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ससमो उसो.
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णवणडादि र सहस्सा बेसयपण्णास सोहणक्खादा । सोजाम्मि सुखसेसं विभंगविक्खंभ मागो' ॥ १९ पउणठाच सहस्सा छप्पण्ण सयं च सुरभवसेसं'। दोभागेण बलदं देवारण्णाण विक्खंभे ॥1. छप्पण्णं च सहस्सा सोहणरासी विहीण लोमम्मि । सेसं दलेण होदि य विक्खंभ भइसालस्स ॥ ३॥ णउदि वेव सहस्सा सोहणरासी समासदो गेया। सोज्झम्मि सुद्धसेसं होदि य मेरुस्स विक्वंभं ॥३१ सीदाए उत्तरदो गोलस्सदु दक्षिणेण भागेण । उत्तरकुरुस्स पुल्वे पकिमदो चित्तकूडस्स ॥ ३३ एदम्हि मंतरमहरछाविजभो त्ति णामदो क्षो। देसो भणाइणिणो बहुगामसमाउलो रम्मो॥ परचक्काईदिरहिदो णाणापासंडसमयपरिहीणो। धणधण्णरयणणियहो गोमहिसिकुलाउलसिरीभो ॥ १५ जवसालिउच्छुपउरो तिलमासमसूरगोदुमाइग्णो । दुभिक्खमारिरहियो णिचुच्छवतररमणीभो ॥३॥ गाणाजणपदणिवहो गरणारिवियकखणेहि परिपुण्णो । पोखरिणिवाविपउरी बहुविहदुमसंकुलो रम्मो ॥१.
+ ४००० + ५८४४ + ४४००० + १०००० = ९९२५० ) इस शोधन नामक राशिको शोध्य राशि से शुद्ध करके शेषमें छहका भाग देनेपर विभंगा नदियोंका विष्कम्भ होता है ॥ २९ ॥ चौरानबै हजार एक सौ छप्पन (३५४०६ + १००० + ७५० + ११००० + १०००० = ९४१५६ ) को शोध्य राशिसे कम करके शेषमें दोका भाग देनेसे जो लब्ध हो उतना देवारण्योंका विष्कम्भ होता है ॥ ३० ॥ छप्पन हजार (३५४०६ + १००० + ७५०+५८४४+१०००० = ५६०००) इस शोधन राशिको शोध्यमसे कम करके शेषको आधा करनेसे भद्रशाल वनका विष्कम्भ होता है ॥ ३१ ॥ नब्बे हजार ( ३५४०६ + ४००० + ७५० + ५८४४ + १४००० = ९०००० ) इस शोधन राशिको शोध्य राशिमेसे शुद्ध करनेपर जो शेष रहे उतना मेरुका विष्कम्म होता है ॥ ३२ ॥ सीता नदीके उत्तर, नील पर्वतके दक्षिण, उत्तर कुरुके पूर्व तथा चित्रकूट पर्वतके पश्चिम भाग; इस अन्तरमें कच्छा नामक विजय स्थित जानना चाहिये। यह देश अनादिनिधन, बहुत प्राोंसे व्याप्त, रमणीय, परचक्र व ईतिसे रहित, नाना पाखण्डी समयोंसे विहीन, धन-धान्य और रत्नों के समूहसे परिपूर्ण; गाय और भैंसोंके कुलेसे व्याप्त शोभावाला; जौ, शालि धान्य एवं ईखकी प्रचुरतासे सहित; तिल, उड़द, मसूर और गोधूम (गेहूं ) से परिपूर्ण दुर्भिक्ष व मारि (प्लेग आदि ) से रहित, सदा होनेवाले उत्सवोंके वादिनोंसे रमणीय, नाना जनपदोंके समूहसे संयुक्त, बुद्धिमान् नर-नारियों से परिपूर्ण, प्रचुर पुष्करिणी व वापियोसे सहित तथा बहुत प्रकारके वृक्षोसे व्याप्त होता हुआ रमणीय है ।। ३३-३० ॥ उस
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उश मागा, पब मागो..पब अवसेसो. पबलालस्स.४ पब मामेम, ५प. एदेहि. उशसे, . उदि, शदी, ८ उशपवरो.
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