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जंबूदीवपण्णती
[१. २१५
पाहत्तरिलक्खजुया छादाला सत्सकोडिसय संखा । सत्ताणीयाण सहा उणवण्णाणं' छाणं ॥ २४५ चुलसीदिलक्खगुणिदे सत्तावीसुत्तरेण य सएण । सत्तगुणेणुप्पज्जह सत्ताणीयाण परिसंक्षा ॥२५ चुलसीदिलक्खदेवा पढमाए तह यै होति कच्छाए । सवाणं भणियाणं भाविधणं एस णिढेि ॥ १४. विदियादीकच्छाणं दुगुणा दुगुणा हवंति णादग्या । एवं सत्त वि कच्छा णिहिट्ठा सम्बदरसीहि ॥ २४८ सोहर्मेसुरवरस्स दु सत्ताणीया समासदो वुत्ता । मवसेससुरिंदाणं एसेव कमो मुणेयम्वो ॥ २५९ एसेच लोयपालाण चारुरूवाण देवरायाणं । गरि विसेसो णेनो परिवारा होति अद्धद्धा ॥ २५० धणुफलसत्तितोमरणाणाविहपहरणेहि बहुवेहि । इंदस्स पायरक्खा असंखदेवा मुणेयम्बा ॥ २५॥ इंदो वि देवराया आरुहिऊणं गयंदपट्टम्मि । सम्वादरेण जुत्तो गच्छइ परमाए भत्तीए ॥ २५२ भह सो सुरिंदहस्थी एरावणणामदो ति विक्खाभो । जोयणलक्खपमाणं विउठवह जिम्मलं देई ॥ २५॥
सम्बन्धी उनचास कक्षाओं की संख्या सात सौ छयालीस करोड़ छयत्तर लाख है ॥२४५॥ सातसे गुणित एक सा सत्ताईससे चौरासी लाखको गुणा करनेपर उपर्युक्त सात अनीकोंकी संख्या उत्पन्न होती है [ ८४०००००४ (१२७४७) = ७४६७६००००० ] ॥२४६॥ प्रथम कक्षामें चौरासी लाख देव होते हैं। यह सब अनीकोंका आदिधन कहा गया है ॥ २४७ ।। द्वितीयादिक कक्षाओंका प्रमाण उत्तरोत्तर इससे दूना दूना जानना चाहिये । इस प्रकार सर्वदर्शियोंने सातों कक्षाओंका स्वरूप कहा है ॥२४८ ॥ यहां संक्षेपसे सौधर्म इन्द्रकी सात कक्षाओंका कथन किया गया है। शेष सुरेन्दोंकी सात अनीकोंका मी यही क्रम समझना चाहिये ॥ २४९ ॥ सुन्दर स्वरूपवाले इन्द्रोंके लोकपालोंका भी यही क्रम जानना चाहिये । विशेषता केवल यह है कि उनके परिवार आधे आधे होते हैं ॥ २५० ॥ धनुषफलक, शक्ति और तोमर इत्यादि नाना प्रकारके बहुतसे शस्त्रोंसे सुसज्जित असंख्यात देव इन्द्रके पादरक्षक जानना चाहिये ॥ २५१ ॥ देवोंका राजा इन्द्र भी गजराजकी पीठपर चढ़कर पूर्ण आदरसे युक्त होता हुआ अतिशप मक्तिसे वहाँ जाता है ॥ २५२ ॥ ऐरावण नामसे विख्यात वह इन्द्रका हाथी एक लाख योजन प्रमाण निर्मक देहको विक्रिया करता है ॥ २५३ ॥ शंख, चन्द्र और कुंद पुष्पके समान
उश सत्ताणीयाणि. २ उश उणवणाणं, पब उवण्णाणं. ३ उ शताह य. ४ पब सोहम्मि' ५ उश ता. ६ उ श एसे कमो. 0 उ लोयपालारा चारु, प लोयपाला पार, व लोयपाला चार, श लोयपादाण चार. ८ पब स, श णिओ. ९ ब पहफलिह. १. श पहरिणेहि. "उश विउपयर, पप विसवइ.
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