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________________ -८. १२॥ भट्ठमो उदेसो [१.५ गण पछिमदिसे होइ सुवाछो त्ति जणवदो रम्मो । धणधण्णरयणणिवहो बहुगामसमाउलो परमो ॥" गंगासिंधूहिं तहा वेदवणगेण' सुटू कयसीमो । छक्खंडमणभिरामो पमुदिवपक्कीलिदो देसो ॥१.५ हुकुवाउरो सुगंधसालीहि परियपदेसो । पूगफल हक्खणिवही वंबूललयाउलसिरीभो १ सस विजयस्स गेया गामेण य कुंखला हवे गगरी । बारहजायणदीहा णवजोयणविस्था दिग्वा ॥.. भारहसहस्सरत्या' सहस्स वह हॉति वरचउक्का' य । गोउरसहस्सणिवहा तदद्धवरतोरणा रम्मा । वजिदणीकमरगयकक्केयणपउगरायपासादा । धुम्वंतघयवाया जिणभवणविहूसिया दिम्बा ॥ भवरेण तदो गंतु तत्तजला णामदो नदी होह । बरतोरणसंजुसा वणवेदीपरिठडा दिन्वा ॥१२. वरणदिगणेहि जुत्ता भट्ठासासहस्सगुणिदेहि । जिग्गण विभंगा कुंडाणं तोरणमुहादो ॥११ उत्तरमुरेण गंतुं विजयाण मजादेसभागेण | सीयासलिलं पविसइ तोरणदारेण विउलेण ॥ २२ भवरेण तदो गंतु होइ महावच्छजणवदो अवरो । गामाणुगोमणिचिमओ" गगरागरमंरिमो विउकोण यह देश धन-धान्य व रत्नसमूहसे सहित, बहुत प्रामोंसे युक्त, श्रेष्ठ, गंगा-सिन्धु नदियों तथा घेतान्य पर्वतसे की गई सुन्दर सीमासे सहित, छह खण्डोंसे मनोहर, प्रमोदप्राप्त जनोंकी कीड़ासे सहित, पुण्ड् ( पोंडा ) एवं ईखके खेतोकी प्रचुरतासे युक्त, सुगन्धित शालि धान्योंसे पूरित प्रदेशवाला, सुपाडीके वृक्षसमूहसे सहित, और ताम्बूल लताओंकी अनुपम शोमासे सम्पन्न हे ॥१४-१६ ॥ कुण्डला नामक नगरी उस देशकी राजधानी जानना चाहिये । यह नगरी बारह योजन दीर्घ, नै। योजन विस्तृत, दिल, बारह हजार रयमागोंसे सहित, एक हजार उत्तम चतुष्पोंसे संयुक्त, एक हजार गोपुराके समूहसे युक्त, इससे आधे (५००) उत्तम तोरण द्वारोंसे सहित, रमणीय; वज्र, इन्द्रनील, मरकत, कर्केतन एवं पद्मरागसे निर्मित प्रासादोंसे परिपूर्ण; फहराती हुई घजा-पताकाओंसे शोभित, दिव्य और जिनभवनोंसे विभूषित है ॥ ११७-११९ ।। उसके पश्चिममें जाकर तप्तजला नामक विभमा नदी है। यह नदी उत्तम तोरणोंसे संयुक्त, बन-वैदियोंसे वेष्टित, दिव्य और उत्तम अट्ठाईस हजार नदियों के समूहोंसे युक्त क्षेती हुई कुण्डोंके तोरणमुखसे निकलकर विजयों के मध्य भागमेंसे उत्तरकी और जाकर विशाल तोरणद्वारसे सीता नदोंके जलमें प्रवेश करती है ॥१२०-१२२॥ उससे पश्चिमकी ओर जाकर महावरसा नामक दूसरा देश है । यह विशाल देश प्राम अनुप्रामोसे ब्याप्त एवं मगरों व आकरोसे मण्डित है ॥ १२३ ।। जहाँ सिन्धु नदीके साथ वनों, वेदियों व तोरणोंसे डश समठलो पउये, प समाउलो परम्मो. १ पब मगेसु. । उ श पमुदिराजीलिदो, प... पमुदिपक्कान्दिो. रखवार. ५पब सलिहिं. ६ उश सिरीर, पबसिगड. पब रछ. पर सहा. पब चउका..पब तोरणरणसंजुत्ता. १.पवरणदिणगम्मेहि वरणदिणगसेहि. ११४ गामणगाम. १३पणिचउ. दी. १९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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