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जंबूदीवपण्णत्ती
[९.१०४
चोइसयसहस्सेहि य गर्दीहि सहिया महाणदी रत्ता' । रत्तोदा वि तह रिचय वहति देसस्स मजमेण ॥ १०४ दक्षिणमुहेण गंतुं वेदीणिवहेहि तोरणजुदेहि । सीदोदाए सलिलं पविसंति दु तोरणमुहेण ॥१.५ वेदो वि य सेलो मेरुं काऊण णाइ सुणिविट्ठो' (१)। देसस्स मज्झभागे रयनमो तिसेविसंजुत्तों ॥ १०६ णामेण वाजयती सुवप्पविजयस्स होइ वरणयरी । कंचणपायारजुदा मरगयवरतोरणसणाहा ॥ १०७ वरपरामरायमरगयकक्केयणइंदणीलधरणिवहा । वेरुलियवज्जकंचणजिणभवणविहूसिया दिग्वा ॥१०८ ['पुग्वेण तदो गतुं वरणइ गंभीरमालिणीणामा । होइ विहंगा णेया कंचणसोवाणरमणीया ॥ १०९ मरगयवेदीणिवहा कक्केयणतोरणेहि संछण्णा । णाणातरुवरगहणा वणसंडविहूसिया दिग्धा ॥१.] भट्ठावीसाहिं वहा सहस्सणइयाहि संजुया सरिया । दक्षिणमुहेण गंतुं सीदोदजलं समाविसह ॥" पुम्वेण तदो गंतुं दोइ महावप्पणामलो देसो । [बहुवप्पसालिणिवहो जवगोहुममासैसंछण्णो ॥ १११ रयणायरेहे रम्मो मदंबणिवहेहि मंडिमो दिग्यो ।] बहुपट्टणेहि पुण्णो कब्बडखेडेहि रमणीओ ॥११३
मध्यमें चौदह हजार नदियं से सहित महानदी रक्ता तथा उतनी ही नदियोंसे संयुक्त रक्तोदा मी, ये दो नदियां बहती ॥ १०४ ॥ उक्त दोनों नदियां तोरण युक्त वेदीसमूहसे सहित होकर दक्षिणकी ओर जाती हुई तोरणद्वारसे सीतोदाके जलमें प्रवेश करती हैं ॥१०५॥ दशके मध्य भागमें तीन श्रेणियोंसे संयुक्त रजतमय वैताढ्य पर्वत भी स्थित है जो मेरु जैसा प्रतीत होता है ॥१०६॥ सुवप्रा विजय : राजधानी वैजयन्ती नामक नगो है। यह दिव्य नगरी सुवागमय प्राकारसे युक्त, मरकतमय उत्तम तोरणोंसे सनाप; उत्तम पद्मराग, मरकत, कर्केतन व इन्द्रनील मणियों से निर्मित ऐसे गृहसमूहसे सहित और वैडूर्य, वज्र एवं सुवर्णमय जिनभवनोंसे विभूषित है ॥ १०७-१०८ ॥ उसके पूर्वमें जाकर गम्भीरमालिनी नामकी उत्तम विभंगा नदी है । यह नदी सुवर्णमय सापानोंसे रमणीय, मरकतमय वेदीसमूह से संयुक्त, कतन रत्नोंसे निर्मित तोरणोंसे व्याप्त, अनेक उत्तम वृक्षोंसे गहन, वनखण्डोंसे विभूषित, दिव्य और अट्ठाईस हजार नदियोंसे संयुक्त होती हुई दक्षिणका और जाकर सीतोदाके जलमें प्रवेश करती है ॥१०९-१११ ।। उसके पूर्वमें जाकर महावप्रा नामका देश है । यह देश बहुतसे खेती व शालिसमूहसे सहित; जौ, गेहूं व उड़दसे व्याप्त, रत्नाकरोंसे रम०:य, मटंबोंके समूहसे मण्डित, दिव्य, बहुत पट्टनोंसे पूर्ण, कर्बटों व खेड़ोंसे रमणीय, धान्यसे परिपूर्ण प्रामोंके समूइसे संयुक्त,
१ उ चोदससयसहसेहि, ब चउदसमयस्सेहि, श चोइससयसहेहि. २ २ नाहि संण्णो रत्ता. ।ब तहं विय. ४ उ श गाइसुणिविदिट्ठो, व गाइसुणिविट्ठो. ५ रयणमओ सोटिसंजुत्तो. ६ बप्रतौ नोपलभ्यतेऽयं कोष्ठकस्थः पाठः। उ सहस्साणच्याहि, श सहस्साइयादि. ८श दक्षिणमुहेण गंतु होइ महावप्पणामओ देसी वसइ. ९ व वण. .• बप्रतौ नोपलभ्यतेऽयं कोष्ठकस्थः पाठः। ११ उ श गेहूवमास. १२ व वउवप्पट्टणेहि. १३ उश पुणो कव्वंडोनाहि, ब पुणो कव्वरसेडेहि.
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