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[छट्टो उद्देसो ]
णमिऊण पुष्पदंतं सुदिवसंथुयं विगयमोहं । देउत्तरकुरुखेत्तं वोच्छामि जहाणुपुच्चीए ॥ १ पुत्रेण मालवंतो अवरेण गंधमादणो सेलो । मेरुस्स य उत्तरदो दक्खिणदो नीलवंतस्मै ॥ २ एदम्हि अंतरम्हि दु उत्तरकुरु वित्थडो सहस्साणि । एयारस बादाला अद्वसदा बेकला अधिया ॥ ३ तेवण्णं च सहस्सा जीवा तस्सुत्तरम्हि भागम्हि । वंसधरो हि दु मूले नीलवंतो' समल्लीणो ॥ ४ सद्धिं चैव सहस्सा चत्तारि सया हवंति अट्ठरसा । बारसकला समधिया धणुपडं तस्स गायब्वा ॥ ५ तीसं चैव सहस्सा बे चैव सदा णउत्तरा होति । भागा छच्चेव हवे आयामो मालवंतस्स ॥ ६ इसुवग्गं चउगुणिदं जीवावग्गम्हि पक्खिवित्ताणं । चदुगुणिदिसुणा भजिंद' णियमा वट्टस्स विक्खंभो ॥ एगत्तरि य सहस्सा तेदालसदं कला य चदुरो दु । उत्तरकुरुविक्खंभो कलणवभागणे संजुत्तो ॥ ८ गाणविभ ओगाढसंगुणं कुज्जा । चदुगुणिदस्स दु मूलं सा जीवा तत्थ णायव्वा ॥ ९
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सुरेन्द्रपतिसे संस्तुत और मोहसे रहित पुष्पदन्त भगवान्को नमस्कार करके आनुपुर्वीके अनुसार देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्रको कहते हैं ॥ १ ॥ जिसके पूर्व में माल्यवन्त और पश्चिम गन्धमादन पर्वत हैं वह उत्तरकुरु क्षेत्र मेरु पर्वतके उत्तर और नील पर्वतके दक्षिण इस अन्तराल में स्थित है । इसका विस्तार ग्यारह हजार आठ सौ ब्यालीस ( ११८४२ ) योजन व दो कला अधिक है ॥ २-३ ॥ उत्तर भागमें उसकी जीवा तिरेपन हजार योजन प्रमाण है । इसके मूलमें नीलवान् वर्षधर ( कुलपर्वत ) लगा हुआ है ॥ ४ ॥ उसका धनुष्पृष्ठ साठ हजार चार सौ अठारह योजन और बारह कलाओंसे अधिक जानना चाहिये ॥ ५ ॥ माल्यवान् पर्वतका आयाम तीस हजार दो सौ नौ योजन और छह कला (३०२०९ ) प्रमाण है || ६ || बाणके वर्गको चौगुणा करके जीवाके वर्गमें मिलाकर जो प्राप्त हो उसमें चौगुणे बाणका भाग देनेपर वृत्त क्षेत्रका विष्कम्भ होता है ॥ ७ ॥ उत्तरकुरुका विष्कम्भ इकत्तर हजार एक सौ तेतालीस योजन और नवम भाग ( ३ ) से सहित चार कला प्रमाण है [ ( २२५००० ) " × ४ + ५३०००' ÷ ( २२५००० × ४ ) ७११४३,७६ ] ॥ ८ ॥ बाणसे रहित विष्कम्भको बाणसे गुणित करे, फिर उसे चारसे गुणित करके वर्गमूल निकालनेपर जो प्राप्त हो वह जीवाका प्रमाण जानना चाहिये [ उत्तरकुरुका वृत्तविष्कम्भ ७११४३ × ४ = ५३००० यो ] ॥ ९ ॥ छहसे गुणित बाणके वर्गको जीवाके
१ २ १.६ ५४ ९०;
√ १२१६५४ ५०
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१ उश देवत्तर. २ उश मालवतो.
३ प ब णीलवणस्स. ४ श केवल ५ श हंसधरंहि. ६ उ णीलवण्गो, श णीलत्रणो. ७ उ विनिदिगुणं, प..., व विगिहि गुणं, श विदुदिगुणं. ८ उश भजिदो. ९ प ब भागेग.
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