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सचमा उदेस
॥ १०९
दो छाडा मारिखंडो य होंति बोद्धग्दा । सीदासमीवदेसो णिदिट्टो कच्छविजय बाहरुपु दिवम्बर सबर किरायाण सिंहकादीर्ण' । मेच्छाण सेसडा मिल्लीणा जीवंतस्स ॥ १३० 1 मापुराहिबया चक्कद्दरा सुरसहस्सपरिवारा । चउसद्विलक्खणहरा समचदुर सरीरसंठाणा ॥ १११ बरवज्जरिसहचरयणारायणअस्थिबंधणसरीरा ! संपुष्णचंद्रवयणा नीलुप्पलसुरहिणीसासा ॥ ११२ मगयगमणलीला करिवरकरथोरदीह भुवदंडा | भाणु ब्व तेयवंता सुरवइ इव मेोगसंपन्ना ॥ ११३ कुसुमाउह व सुभर्गो धणवह इव दाणविधैव सारेण । सायर इव अक्खोहा धीरते' तह व मेह व ॥११७ वे ते' महाणुभावा विजयं कुष्यंत वसुमई सयलं । दक्खिणमुद्देण चहिया ममराणं उवरि सरिदीवे ॥११५ तूण दीवणिवद" करणं काऊण ठाणवइसाई" । वह अल्फाल धणुई" जह जमरा संकिया जाया ॥११६ धीरेण " तेण मुक्का धणुबाणागडिभणेहि हत्थेहि" । पवरसरा संपत्ता सुराण असुराणं" बरगेहं ॥ ११७
११० ॥ क्षमापुरके अधिपति धारक, समचतुरखशरीर संस्थानसे युक्त शरीरवाले, सम्पूर्ण चन्द्रके
जानना चाहिये ॥ १०८ ॥ कक्षा विजयका जो प्रदेश सीता नदीके समीपमें है उसमें दो म्लेच्छखण्ड और एक आर्यखण्ड जानना चाहिये ॥ १०९ ॥ उक्त विजयंका जो प्रदेश नील पर्वतकी ओर स्थित है उसमें शेष तीन खण्ड लाइल, पुलिन्द, बर्बर, शबर, किरात और सिंहल आदिक म्लेच्छों के हैं ॥ चक्रवर्ती हजारों देखें के परिवार से सहित, चौंसठ लक्षणों के युक्त, वज्रवृषभनाराच रूप अस्थिबन्धन ( संहनन ) से समान मुखसे सहित, नीलोत्पलके सदृश सुगन्धित निश्वाससे संयुक्त, मत्त गजके समान लीलासे गमन करनेवाले, उत्तम हाथीके गुण्डादण्डके समान दीर्घ भुज- दण्डों से सहित, सूर्य के समान तेजस्वी, इन्द्रके समान भोगोंसे सम्पन्न, कामदेव के समान सुन्दर, दान - विभवकी श्रेष्ठता से कुबेरके सदृश, समुद्रके समान गम्भीर तथा धीरतामें मेरुके समान होते हैं ॥ १११-११४ ॥ उक्त वे चक्रवर्ती महानुभाव समस्त पृथिवीको वश करनेके लिये दक्षिण की ओर स्थित देवोंके नदी सम्बन्धी द्वीपोंमें जाते हैं ॥ ११५ ॥ द्वीपोंके निकट जाकर बे महानुभाव वैशाखस्थान आसनको करके धनुषको कान तक ऐसा खींचते हैं कि जिससे देव शंकित हो जाते हैं ॥ ११६ ॥ उस साहसी चक्रवती द्वारा धनुष-बाण युक्त हाथोंसे छोड़े गये उत्तम बाण सुर-असुरोंके उत्कृष्ट गृहको प्राप्त होते हैं ॥ ११७ ॥ चक्रवर्तियोंके नामसे
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१ प ब आयीर. १ प व सिंघलादाणं ३ उ अइयरणारायण, श वरियरणायामेन सुमरा ५ उ विविध, प व विश्व, श विवह ६ व भारते. ७ प ब मेकन्त्रा ८ प व तो ते. ९५५ महिवई १० प व दीवनिवडई ११ उ ठाणश्वश्वहसाह, प अणवइसाह, व बाणवइसाई, श अननसानं. १३ उ तह मध्फाकयभथ जह, प व तह फाल६ घणवर, श तन अप्फालय भाई. १३ प व वीरेन. १ पे-बत्यो नोपलभ्यते पदमेतत्. १५ प व भत्याण.
जं. दी. १५.
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