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बंदीवपण्णी
!८.१८५.
तिष्णेव हवे कोसा सेणउदा जोयणा समुत्तंगा। कोसा वासट्टा' मायामा तोरणा या ॥ १.५ में कोसा विक्खंभा गंगासिंधूण तोरणदुवारा । सीदाणदीसमीवे णिहिटा जिणवरिदेहि ॥ १४६ वरणदिया गायब्वा चउदस-उससहसपरिवारा । एक्केकाण नदी गंगासिंधूण परिवारा ॥.. सव्वा वि वेदिसहिया सम्वा वणसंडमंडिया' दिवा । सम्बा तोरणणिवहा सम्षा कुंडेसु उप्पण्णा ॥ 16 देसम मग्ममागे वेदतो पम्वदो समुतुंगो वणवेदिएहि जुत्तो वरतोरणमंडिमो गई ॥ १८९ उत्तरसेटीए पुणो' पणवण्णाणि इति गराणि । जिणभवणभूसियाणि व दक्मिणदो पावि एमेव ॥१९. देसम्मि तमि होई य गामेण य रयणसंचया णगरी । रयणमयभवणणिवहा वरतोरणमरिया दिम्बा ९ मरगयपायाजुरा भगाहसाईहि परिठडा दिवा । धुतधयखाया जिभवणविहूसिपा दिया ॥९. पुम्वविदेडे गेया तित्ययरा सम्बकाल साहीणा' । गणहरदेवा य तहा धक्कहरा सहप गायम्बा ॥ १९३ छम्मासे छम्मासे णियमा सिझी"तेसु खत्तेस । उक्कस्सेण बयाण्णदो एक्कसमरण || १९. जिणईदाणं गेयो अट्टमहापारिहेरजुसाणं । दिवं समोवसरणं सम्वेसु वि भरिथ खेत्तेसु ॥ १९५
नदियोंके तोरणद्वार सीता नदीके समीपमें तेरानबै योजन और तीन कोश ऊंचे, बाठ योजन व दो कोश आयत, तथा दो कोश विस्तृत जानना चाहिये ॥ १८५-१८६॥ गंगा-सिन्धु नदियों से प्रत्येक नदीकी परिवार नदियां चौदह-चौदह हजार प्रमाण जानना चाहिये ॥१८॥ ये सभी दिव्य नदियां वेदियोंसे सहित, सभी वनखण्डोंसे मण्डित, सभी तोरणसमूहसे सहित,
और सभी कुण्डोंसे उत्पन्न हुई हैं ॥ १८८॥ इस देशके मध्य भागमें वन-वेदियोंसे युक्त बार उत्तम तोरणोंसे मण्डित वैताढ्य नामक ऊंचा पर्वत है ॥ १८९॥ इस पर्वतकी उत्तर श्रेणिमें जिन भवनोंसे भूषिः पचवन नगर हैं। इसी प्रकार दक्षिण श्रीगमें भी पचयन नगर जानना चाहिये ॥ १९० ॥ उस देशमें रत्नसंचया नामकी नगरी है। यह दिव्य नगरी रत्नमय भवन. समूहसे सहित, उत्तम तारणोंसे मण्डित, दिव्य, मरकतमणिमय प्राकारसे युक्त, अगाध खातिकाओंसे वेष्टित, दिव्य, फहराती हुई वजा-पताकाओंसे सहित और जिनभवनोंसे विभूषित है ॥ १९१-१९२ ॥ पूर्व विदेहमें स्वाधीन तीर्थकर, गणधर देष तथा चक्रवर्ती सर्व काल स्थित जानना चाहिये ॥ १९३ ॥ उन क्षेत्रोंमें उत्कर्षसे छह छह मासमें तथा जघन्यसे एक समयमें जीव नियमसे सिद्ध होते हैं ।। १९४ ॥ सभी क्षेत्रों में आठ महा प्रातिहार्योंसे युक्त जिनेन्द्र देवोका दिव्य समवसरण रहता है, ऐसा जानना चाहिये ॥ १९५ ॥
उश वेको सावणट्ठा, प ..,ब कोसट्ठा वासट्ठा. २ पब गंगासिंधूतोरण. ३१श सहस्सा..प - मुंख्यिा . ५ व समतुंगो. पब पुणा, ७ उ श होवि, प...,पदोह. ८ प...बपामेच स्व. ९प बसाहीण, श साहीरा. १.पबदेवाण तहा. १५ णियमा तिष्ठति सु. ११पस्से मेवा, .
कस्सेगमेय. १३पबजिमयंाणं य.
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