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-७.७८1 सत्तम। उसो
[ १२५ रायाहिरायवसहा हॉति महाराय भद्धमंडलिया। तह सयलमंडलीया सम्मि महामंडलीया य ॥ सम्वाण विदेहाणं एवं सम्वेसु चेव विजयेसु । पुरिसाण उप्पत्ती णायव्वा होइ णियमेण ॥ .. कच्छाविजयस्त जहा समासदो वण्णणा समुहिट्ठा । सेसाणं विजयाणं पसेव कमो वियाणादि ॥.. सत्तारतोदेहि य वेवणगेण भाजिद। संतो। छक्खंडकच्छविजमो समासदो होहणायच्यो ॥ ७२ कपकासंडाण तहा विक्संभो भीलवंतपासम्म । सत्तसया तेत्तीसा छमागविहीणबेहोसा' ॥॥ एगत्तरि विण्णिसदा भट्टसहस्सा य जोयणा गेया । एर्ग' च कला दिवा खंडाणं होइ मायाम ॥ .. विजयाणं विक्की सरीण विखंभ सोधहत्ताणं । सेसं तिभागलद्धं खाणं होई विक्खंभं ॥ ७५ विजयाणं मायामे वेवड्दस्स य तहेव विक्खंभ' । सुद्धावसेसदलिदं खंडाणं' होइ भायाम ॥ ७६ भट्टकोससाहिया वारस बावीपजीयगमयाणि । कच्छ विजए दिह्रो वेदगिरिस्स भाषामो ॥ ७. पण्णासा' विक्खंभी पणुवीस सुंग रयदपरिणामो । सक्कोसळावगाडा तिसेविपरिमंडिभो दियो ॥ ७०
है॥६८॥ श्रेष्ठ राजाधिराज, महाराज, अर्धमण्डलीक, सकलमण्डलीक और महामण्डलीक भी यहाँपर विद्यमान रहते हैं ॥ ६९॥ इसी प्रकार सब विदेहोंके सभी विजयों में नियमस पुरुषोंकी उत्पत्ति जानना चाहिये ॥ ७० ॥ जिस प्रकार कच्छा विजयका संक्षेपसे वर्णन किया गया है उसी प्रकारका यही क्रम शेष विजयोंका भी जानना चाहिये ॥ ७१ ॥ रक्कारकोदा और विजया गिरिसे विभागको प्राप्त होकर कच्छा विजय संक्षेपसे छह खण्डोंसे युक्त जानना चाहिये ॥ ७२ ॥ नील पर्वतके पासमें कच्छाखण्डौंका विष्कम्भ सात सौ तेतीस योजन
और छह भागोंसे हीन दो कोश है ॥ ७३ ॥ उक्त खण्डोंका आयाम आठ हजार दो सौ इकत्तर योजन और एक कला प्रमाण कहा गया है ।।७४ ॥ विजयोंके विष्कम्ममें से नदियोंके विष्कम्भको घटाकर शेषके तीन भाग करनेपर जो लब्ध आवे उतना [२२१२१ - (६+६) ३ = ७३३३. यो.खण्डोंका विष्कम्भ होता है ।। ७५॥ विजयोंके
याममें से विजयार्धके विष्कम्भको कम करके शेषको आधा करनेपर खण्डोंका आयाम (१६५९२२ - ५० २= ८२७११६ यो.) होता है ।। ७६ ॥ कन्छ। विजयमें वैताढ्य पर्वतका आयाम बाईस सौ बारह योजन और साढ़े तीन कोश प्रमाण कहा गया है ।।७।। चादीके परिणाम रूप और तीन श्रेणियोंसे मण्डित इस दिव्य पर्वतका विष्कम्भ पचास योजन, उंचाई पच्चीस योजन और अवगाढ़ एक कोश सहित छह (६) योजन है
उश बोकोसा। २५ व एवं. प य वेदढस य विक्म, श वदड्टसयहामे विक्खम. उशदलिदक्वंजणं, पब दलिई खंडाणं. ५ उश अदाकोस, पब अटुकोस. ६श पापणासा. .उश सेटि.
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