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________________ १२५ जंदविपणती पारस य दोणमेहा कुदुसमप्पहा सक्रिकपउरा । वीसुत्तरतिण्णिसया परिवडणा होति एकेको । ५. तस्य दुखत्तियवसो रायाण बहुविहो हवे भेदो । वइसाण होइ बसो सुदाण तह प णायम्बा ॥ ५९ विण्णव होति बंसा अवसेसा सस्य गास्थि सादु । दुवुटिमणावुट्ठी जवि होति दुसम्यकासम्मि।.. विस्थयरपरमदेवा महमहापारिहेर संजुत्ता । पंचमहाकल्लाणा घडतीसविसेससंपण्णा ॥६॥ देवासुरिदमहिया णाणाविहरूक्खणेहि संजुत्ता । चक्कहरणामयचलणा तिलोगणाहा हये तस्थ ॥३॥ सत्तविहरिखिपत्ता गणहरदेवा हवंति णायम्वा । अमरिंदणमियचक्षणा सद्धम्मपयासया वस्थ ॥ १३ पवरवरपुरिससीहा केवलणाणी हर्षति संबद्धा' । णाणाविहतवणिरदा साहुगणा होति तस्येव ॥ भंजणगिरिसरिसाणं चुलसीदीसयसहस्स णागाणं । तावदियरहवराणं णवणिहिमक्खीण कोसाणं ।। ६५ भट्ठारहकोडीणं मस्साण वाउवेगगमणाणं । जे सामिय माहप्पा मखलियपरक्कमा धीरा ॥६. ते होति चक्कवट्टी चउदसरयणादिषा महासत्ता । छण्णउहसहस्साणं महिला सामिया तस्य ॥. बलदेववासुदेवा तप्पडिवखा हवंति तस्येव । धम्माणुभावजणिया अतुसंताणारपती ॥ भौर चन्द्रके समान प्रभावाले तथा प्रचुर जलसे परिपूर्ण बारह द्रोणमेघ भी बरसते हैं। एक एकके तीन सौ बीस सरित्प्रपात होते हैं ।।५८ ॥ वह! बहुत प्रकारके मैदोसे युक्त राजाओंका क्षत्रिय वंश, वैश्योंका वंश और शूद्रों का वंश, ये तीन ही वंश हैं; शेष वंश वहाँ नहीं हैं, ऐसा जानना चाहिये । तथा वहां सर्व काल दुवृष्टि ( अतिवृष्टि) और अनावृष्टि भी नहीं होती ।। ५९-६०॥ वहां आठ महा प्रालिहायोंसे संयुक्त, पांच महा कल्याणकोंसे युक्त, चौंतीस अतिशयोंसे सम्पन्न, देवेन्द्रों व असुरन्द्रोंसे पूजित, नाना प्रकारके लक्षणोंसे संयुक्त, चक्रवर्तियोंसे नमस्कृत चरणोंवाले और तीनों लोकोंके स्वामी ऐसे तीयकर परम देव विद्यमान हैं ।। ६१-६२॥ वापर सात प्रकारको ऋद्धियों को प्राप्त और देवेन्द्रोंसे नमस्कृत चरणीवाले, गणधर देव समीचीन धर्मके प्रकाशक है ॥६३॥ यहापर पुरुषों में श्रेष्ठ संबद्ध (अनुबद्ध ) केवली और नाना प्रकारके तोंमें निरत साधुसमूह भी हैं ॥ ६ ॥ जो महापुरुष अंजन गिरिके सदृश चौरासी लाख हाथियों, इतने हा उत्तम रणों, नौ निधियों, अक्षीण कोष, और वायुके वेगके समान गमन करनेवाले अठारह करोड़ अश्वोंके स्वामी और निर्बाध पराक्रमके भारक होते हैं। वे चौदह रत्नोंके अधिपति, महाबलवान् और छयान हजार महिलाओं के स्वामी चक्रवर्ती वहां विद्यमान रहते हैं ॥ ६५-६७ ॥ अविच्छिन्न परम्परासे संयुक्त बलदेव, बासुदेव, और उनके प्रतिपक्षी ( प्रतिवासुदेव ) नृपति भी वहाँ धर्मके प्रभावसे उत्पन्न होते . १५ सिरिवरणा, श सरिवडाणा. २ पब एक्कक्क. ३ अश दुयिटिअण्णापुट्ठी न . . पद सस्स, ५ पब संबंधा. उपबश असायं. ७पब तह पडियक्खा, शपत्पेपिविक्खा. संतागणवंती, पसंभाणामस्पची, संताणाणस्पती, श संताणलि. Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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