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जंबूदीपण्णी
रसारोदालो णीसरिपूर्ण गिरिस्स गन्भादो । तोरणदारेहिं तहा गंतूर्णं दक्षिण मुद्देण ॥ ९७
दीहि सहिया सहस्सगुणिदाहि विमलसलिलाहिं । तोरणदारेहिं तहा सीदासलिलं मणुविसंति ॥ ९८ दिजोयणाणि य पादविहूणाणि तुंगसिहराणि । तोरणदाराणि तहा कंचणमणिरयणणित्रहाणि ॥ ९९ वासट्टिजोयणाणि य बेकोसा' होति णायन्वा । तोरणदाराण वहा मायामं जिणवरुद्धिं ॥ १०० विक्खभ वि य गया जोयण भट्ठाँ हवंति णायम्बा | देहलितलेहिं तामो सरियानो ताणं पचिसंति ॥ १०१ मोरणदारेषु तहा देवाण तेसु होति नगराणि । बहुभवणसंकुलाणि दु मणिकंचणरयणणित्राणि ॥ १०१ उज्जाणभवणकाणणपेक्खरिणीवाविएहि रम्माणि । जिणभवणमंडियाणि य गोउरदाराणि जायंा ॥ १०३ मागधणामो दीवो वरतणुदीवो पभासदीवो य | तिष्णेदे वरदीवा कच्छीविजयस्स णायच्वा ॥ १०४ रक्तारतोदेहि य अंतरिदाओ हवंति ते दीवा । मणिकंचणरयणमया वरवेदी परिउडा रम्मा ॥ १०५ वरतेोरणे हि जुत्ता णाणापासादसंकुला रम्मा । सीदाए णायग्वा तडेसु ते होंति वरदोषी ॥ १०६ जाणतरुवरणिवा जिणभवणविहूसिया परमरम्मा । पोक्खरिणिवा विपउरा सुरगणिसुर संकुला रम्मा ॥ १०७ बहुमच्छर परियरिया हवंति सम्वेसु तेसु सुरराया । मागधवरतणुणामों पभासणामेण बोढा ॥ १०८
रक्तोदा नदियां नील पर्वतके मध्यसे निकल कर तोरणद्वारोंसे दक्षिणकी ओर जाकर निर्मल जलवाली चौदह हजार नदियोंसे संयुक्त होती हुई तोरणद्वारोंसे सीता नदी के जल में प्रवेश करती है ॥ ९७-९८ ॥ सुवर्ण, मणि एवं रत्नोंके समूह रूप वे तोरणद्वार उन्नत शिखर से युक्त होकर एक पाद से कम चौरानबे (९३) योजन ऊंचे हैं ॥ ९९ ॥ जिनेन्द्र भगवान् से उपदिष्ट उक्त तोरणद्वारोंका आयाम दो कोश अधिक बासठ योजन प्रमाण जानना चाहिये ॥ १०० ॥ उक्त तोरणोंका विष्कम्भ आठ योजन प्रमाण जानना चाहिये । वे नदियां उनके देहलितलों से सीता नदी में प्रवेश करती हैं ॥ १०१ ॥ उन तोरणद्वारों के ऊपर बहुत मत्रनें से युक्त मणि, सुत्र एवं रत्नसमूह से सहित; उद्यान, भवन, वन, पुष्करिणी एवं वापियोंसे रमणीय; जिनभवनोंसे मण्डित, और गोपुरद्वारोंसे संयुक्त देवोंके नगर जानना चाहिये ।। १०२-१०३ ।। कच्छा विजयके मागध नामक द्वीप, वरतनु द्वीप और प्रभास द्वीप, ये तीन उत्तम द्वीप जानना चाहिये || १०४ ॥ वे द्वीप रक्ता-रक्तोद से अन्तरित; मणि, सुवर्ण एवं रत्नों के परिणाम रूप; उत्तम वेदियों से वेष्टित, रमणीय, उत्तम तोरण से युक्त और नाना प्रासादोंसे व्याप्त होते हुए सीताके तटोपर स्थित जानना चाहिये ।। १०५-१०६ ।। उक्त द्वीप श्रेष्ठ नाना वृक्षसमूहोंसे सहित, जिनभवन से विभूषित, अतिशय रमणीय, प्रचुर पुष्करिणी व वापियोंसे संयुक्त तथा देवाङ्गनाओंके स्त्ररोंसे व्याप्त होते हुए रमणीय हैं ॥१०७॥ उन द्वीपों में बहुतसी अप्सराओंसे वेष्टित मागध, वरतनु और प्रभास नामक अधिपति देव
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१. २ प ब दाराण. ३ उ रा कंश्चणमय, प... श्रमतौ त्रुटितोत्र पाठः । ४ श कोसाहियाण, बों त्रुटितोऽत्र पाठः ५ उश जिणत्ररुदिट्ठा ६ उश त्रिमो • उश बा. एसा श दुज्जाण. १० उ रा कच्छ, ११ उ रा बरतित्या. १२ उ तथानाम श "तथणामु.
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