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-६. १६५] छ8ो उद्देसो
[११५ बेगाउयअवगाढो अटेष जोयणसमुत्तुंगो । बे चेव कोसरुंदो रयणमो जिम्मलो दिवो ॥ १५५ बेजोयणउप्पइया धरणीदो तस्स हॉति साहायो । छज्जोयणतुंगानो मरगयपत्तेहिं छण्णाभो ॥१५६ साहोवसाहसहिमो मज्झे छज्जोयणा हवे बहलो । तिहरे चत्तारि हवे बहुविहमणिकुसुमफलणिवहो ॥ १५७ साहास होति दिव्वा पासादा कणयरयणपरिणामा । दक्षिणदिसाविभागे जिणइंदाणं समुट्टिा ॥१५८ कोसं भायामेण य कोसद्धं तह य होति विक्खंभा । देसूणयं च कोसं उच्छेहा' होति पासादा ॥ १५९ णामेण वेणुदेवो गरुडाणं महिवाई महासत्तो । सामलितरुम्मि णेया अच्छह दिवाणुभावेण ॥ १६० साहासिहरे सु तहा णाणाविहधयवडा समुत्तुंगा । परचामरछत्तत्तयसंजुत्ता हॉति णायब्वा ॥१६॥ चदुसु वि दिसाविभागे सामलिरुक्खा हवंति णायव्वा । चदु चदु चैव सहस्सा तह चेव य भादरक्खा ॥ दक्षिणपुग्वविसाए अभंतरपारिसाण भमराणं । सामलिपादवसंखा बत्तीससहस्स णिहिट्ठा ॥१६॥ तह दक्षिणे विणेया चालीससहस्स संबलीरुक्खा । मज्झिमपरिसाण तहा णायचा होति णियमेण ॥१६५ भट्टेदालसहस्सा बाहिरपरिसाण होति णायव्वा । दक्खिगपच्छिमभागे णिहिट्ठा सम्वदरिसीहि ॥ १६५
आठ योजन ऊंचा, दो कोश विस्तारसे सहित, रत्नमय, निर्मल और दिव्य शाल्मलि वृक्ष स्थित है ॥ १५४-१५५ ॥ पृथिवीसे दो योजन ऊपर जाकर उसकी छह योजन ऊंची
और मरकतमय पत्तेसे व्याप्त शाखायें हैं ॥ १५६ ॥ शाखा-उपशाखाओंसे सहित वह वृक्ष मध्यमें छह योजन व शिखरपर चार योजन .बाहल्यसे सहित और बहुत प्रकारके मणिमय कुसुमों एवं फलोंके समूहसे संयुक्त है ।। १५७ ।। इन शाखाओपर सुवर्ण एवं रत्नोंके परिणाम रूप दिव्य प्रासाद हैं । इनमें से दक्षिण दिशा विभागमें स्थित प्रासाद जिनेन्द्रोंके कहे गये हैं ॥ १५८ ॥ ये प्रासाद एक कोश आयत, अर्ध कोश विस्तृत और कुछ कम एक कोश ऊंचे हैं ॥ १५९ ॥ शाल्मलि वृक्षपर गरुड़कुमारीका खामी वेणु नामक महाबलवान् देव दिव्य प्रभावसे रहता है, ऐसा जानना चाहिये ।। १६० ।। शाखाशिखरोंपर उत्तम चामरों व तीन छत्रोंसे संयुक्त उन्नत नाना प्रकारको ध्वजा-पताकायें जानना चाहिये ॥ १६१ ।। चारों ही दिशाविभागोंमें स्थित चार चार हजार शाल्मलि वृक्ष आत्मरक्ष देवोंके जानना चाहिये ॥ १६२ ॥ दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशामें अभ्यन्तर पारिषद देवों के बत्तीस हजार शाल्मलि वृक्ष निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ १६३ ॥ तथा दक्षिण दिशामें नियमसे मध्यम पारिषद देवोंके चालीस हजार शाल्मलि वृक्ष हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ १६४ । दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य ) भागमें सर्वदर्शियों द्वारा निर्दिष्ट किये गये बाह्य पारिषद देवोंके अड़तालीस हजार शाल्मलि वृक्ष जानना चाहिये ॥ १६५ । पश्चिम दिशामें भी सात अनीक देवोंके सात वृक्ष
१प अद्वेष हु जोयणा समत्तुंगे।. २ प व उपहउ परणीउ. ३ उश सहाओ. ४ उश उथे.
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