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११.]
जंबूदीवपण्णत्ती
[७. ११८
बारह जीयण गंतुं सराहु णिवति चक्कवट्टीण | गामेण अमोघसरा' चक्कीणं णामसाहीणा ॥1 भत्थाणम्मि य पडियं बाणं दळूण सुरवरा खुहिया मागधवरतणुणामा पभासदीवाहिवा सम्वे' ॥१९ गाऊण चक्कवाह देवगणा विविहरयणवत्थेहि । पूजति पहिट्ठमणा पभासवरमागधादीया ॥ १२० एवं काउण वसं दक्खिणसुरखेयराण सम्वाणं | उत्तरसुराण उपरि संचलिया उत्तरमुहेण ॥१२॥ वेदगिरीमूल भावासेऊण सम्ववरसेण्ण | चक्काउही महप्पा मच्छह दिग्वाणुमायण || १२२ सेणावई वि धीरो गहिकर्ण रयणदंर पंजलंत | चडिऊण मस्सरयणं वेदड्ड्समावमल्लियह ॥१२३ इक्कितु तिमिसदार पहणइ दंडेण रयणणिवहेण । सुग्घरह तं दुवारं स्यणपहावेण हयमतो । १२५ वेगेण पुणो गच्छह सेणावह चक्कवहिवरसेणं । सेणो वि ताम भाला जाम गुहा सीयला होइ ॥ १२५ सम्मासण वरगुहा सीयलभाव उवैदि णादम्वा । भवसेससम्वकालं अग्गीमो महिय उपायरा ॥ १२५ सेण्णं अणोरपार पविसित्ता जाह वरगुहामझे। पणुवीस जोयणाई गंतूणं तस्य वीसमह' ॥१२७
अंकित वे चक्रवर्तियोंके अमोघ नामक बाण बारह योजन जाकर नीचे गिरते हैं ॥११८ ॥ आस्थान (आंगन) में गिरे हुए बाणको देख कर मागध, वरतनु और प्रभास द्वाोके अधिपति सब देवगण क्षोभको प्राप्त होते हैं ॥ ११९ ॥ प्रभास, वरतनु और मागध आदिक देवगण चक्रवर्तीका जानकर हर्षितमन होते हुए विविध रत्नों और वस्त्रोंसे पूजते हैं ।।१२०॥ इस प्रकार दक्षिणके सब देवों व विद्याधगेको वशमें करके उत्तरकी ओरसे उत्तरके देवोंके ऊपर आक्रमण करने के लिये जाते हैं ॥१२१॥ चक्र रस्न रूप आयुधके धारक चक्रवर्ती महात्मा विजया पर्वतके मूलमें सब उत्तम सैन्यको ठहराकर दिव्य प्रभावसे स्थित रहते हैं ॥ १२२ ॥ धीर सेनापति भी जाम्बल्यमान दण्ड-रत्नको ग्रहण करके अश्व-रत्नपर आरूढ़ हो विजया पर्वतके समीप जाता है ॥ १२३ ॥ व तिमिस्र गुफाके द्वरपर पहुच कर रत्नोंके समूह रूप दण्ड-रत्नसे उसे ठोकर मारता है। ठोकर मात्रसे वह द्वार रत्नके प्रभावसे सहज ही खुल जाता है ॥१२॥ तब सेनापति शीघ्र ही फिरसे चक्रवर्ती की उत्तम सेनाके पास पहुंच जाता है। सेना भी जब तक गुफा शीतल होती है तब तक वहीं स्थित रहती है.॥ १२५ ॥ वह उत्तम गुफा छह मासमें शीतलताको प्राप्त होती है, शेष सब कालमें अग्निसे अधिक उष्ण रहती है॥१२६॥ पश्चात् वह ओर छोर रहित आने विस्तीर्ण सेना उस उत्तम गुफाके मध्यमें प्रविष्ट होकर जाती है और पच्चीस योजन जाकर वहां रुक जाती है ॥ १२७ ॥ जहाँ उन्मनजला
उश सस. २ उश अमोघम्मा, अमोघपर. ३ पब दीयोहिया सम्यो शदीवाहिया सम्वी. ४५ब चटक्कहो ५पमाा शमवं. उश उण्डदो. . उश जोयगाए. पतस्थ, सव. १श तत्व बांसजायजाए।
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