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अट्टमा उसो
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वो विभंगणामा होइ नदी पच्छिमे दिसाभागे । उम्मत्तजला मेया विदिया णामा दु' तस्सेव ॥ १५५ पणुवीप समधिरेषा' जोगणसयविश्यडा परमरम्मा | बेजोयणअवगाढा बेकोसहिया विभंगा दु ॥ १५६ सोलस चेव सहस्सा चत्तारि सया इवंति' सतट्टा । वे सेव कला महिया विभंगमायाम गिरिडा || १५७ विक्खभायामेण य समद्दियपणुवीसजोयणसयं तु । जोयणवीसवगाई' विहंग समुहि ॥ १५८ अषणिय कुंडायामं विजयायामे हवेञ्ज जं सेसं । सग्वाणं सरियाणं आयामो होइ णायच्वो ॥ १५९ बेकोससमहिरेया सत्तासीदी सर्व च णिडिट्टा । वोरणदारुच्छेहा विभंगसरियाण णायच्या ॥ १६० वोरणदायामं पणुवीसहिया सयं च णायन्त्रा । विषखंभ एय जोयण होइ विभंगाण सम्वाणं ॥ १६३ दरवज्जण कमरगयसोवाणगणेश सोहिया दिव्या । कंधणवेदीहि जुदा वणसंविहूसिया रम्मा ॥ १६९ अट्ठावीसेद्दि वहा सहस्सगुणिदाहिं संजुदा रम्मा । उभयवढं पूरंठी वच्च विजयाण मझेण ॥ १६३ दुखसभि सुगंधसलिलेहि पूरिया दिग्वा । गंतूण उत्तरदिसे पविसह सीयाणदी मझे । १६४
नामकी नदी है | ( " उन्मत्त जला यह उसका ही दूसरा नाम जानना चाहिये ।। १५५ ॥ अतिशय रमणीय वह विभंगा नदी एक सौ पच्चीस योजन विस्तृत और दो कोश अधिक दो योजन अवगाह से संयुक्त है ॥ १५६ ॥ विमंगा नदीका आयाम सोलह हजार चार सौ सड़सठ ये जन और दो कला अधिक (१६५९२ - १२५ = १६४६७६५) या. कहा गया है || १५७ ॥ एक सौ पच्चीस योजन विष्कम्भ और आयाम तथा बीस योजन अवगाहसे सहित विभंगाकुंड कहा गया है ॥ १५८ ॥ विजयके आयाममेंसे कुण्डके आयामको कम करनेपर जो शेष रहे उतना सब नदियोंका आयाम जानना चाहिये ॥ १५९ ॥ त्रिभंगा नदियोंके तोरणद्वारोंका उत्सेध एक सो सतासी योजन और दो कोश प्रमाण निर्दिष्ट किया गया जानना चाहिये ॥ १६० ॥ सब विभंगा नदियोंके तोरणद्वारोंका आयाम एक सौ पच्चीस योजन और विष्कम्भ एक योजन प्रमाण जानना चाहिये ।। १६१ । उक्त विभंगा नदी उत्तम वज्र, नील एवं मरकत मणिमय सोपान समूहों से शोभित, दिव्य, सुवर्णमय बेदियोंसे युक्त, बनखण्डोंसे विभूषित, रम्य और अट्ठाईस हजार [ नदियोंसे ] संयुक्त होकर उभय तोंको जलसे पूर्ण करती हुई विजय के मध्यसे जाती है ॥ १६२ - १६३ ॥ कुन्द पुष्प, चन्द्र एवं शंखके समान धवल व सुगम्बित जलसे परिपूर्ण वह दिव्य नदी उत्तर दिशा में जाकर सीता नदीके मध्य में प्रवेश
१ श विदिणायामा दु. १ उश समभिरेया, श समभिरेये. ३ श जोयअवगादा पर मरम्मा ४ प ब कोसा सहिया अमंगा हु, श कोसहिया विभंगा दु. ५ उश चत्तारि हवंति. ६ उश 'वीसविगाई ७ ड श कुंडयामं. ८ उश तोरथ. ९ व पचवीसाहिया सयं, श पणुवीससहिया सर्य.
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