________________
णवमो उदेसो
पट्टणमबपउरो दोणामुहखेडकपडसणाहो । बहुरयणदीवणित्रहो णयरायरमंडिभो दिग्बो ॥९४ रत्तारत्तोदामो दियाभो जस्थ होति दिवाभो । वरपव्वदो वि रम्मो वेदडो होह वरसिंहरी ॥१५ तित्थयरचक्कवहीवलदेवा वासुदेवमंडलिया । उप्पज्जति महप्पा वप्पाविजयम्मि' णायम्वा ॥ ९६ तस्स देसस्स गेया विजयपुरी णामदो त्ति विक्खाया। होइ मणिकणयणिवहा सुरिंदणयरीसमा दिग्बा ॥ ९. रविकंतवेदिणिवहा विमवरतुंगगोउरसणाहा । मणिरयणमवणणिवहा जिणईदघरेहि रमणीया ॥ ९८ पुग्वेण तदो गंत होइ पुणो चंदपव्वदो तुंगो । कोरंटकुसुमवण्णो णाणाविहरयणकिरणढो ॥ ९९ कणयमयवेदिणिवहो वेरुलियमहंतगोउरसणाहो । वणसंडमंडिमो सो मणिमयपासादसंगणो ॥१.. मनकरिकुंभसिहरो' चउकूडविसिओ परमरम्मो । चंदसुररायसहिमो जिणभवणविराजिमो दिश्वो ॥१०॥ पुग्वेण तदो र्गतुं होइ सुवप्पो त्ति जणवदो विउलो । बहुगामणयरणिवहो रयणदीवहि संछपणो ॥१.१ कब्बडमबणिवहो पणदाणामुहेहि घणणिचिमओ । संबाहखेडपउरो बहुविहणयरेहि संकण्णो ॥१.३
खयों व कर्बटोसे सनाथ, बहुतसे रत्नद्वीपोंके समूहसे युक्त, और नगरों व आकरोंसे मण्डित है ॥ ९३.९४ ॥ जहां रक्ता-रक्तोदा नामकी दिव्य नदियां तथा उत्तम शिखरवाला रमणीय वैतादय नामक श्रेष्ठ पर्वत भी है । उस वप्रा विजयमें तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव एवं मण्डलीक महापुरुष उत्पन्न होते रहते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ ९५-९६ ॥ उस देशकी राजधानी विजयपुरी नामसे विख्यात नगरी जानना चाहिये । सुरेन्द्रनगरीके समान वह दिन्य नगरी मणियों एवं सुवर्णके समूहसे संयुक्त, सूर्यकान्त मणिमय वेदीसमूहसे सहित, विदुममय उत्तम ऊंचे गोपुरोंसे सनाथ, मणियों एवं रत्नेोके मवनसमूहसे युक्त और जिनेन्द्रगृहोंसे रमणीय है ।। ९७-९८ ।। उसके पूर्वमें जाकर चन्द्र नामका उन्नत वक्षार पर्वत है। यह पर्वत कोरंट वृक्षक फलोंके समान वर्णवाला, नाना प्रकारके रत्नोंकी किरणोंसे व्याप्त, सुवर्णमय वेदीसमूहसे सहित, वैडूर्यमणिमय महा गोपुरोंसे सनाथ, वनखण्डोंसे मण्डित, मणिमय प्रासादास व्याप्त, मत हापीके कुम्भस्थल जैसे शिखरवाला, चार टोंसे विभूषित, अतिशय रमणीय, चन्द्र नामक देवराजसे सहित, दिव्य और जिनभवनसे सुशोभित है ॥ ९९-१०१॥ उसके पूर्वमें जाकर सुवप्र नामक विशाल देश है । यह देश बहुत प्रामों व नगरोंके सम्हसे सहित, रत्नद्वीपोंसे व्याप्त, कर्बटों व मटबोके समूहसे संयुक्त, पट्टनों व द्रोणमुखोंसे अत्यन्त निबिड, संबाहों व खेड़ें के प्राचुर्यसे युक्त और बहुत प्रकारके नगरोंसे व्याप्त है ॥१०२-१०३ ॥ इस देशके
उश विसयम्मि. २ बणामको ति वारणयरी. ३ उश रविकंतिवेदिणिवहा, र रविकतवेदविता . श रविकंतिवेदणिवहा. . उश बरेहि. ५ व गंतु होइ पुणो चंदप्पही तुंगो, शगंतुं गो. बसियरो.
सुण्णति.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org