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अट्टमो उद्देसो
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सेमपुरयधाणी बारहणवजोयणा समुद्दिट्ठा | आयामा विक्खंभा मणिमयपासादसंछण्णा ॥ ॥ ११ बारहसहस्स रत्था सहस्वरगोउरा रयणचित्ता । तावचक्कणिवहा सदमुखढकी समुद्दिट्ठा ॥ १२ दवणसंग्णा जिणभवणविहूसिया पर मरम्मा | वष्पिणतलायवावी पोक्खरणिविराइया दिग्वा ॥ १३ रणारिहिं पुण्ण विष्णाणवियक्खणेाहें सुभगेद्दि । मुनिगणणिवद्देहि तहा दंसणणाणोवजुतेहि ॥ १४ पुग्वेण तदो गंतुं होइ नदी गद्दवइ ति णामेण । अट्ठावीस बहस्साणदीहि परिवेढिया रम्मा ॥ १५ कंचन लोवाणजुदा सुगंधसलिलेण पूरिया दिव्वा । गिज्झरझरतसद्द पवणादयउम्मिरमणीया ॥ १६ वणवेदिएहि जुत्ता मनितोरणमंडिया मणभिरामा । दक्खिणमुद्देण गंतुं सीयासलिलं पविसई सरिया ॥ १७ ततो पुष्येण पुणो होइ महाकच्छ जणवओो रम्मो । घण्णड्ढगामणिव हों णयरायर मंडियो विउको ॥ १८ रतारतोदेहि य वेदद्वेण य कमो मद्दासीमो । छक्खंडमंडिओ सो मडंबखेडायरेसिरीओ ॥ १९ बहुरयणदीवणिव हो [ पट्टणदोणामुद्देद्दि संछण्णो । उनजरूणिद्दिसंजुत्तो कब्बड संवाह संपुण्णो ॥ २०
॥ १० ॥ मणिमय प्रासादोंसे युक्त क्षेमपुरी राजधानीका आयाम व विष्कम्भ क्रमसे बारह और नौ योजन प्रमाण कहा गया है ॥। ११ ॥ इस राजधानी में बारह हजार रथमार्ग, रत्नोंसे विचित्र एक हजार गोपुर, इतने ही चतुष्पथ और इससे आधी अर्थात् पांच सौ खिड़कियां कही गई हैं ॥ १२ ॥ उक्त नगरी नन्दनवन जैसे वनोंसे व्याप्त, जिनभवनों से विभूषित, अतिशय रमणीय; वष्पिण, तालाब, वापी एवं पुष्करणियोंसे विराजित; दिव्य, विशेष ज्ञानवान् चतुर व सुन्दर नर-नारियों से परिपूर्ण, तथा दर्शन एवं ज्ञान रूप उपयोगों से युक्त ऐसे मुनिगणोके समूहों से परिपूर्ण है | १३-१४ ॥ उसके पूर्वमें जाकर अट्ठाईस हजार नदियोंसेवेष्टित रमणीय ग्रहवती नामकी नदी है ॥ १५ ॥ सुवर्णमय सोपानोंसे युक्त, सुगन्धित जलसे पूरित, दिव्य, निर्झरोंके झर-झर शब्दसे ताड़ित तरंगों से रमणीय, वनवेदियों से युक्त, मणिमय तोरणास मण्डित और ऐसी वह नदी दक्षिणमुखसे जाकर सीता नदीके जलमें प्रवेश करती है ॥ १६-१७ ॥ सुकच्छा के पूर्व में महाकच्छा नामका रमणीय देश है । वह धनाढ्य ग्रामसमूहोंसे सहित, नगरों व आकरोंसे मण्डित, विपुल, रक्ता रक्तोदा नदियों एवं विजयार्ष पर्वत से की गई महा सीमासे संयुक्त, छह खण्डोंसे मण्डित; मटंब, स्लेट एवं आकरोंसे शोभायमान, बहुतसे रत्नद्वीपोंके समूइसे सहित, पट्टन व द्रोणमुखोंसे व्याप्त, उपजलधिले संयुक्त और कर्बेट एवं संवाहों से सम्पूर्ण है ॥ १८-२० ॥ उस देशमें
संयुक्त, पत्रनसे मनको अभिराम
१ उश तथ्यदु २ श णरणारिएहिं जुतं पुण्णा. ३ उश जुय. ४ उ श चणड्दगामिण्णवहो, प बण्टु गामभिवदो, ब घण्णट्टणमणि हो. ५ प ब मंडखेडायर, श मटंबखेडार. ६ कोष्ठकस्थोऽयं पाठः पन्च मोनोपलभ्यते ।
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