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जंबूदोषपण्णत्ती
[७. ३८देसस्स तस्स मज्झे खमा णामेण पुरवरो रम्मी । रयणमयभवणाणिवहो कणयमाणिरयणसंगण्णो ॥ ३८ पायारसंपरिउडो मणितोरणमंरिमो मणभिरामो' । वरखाइएहि जुत्तो जिणभवणविहूसिमो परमरम्मो ३९ बारहजोयण गेमो मायामो पुरवरस्स णिहिटो । णवजोयणक्रिखंभो कंचणमणिरयणघरणिवहो ॥ .. गोउरसहस्सपउरी खडकीदाराणि होति पंचसया। बारहसहस्स रस्था सहस चउक्का समुट्ठिा ॥" एक्केक्कदिसाभागे वणसंग विविहकुसुमफलपउरा । तिण्णेव सया सट्ठी णायग्वा होति णियमेण ॥ ४२ तस्स गरस्स राया भणंतबलरूवतेयसंपण्णों । पंचधणुस्सयतुंगो देवासुरजक्खपरिवक्खो ॥ ४३ परमाउ पुग्वकोडी सम्मादिट्ठी विसालवरबुद्धी । भोगावभोगसहिमो छक्खंडणराहिमो धीरो ॥" बत्तीससहस्सा रायाणं सामिओ महासत्त।। तावदियपमाणाणं देसाणं महिवाई दिटो ॥ १५ णवणउदि च सहस्सा दोणमुहाई हवंति गायम्बा। सीदासरिजलसंभवखुल्लोवहिवरसमीवेसु ॥४६ भट्टेदाल सहस्सा णाणामणिरयणसंभवा दिया। तह पट्टणा वि णेया विसालउत्तुंगवरभवणा ॥ ७
देशके मध्यमें क्षमा नामक रमणीय उत्तम पुर है। यह पुर रत्नमय भवनोंके समूहसे सहित, मुवर्ण, मणि एवं रत्नोंसे व्याप्त, प्राकारसे वेष्टित, मणिमय तोरणोंसे मण्डित, मनको अभिराम, उत्तम खाईसे युक्त और जिनभवनोंसे विभूषित होता हुआ अतिशय रमणीय है ॥ ३८-३९ ॥ सुवर्ण, मणि एवं रत्नमय गृहोंके समूहसे सहित इस श्रेष्ठ पुरका आयाम बारह योजन और विष्कम्म नौ योजन प्रमाण निर्दिष्ट किया गया है ॥ ४०॥ इसमें एक हजार गोपुर, पांच सौ खिड़की द्वार, बारह हजार वीथियां और एक हजार चतुष्पय कहे गये हैं ॥४१॥ इसके एक एक दिशामागमें विविध कुसुमों एवं फलोंकी प्रचुरतासे युक्त तीन सौ साठ वनखण्ड जानना चाहिये ॥ १२ ॥ उस नगरका राजा अनन्त बल, रूप व तेजसे सम्पन्न; पांच सौ धनुष ऊंचा देव, असुर एवं यक्षाका शत्रु; एक पूर्वकोटि प्रमाण उत्कृष्ट आयुका धारक, सम्यादृष्टि, विशाल उत्तम बुद्धिसे संयुक्त, मोग-उपभोगोंसे सहित, छह खण्डोंका अधिपति, धीर, महाबलवान् बत्तीस हजार राजाओंका स्वामी, और इतने मात्र ( ३२०००) देशोंका अधिपति कहा गया है ॥ १३-१५॥ उक्त चक्रवर्तीके सीता नदीके जलसे उत्पन्न होनेवाले क्षुद्र समुद्रोंके समीपमें निन्यानबै हजार (९९०००) द्रोणमुख जानना चाहिये ॥१६॥ तथा विशाल व उन्नत उत्तम भवनोंसे संयुक्त और नाना मणियों एवं रत्नोंको उत्पन्न करनेवाले अड़तालीस हजार ( १८.००) दिव्य पट्टन भी जानना चाहिये ॥ १७॥ बहुत धन-सम्पत्ति व
१पद परमरम्मो. १९श परमो..पदारेण..पब सहस्स. ५ उशसहस हक्को समुक्टिो. पापपुण्यो, उशमणिसमवा.
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