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१३)
जंबूदीपण्णती
[८. २१.
तस्य य भरिट्ठणगरी णव बारस विस्था हवे दोहा ] | जोपणसंखुट्टिा मणिमवणसमाउला रम्मा ॥३॥ पंचसयखुखदारा तदुगुणा होति गोरखुवास । तत्तियमेतचउक्का मारसंसगुणा रस्था ॥ २२ पुषेण तदो गंतु णिवंतसुषण्णसंणिमो सेलो । णामेण पठमकूरो जिणभवणविहसिलो होई ॥२॥ वणवेदिपहिं शत्तो वरतोरणमंडिमो मणभिरामो । चत्तारिकतसहिमो तण्णामादेवसाहीणों ॥ २४ पोक्वारणिवाविपउरी बहुविहपासादसंकुलो रम्मो । णाणातरुवरणिवहो तुरंगकंठोग्य रमणीमो ॥ २५ गंतण वदो पुग्वे होइतही कच्छकावदी देसी । संकिटलसीमो बहुगामसमाउलो मुदिदो ॥ २६ जाणाजणवाणिवितो मट्ठारसदेसभाससंजुत्तो । गयरहतुरंगणियहो परेणारिसमाउलो सम्मो ॥ २० वेदडपम्वदेण य रत्तारत्तोदए िकयसीमो । जयरायरसंछण्णो छक्खंडणिविटरमणामी ॥ २८ सहि होइ रायवाणी भरिपुरी णामदो समुट्टिा । पावारसंपरिउरा णाणापासादसंछण्णा ॥ २९ बारहजावणदीहा नवजोयणवित्थडा मुणेयम्वा । बारहसहस्सरस्था सहस्सवरगोउरा तुंगा ॥३. धुम्चतपयवराया जिणभवणविहूसियों परमरम्मा । पंचसयखुल्लदारा चठक्क गुण णिहिट्ठा ॥ ३॥
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अरिष्ट नगरी है जो नी योजन विस्तृत, बारह योजन दीर्घ, मणिमय मयनोंसे व्याप्त, रमणीय, पांच सौ क्षुद्र द्वासेि सहित, इससे दूने गोपुरद्वारोसे संयुक्त, इतने ही अर्थात् एक हजार चतुष्पोंसे युक्त, और उनसे बारहगुणे रथमागासे परिपूर्ण है ॥२१-२२ ॥ उसके पूर्वमें जाकर खूब तपाये हुए सुवर्णके समान पद्मकूट नामका पर्वत है । यह पर्वत जिनभवनसे विभूषित, वन-वेदियोंसे युक्त, उत्तम तोरणोंसे मण्डित, मनको अभिराम, चार कटौसे सहित उसके ( अपने ) नामवाले देवके स्वाधीन, पुष्करिणी व वापियोंकी प्रचुरतासे संयुक्त, बहुत प्रकारके प्रासादोंसे व्याप्त, रमणीय, नाना वृक्षाके समूहसे युक्त और घोड़ेके कंठके समान होता हुआ रमणीय है ॥ २३-२५॥ उसके पूर्वमें जाकर कच्छकावती देश है। यह देश संक्लेशसे सीमाको प्राप्त हुए बहुत प्रामोंसे व्याप्त, मुदित, नाना जनपदोंसे निविड (सान्द्र) अठारह देशभाषाओंसे संयुक्त; गज, हाथी, रथ, एवं अश्वोंके समूहसे युक्त, नर-नारियोंसे परिपूर्ण, रम्य, वैताढय पर्वत और रक्ता-रकोदासे की गई सीमासे संयुक्त, नगरों व आकरोंसे न्याप्त और छह खण्डोंके निवेशसे रमणीय है ॥ २६-२८ ॥ उस देशमें अरिष्टपुरी नामकी राजधानी है। यह नगरी प्राकारसे वेष्टित, नाना प्रासादोंसे व्याप्त, बारह योजन दीर्घ, नौ योजन विस्तृत, बारह हजार रपमागोंसे सहित, उन्नत एक हजार. उत्तम गोपुरोंसे संयुक्त, फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे युक्त, जिनमवनोंसे विभूषित, अतिशय रमणीय, पांच सौ क्षुद्र द्वारोंसे सहित और इससे दूने अर्थात् एक हजार चतुरुपयोंसे संयुक्त कही गई है ।। २९-३१॥
पम तं पारस. २ उ श साहीओ. ३ प व तदो. ४ उ श गिविओ, पब णिवडो. ५ पर वर. ६श धुव्वंतघयवडावा अदि. ७ उ शमवणविणविहासिया.
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