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पंचमो उसो
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तेहिंतो गंतृणं पुग्वदिसाए पुणेो वि णायन्को' । वरतोरणं विचित्तं मणिकं चणश्वणं ॥ ६२ जोयणसद्धगं तदवित्थार मासुरं दिव्वं । मुत्तादामेणद्धं वरघंटाजालरमणीयं ॥ ६३ तत्तो परं विचित्ता पासादा गोउराण पासेसु । जोयणस्य विद्धा दो दो दुहवीत गायन्या ॥ ६ तत्त परं विचित्ता धयणिवा विविर्देवष्णजादीया । असिदी सहस्त्र संखा गिदिट्ठा होंति णायन्वा ॥ ६९ तोरणसय संजुत्ता घरवेदी परिउडा समुत्तुंगा । सायरतरंगभंगा सइिंति महाधया रम्मा ॥ ६६ तो परं वियाणद वणलंड विविधपायचाद्दण्णं । वणवेदिहि जुत्तं णाणामणिरयणपरिणामं ॥ ६७ रयणमयपीढसोहं मणितोरणमंडियं मणभिरामं । कणयमय कुसुमसोहं मरगयवरपणं ॥ ६८ चंपयभसेोयगहणं सत्तच्छय मंबकल्पतरुणिव । घेरुलियफलसमिद्धं विदुमसाद्दाउसिरीयं ॥ ६९ ताणं कप्पदुमाणं मूकेसु हवंति चदुसु वि दिसासु । जिण दाणं' पडिमा सवाडिद्देश विशयति ॥ ७० सीदासणछत्तत्तयभामंडल चामरादिसंजुत्ता | पलियं कारणसंगद' अगोत्रमा रुवसंठाणा ॥ ७१
मणि, सुवर्ण एवं रत्नोंसे व्याप्त - तोरण पचास योजन ऊंचा, इससे
विचित्र उत्तम तोरण जानना चाहिये ॥ ६२ ॥ यह भाधे ( २५ यो. ) विस्तारसे सहित, भासुर, दिव्य, मुक्कामाला से संयुक्त और उत्तम घंटा समूइसे रमणीय है ॥ ६३ ॥ इसके आगे गोपुरोंके पार्श्वभागों में सौ योजन ऊंचे दो दो विचित्र प्रासाद जानना चाहिये ॥ ६४ ॥ इसके आगे विविध वर्ण व जातिके एक हजार अस्सी ( १०८ × १० ) संख्या प्रमाण विचित्र वाओं के समूह निर्दिष्ट किये गये हैं ।। ६५ ॥ सौ तोरण से संयुक्त व उत्तम वेद से वेष्ठित वे ऊंची रमणीय महा ध्वजायें समुद्र की तरंगों के भंगके समान शोभायमान होती हैं ॥ ६६ ॥ इसके आगे विविध पादपोंसे व्याप्त, वनवेदिकाओंसे युक्त, नाना मणियों व रत्नोंके परिणाम रूप, रत्नमय पीठसे शोभित, मणिमय तोरणोंसे मण्डित, मनोहर, सुवर्णमय कुसुमोंसे शोभित, मरकत मणिमय उत्तम पत्तों से व्याप्त चंपक व अशोक वृक्षों से गहन; सप्तच्छद व आम्र कल्पवृक्षोंके समूइसे परिपूर्ण, वैडूर्यमय फलों से समृद्ध, और मूंगामय शाखाओं की शोभासे संयुक्त मनखण्ड जानना चाहिये ।। ६७-६९ ।। उन कल्पवृक्षों के मूल भागोंमें चारों ही दिशाओं में प्रतिहार्य सहित जिनेन्द्रोंकी प्रतिमायें विराजमान हैं ॥ ७० ॥ ये प्रतिमायें सिंहासन, तीन छत्र, भामण्डल और चामरादिसे संयुक्त, पल्यंकासनसे स्थित और अनुपम रूप व संस्थान से युक्त है ॥ ७१ ॥ इस प्रकार संक्षेपसे जम्बूद्वीप सम्बन्धी मंदर पर्वतके भद्रशाल वनमें स्थित
१ श णायग्ना २ प व दिग्बा २ ज श विचित. ४ व विवह. ५ उ रा पायवाद, प पाणायण व पाहवाहणं. ६ प व मरगयवपत्त, श मरगयपरवत्त. ७ उ श सहाउल, प ब बाहय ८ उश मेनईदा ९ पळियंकणिसणगदा, प पळियंकसंगदा, व पक्कियंकण संपदा, हा प्रक्रियेकणिसणानंदा.
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