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________________ १५२ ) जंबूदीवपण्णसी [८. ८३दक्मिणदिसेण गेया वि परिसाण तह प पासादा । पच्छिमदिसाविभागे सत्ताणीयाण पुण होति ॥ किरिबसैदेवाण तहा होति पुणो विविहरयणपासादा । मभिजोगसुराण तहा पासादा तस्य णापया ॥ .. सम्मोहसुराण तहा देवारण्णम्मि होति पासादा। कंदप्पाण सुराणं पासादा होति सत्येव ॥ ८५ तत्तो दु दक्खिणविसे गंतूर्ण होदि विविहतरुगहणं । भवरं देवारणं सीदाए दक्षिणतरम्मि || तं बउलतिरूयणिवहं पुण्णायणायपादवसणाई । लवलीलवंगपउरं तमालदलसंकुलं रम्म ॥ ८७ णारंगपणसेणिवहं कयलीदुमणालिएरसंछण्णं । तंबूलवल्लिगहणं महमुत्तलयाठलसिरीयं ॥ ८८ तम्मि वणे गायम्वा जयराणि हवंति सयसहस्साणि | देवाणं णिहिट्ठा कंचणमणिरयणणिवहाणि ॥ ८९ पायारंपरिउगणि य गोउरणिवहाणि होति सम्वाणं । कंचणरयणमयाणि य णाणापासादपंतीण ॥ ९. गगरेसु तेसु या रायाणं" हॉति सम्वाण' । वर सत्त सत्त कम्छा सत्ताणीयाहि संजुत्ता ॥ ९॥ माणुससिमदुपसिद्धा तिणि य परिसा हवंति गायव्वा । भम्भतरमजिसमबाहिरा दु कमसो मुणेयवा ॥१ तिपिणपस्सेिहि सहिया तह य महादेविचदुहि संजुचा । मच्छरकोरीहि तहा पदादिणिवहेहि थुम्वंता ॥ ९॥ पारिषद देवोंके तथा पश्चिम दिशाविभागमें सात अनीक देयों के प्रासाद जानना चाहिये ॥ ८३॥ वहां किल्विष तथा आभियोग्य जातिके देवोंके विविध रत्नमय प्रासाद हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ ८४ ॥ वहाँ देवारण्यमें सम्मोह सुरों के भी प्रासाद हैं। कन्दर्प सुरोंके प्रासाद यहां ही हैं ।। ८५ ॥ उससे दक्षिणकी ओर जाकर सौता नदीके दक्षिण तटपर विविध पक्षोंसे गहन दूसरा देवारण्य है ॥ ८६ ॥ यह वन बकुल व तिलक वृक्षोंके समूहसे युक्त, पुनाग व नाग वृक्षोसे सनाथ, लवली व लवंग वृक्षाकी प्रचुरतासे सहित, तमालपत्रोंसे ज्याप्त, रम्य, नारंग व पनस वृक्षोंके समूहसे संयुक्त, केला व नारियल के वृक्षोंसे व्याप्त, ताम्बूल की बेलोंसे गहन और अतिमुक्त लताओंकी अतुल शोभासे युक्त है ॥ ८७-८८ ॥ उस वनमें देवोंके सुवर्ण एवं रत्नसमूहसे निर्मित लाखों नगर निर्दिष्ट किये गये हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ ८९ ॥. बहुविध प्रासादोंकी सभी पंक्तियों के गोपूर-समूह प्राकारोंसे वेष्टित तथा सुवर्ण और रत्नोंसे निर्मित हैं ॥ ९० ॥ उन नगरोंमें सब देवराजोंके सात अनाकोंसे संयुक्त सात सात कक्षायें हैं ॥ ९१ ॥ मानु, शशि एवं जतु नामसे प्रसिद्ध क्रमशः अभ्य. तर, मध्यम और बाह्य, ये तीन परिषद् जानना चाहिये ॥ ९२ ॥ तीन परिषदोंसे सहित, चार महा देवियोंसे संयुक्त, करोंड़ों अप्सराओंसे सहित, पदातिसमूहोंसे स्तुत, सामानिकों -............................... उश दिसामिभागे. २ उश खिम्भिस, पब किमिस. ३ ५ ब पुष्णायाणाय. ४ पब सम्मा. ५ पबपाणस. पब तालएव. ७ उ मयस्यण, शमयेरेयण, ८ उशपयार..प सम्बानि. १.. पंतीमा. शरापणे. १२ शहोति देवसम्यागं. १५पर गाए. १४श तिण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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