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पंचमो उद्देसो
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बलिपुप्फगंधमक्खयपदीववरधूवसुरहितोएहि । अचंति य वदति य सुरपवरा सददकामम्मि ॥ ८२ सवंगसुंदरीमो सम्वालंकारभूसिदंगीमो । कसमहुरसुस्सरामो इंदियपहायणकरीमो ॥ ३ सुकुमारकोमलामो जोवणगुणसालिणीभो सम्बामो । पीदि जगति' तामओ अप्परिरूवेहि स्वेहि ॥ ८४ जिणईवाणं वेरियं गणहरदेवाण हलघराण' च । जिणभवणेसु वि गिर भन्छरसामो पणश्चंति ॥ ८५ घरपटहरिमहलमुदिंगकंसालकाहलादीहिं । वायंति सुग तूरं ज्ञल्लरिबहुसंखेसदेहिं ॥ ८६ महुरेहे मणहरेहि य दुंदुहिघोसेहि दिखवणेहि । गायति किग्णरगणा संभूदगुणं प्रिणिंदाणं ॥ ८. गंधवगीयवाइयणाव्यसंगीसदगंभीरं । घरभइसालभवर्ण समासदो हो णिद्धिं ॥ ८. जंबूदीवस्त जहा भेरुस्स जिशिंददेवरभवणा । भवससमंदराण जिणिदभवणा तहा चेव ॥ ८९ कैडपम्वदेसु एवं वखारापस्वदेसु एमेव । गणवणेसु एवं निणभवणा हाँति जायग्या ! ९. णवरि विसेसो णेमो वक्खारणगादिएसु भवणाणं । विक्खंभा मायामा उच्छेहा हॉति भण्णण्णा ॥९॥
श्रेष्ठ देव सर्वदा बलि (नैवेय) पुष्प, गन्ध, अक्षत, प्रदीप, उत्तम धूप व सुगन्धित जलसे पूजा करते हैं और वन्दना करते हैं ॥ ८२ ॥ इन जिनभवनामें समस्त अंगोंसे मुन्दर, सत्र अलंकारोंसे भूषित शरीरवाली, कल एवं मनोहर सुन्दर स्वरसे संयुक्त, इन्द्रियोंको आह्लादित करनेवाली, सुकुपार, कोमल, यौवनगुणोंसे शोभायमान, तथा अप्रतिम ( अनुपम ) रूपोंसे प्रीतिको उत्पन्न करनेवाली वे अप्सरायें नित्य जिनेन्द्र, गणधर देव और बलदेवोंके चरित्रका अभिनय करती हैं ॥ ८३-८५ ॥ देवगण झालर एवं बहुतसे शखौके शब्दोंके साथ उत्तम पटह, मेरी, मर्दल, मृदंग, कांस्याल और काहलादिक बाजेको बजाते हैं ॥ ८६ ॥ किनरगण मधुर एवं मनोहर दुंदुभिघोषाक साथ दिव्य वचनों द्वारा जिनेन्द्रोंके प्रचुर गुणोंको गाते हैं । ८७ ॥ गन्धोंके गीत, वादित्र, नाटक एवं संगीतके शब्दसे गम्भीर उस उत्तम भद्रशाल वनके जिनभवनका स्वरूप संक्षेपसे निर्दिष्ट किया गया है ॥ ८८ ॥ जिस प्रकार जम्बूद्वीप सम्बन्धी मेरुके उत्तम जिनेन्द्रभवनों का स्वरूप कहा है उसी प्रकार शेष मेरु पर्वतोंके जिनेन्द्र भवनोंका स्वरूप समझना चाहिये ॥ ८९ ।। इसी प्रकार कुलपर्वतोपर, इसी प्रकार ही वशार पर्वतोंपर और इसी प्रकार नन्दन वनोंमें मी जिनमवन होते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ ९० ॥ परन्तु विशेष इतना जानना चाहिये कि वक्षार पर्वतादिकों के ऊपर स्थित जिनभवनोंका विष्कम्भ, आयाम और उत्सेध मिन्न भिन्न होता है ॥ ९१ ॥ चार निकायके देव महा विभूतिके साथ यहां आकर
१५ कुसकुमारा, ब कुसुकुमार. २ पब जोव्वाण. ३ उश जणंदि. ४ पब जिणयंदाणं. ५ पब हरिहराणं. ६ पब य णचंति.७ पब मुदंग. ८ उ यंति, श वायवि. १ पब बहुससंख. १. उश संघाय. "पब वयणं. १२ पब जिणिदयंद. १३ पब मंदिराण. १४ उश कुलु. १५उ विखेसा णेया, श विसेसा या पब गाविपस. १७श अणोण्णा, पब अण्णाणा.
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