ३ उ श वय. ४ क जयंति ति. ५ उश पायर. बसिसिरयणहार. ७ उ श सोहंतं. “श वणवण्णो. ९ उश पवहो. १० उश बहुक्कवडेहि. बबहुकुम्वहि. ११ब रययणायरेहि. १२ब देव, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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