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________________ -५. १२५] पंचमो उद्देसो जह भहसालसुवणे जिणभवणावण्णणा हवे स्थला । तहगंदीसरदीये जिणभषणावण्णणा होइ ॥ १२१ जिणभवणथूहमंडवपेक्खाघरकप्परुक्खधयणिवहा । वणसंडवाविगोउरपायारा बेहया दिवो ॥ १२२ उच्छहा आयामा विस्खंभवगाह ताण सव्वाणं । गंदीसरवरदीवे सरिसा ते होंति पदमवणे ॥ १२३ गंदणसोमणपंडुववणाणे भवणा हवंति एमेव । गवरि विसेसो जाणे अद्धद्धा होति णिद्दिडा ॥ १२४ चउधिहसुरगणणमियं अइसयचउतीससंजुयं परमं । वरपउमणदिणमियं चंदप्पहजिणवरं वंदे ।। १२५ ॥ इय जंबूदीवपण्णत्तिसंगहे महाविदेहाहियारे मंदरगिरिजिणभवणवण्णणो णाम पंचमो उद्देसो समत्तो ॥ ५ ॥ जिनभवनोंका सम्पूर्ण वर्णन किया गया है उसी प्रकार नन्दीश्वर द्वीपमें स्थित जिनभवनोंका भी वर्णन समझना चाहिये ॥ १२१ ॥ जिनभवन सम्बन्धी स्तूप, मण्डप, प्रेक्षागृह, कल्पवृक्ष . व घजासमूह, वनखण्ड, वापी, गोपुर, प्राकार और दिव्य वेदिका इन सबका उत्सेध, आयाम, विष्कम्भ व अवगाह नन्दीश्वर द्वीपमें प्रथम ( भद्रशाल ) वनके सदृश है ॥ १२२-२३ ॥ नन्दन, सौमनस और पाण्डुक वनोंके जिनभवन भी इसी प्रकारके हैं। विशेष केवल · इतना . जानना चाहिये कि वे प्रमाणमें क्रमशः आधे आधे निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ १२४ ॥ में चार प्रकारके देवगणों द्वारा नमस्कृत, चौंतीस अतिशयोंसे संयुक्त और उत्तम पद्मनन्दिसे नमस्कृत श्रेष्ठ चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रकी वन्दना करता हूं ॥ १२५ ॥ ॥ इस प्रकार जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसंग्रहमें महाविदेहाधिकारमें मन्दरगिरिजिनभवन वर्णन नामक पांचवां उद्देश समाप्त हुआ ॥ ५ ॥ १उश जिह. २उशनेइया दिघा, पब चेहया दिवा. ३ पब सरिसा होति. ४ उ प श . पंडुवणाणा ५ उश देवं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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