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सचमे उद्देसो
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छध्वी च सहस्सा वरणयर ।' विविहरयणसंछष्णा । बहुसार भंडेणिवद्दा' कप्पूरमरीचिर्देरिपुष्णा ॥ ४८ पंचसयगामजुत्ता मडंबणामा हर्वति णायग्वा । चस्तारि सहस्साई' बहुविद्दधरसंकुला रम्मा ॥ ४९ seeणामाणि तदा धरणीधरपरिउडा धणसमिद्धा' । चढतील व सहस्सा बहुभवणविहूलिया दिव्या ॥ ५० सरिपष्वाण मज्जले खेडा णामेण होंति णायन्वा । सोलस वेव सहस्सा णाणाविहभवणसंण्णा ॥ ५१ गिरिवरसिहरेसु वहा संवाहा नामदो समुद्दिट्ठा | चढदस चैव सहस्सा कंचणमणिरंयणधरणिवहा ॥ ५५ छप्पण्ण रमणदीवा रयणाणं जणणि एव संजाना । सीदाउत्तर कूले" हवंति ते उवसमुदमि ॥ ५३ छण्णवगामकोडी उत्तुंगमतभवणकयसोहा । संविट्ठलद्धसीमा" कुक्कुडसंडेवया" दिग्वा ॥ ५४ धुवंतघयवडाया जिणभवणविहूसिया हये दिट्ठा" | मिच्छत्तभवणैरेंहिया गामादीणं समुद्दिट्ठा ॥ ५५ नाणामणिरयणमया जिणमवणविभूसिया परमरम्मा । मिच्छत्तमवणरहिया गामादीया समुद्दिट्ठा ॥ ५६ ससेव महामेषा भवरंजणसंणिमा सलिल पुण्णा । तह सप्त सप्त दिवसा वासारतम्मि वरिसंति" ।। ५७
वर्तन- भांड़ों के समूह से युक्त, कर्पूर व मरीचिसे परिपूर्ण और विविध रत्नोंसे व्याप्त ऐसे छब्बीस हजार उत्तम नगर होते हैं ॥ ४८ ॥ पांच सौ ग्रामोंसे युक्त और बहुत प्रकारके घरोंसे व्याप्त रमणीय चार हजार मटंब जानना चाहिये ॥ ४९ ॥ पर्वतसे वेष्टित, घनसे समृदूध और बहुतसे भवनोंसे विभूषित चौतीस हजार दिव्य कर्बट होते हैं ।। ५० ।। नदी और पर्वतके मध्य स्थित व नाना प्रकार के भवनोंसे सहित सोलह हजार दिव्य खेट जानना चाहिये ॥ ५१ ॥ पर्वतशिखरों पर स्थित व सुवर्ण, मणि एवं रत्नोंके गृहसमूइसे संयुक्त चौदह हजार संबाह कहे गये हैं ।। ५२ ।। रत्नों के उत्पादक जो छप्पन रत्नद्वीप ( अन्तद्वीप ) हैं वे सीताके उत्तर तटपर उपसमुद्रमें उत्पन्न होते हैं ॥ ५३ ॥ उन्नत एवं विशाल भवनोंसे शोभायमान संक्लिष्ट होकर प्राप्त सीमासे संयुक्त तथा मुर्गा के उड़ने योग्य अर्थात् पास पास स्थित ऐसे छपानबै करोड़ दिव्य ग्राम होते हैं ॥ ५४ ॥ ये प्रामादिक फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे संयुक्त, जिनभवनों से विभूषित और मिध्यादृष्ठियों के भवनों से रहित कहे गये हैं ॥ ५५ ॥ उक्त प्रामादिक नाना मणियों एवं रत्नोंसे निर्मित, जिनभवनोंसे विभूषित, अतिशय रमणीय और मिथ्यादृष्टियों के भवनोंसे रहित कहे गये हैं ॥ ५६ ॥ भ्रमर व अंजनके सदृश वर्णवाले तथा जलसे परिपूर्ण सातों ही महामेघ सात सात दिन तक रात-दिन बरसते हैं ॥ ५७ ॥ कुंद पुष्प
१ उश वारागरा, प ब बरागरा. २ प ब भड. ३ ब णित्रहाणिव्वहा. ४श करीचि. ५ उश सहस्साएं ६ उश भणसमिट्ठा, प व वणसमिधा. ७ उ श पव्वदोण. ८ प ब खंडा. ९ प ब कंचामणि. १० व कूलो. ११ उश किट्टिजद्धसीमा १२ उश संदेवया, प व संगीदया. मट्ठा. १४ प ब खत्तमवण १५ गाधेयं नोपलभ्यते उ-शप्रमोः । १६ उ श वर संति,
१३ श
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