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- ४. २४४ ]
चउत्थो उद्देसो
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कंचणदंगा' मणिरयणफुरंतभासुराडोवा । चामरचलंतसिहरा णील संकुला विदिए ॥ २३६ वेरुविणिवा कभदवण्णेहि वत्थणिवद्देहि । देवकुमारकरस्था पंडुयसंकुल । तदिएँ ॥ २३७ करिसीद्दवस इदप्पणसिद्दिसौर सगरुडचक करेंविसिहरा | मरगयदंडुरूंगा कणयमया तह य चोथीषु ॥ २३० उग्भिण्णैकमळपाडलमंदारासोकि सुकुसुमाभा । विहुमदंडुत्तुंगा पडमध पंचमाए दु ॥ २३९ गोखीर कुंदहिमचयसरयब्मतुसारहारसंकाला | निम्मलचणदंडा धवलधया छट्टकच्छाए ॥ २४० मणिगणफुरंत दंडा मुत्तादामेहिं मंडिया दिव्वा | धवलादवत्तविहा" सत्तमियाए दु कच्छा ॥ २४१ एवं सत्त विकच्छा भिच्चाणीयाण होंति णायन्त्रा । जिणभत्तिरायरत्ता गच्छंति महाणुभावेण ॥ २४२ बावण्णा कोडीओ बाणउद्दा लक्ख होंति गिहिट्टा । धयणिवद्दाणं संखा पवणपणञ्चतसेोता ॥ २४३ तेवण्णा कोडीमो छावरिलक्ख कुंदधवलाणं । छत्ताणं परिसंखा णायन्वा रयणश्चित्ताणं ॥ २४४
सुवर्णदण्ड से संयुक्त, मणि एवं रत्नोंके प्रकाशमान आटे पसे सहित तथा शिखर पर चलते हुए चामरोंसे शोभायमान नीली ध्वजाओंसे संयुक्त होते हैं ।। २३६ ॥ तृतीय कक्षामें बैडूर्य मणिमय दण्डसमूह से संयुक्त और कपोतवर्ण वस्त्रसमूहों से सहित चे कुमार देवोंके हाथोंमें स्थित जासमूह शुक्लवर्ण होते हैं ॥ २३७ ॥ चतुर्थ कक्षा में हाथी, सिंह, वृषभ, दर्पण, मयूर, सारस, गरुड़, चत्र, सूर्य और चन्द्र, ये उन्नत मरकतमय दण्डसे संयुक्त ध्वजायें सुवर्णमय ( पीत ) होती हैं ॥ २३८ ॥ पांचवीं कक्षा में विकसित कमल, पाटल, मंदार, अशोक और किंशुक कुसुमके समानं कान्तिवाली पद्मध्वजायें मूंगे के उन्नत दण्डसे संयुक्त होती हैं ।। २३९ ॥ छठी कक्षा में गोक्षीर, कुंद पुष्प, हिमसमूह, शरत्कालीन मेघ, तुषार और हारके सहरा धवल ध्वजायें निर्मल सुवर्णदण्डसे संयुक्त होती हैं ॥ २४० ॥ सातवीं कक्षा में मणिगण से प्रकाशमान दण्ड से सहित और मुक्तामालाओंसे मण्डित दिव्य धवल आतपत्रों के समूह होते हैं ।। २४१ || इस प्रकार भृत्पानीकों की सात कक्षायें होती हैं जो जिनभक्तिरागमें अनुरक्त होकर महा प्रभाव से जाती हैं ॥ २४२ ॥ पवन से प्रेरित होकर नाचनेवाळी उन शोभायमान ध्वजाओंके समूहों की संख्या बावन करोड़ बानबै लाख निर्दिष्ट की गई है || २४३ ॥ कुन्द पुष्पके समान धत्रळ और रत्नोंसे विचित्र छत्रोंकी संख्या तिरेपन करोड़ छयत्तर लाख जानना चाहिये ॥ २४४ ॥ सात अनीको
१ ब दंगा. २ उश नीलव्यय, प ब गोलम्मुय ३ उश पंडुझय. ४ प तिदिए, व तिदिये. ५ प ब सिह ६ व गडुडवक्क ७ प उमग्भिण्ण, व उमज्जिण. ८ ष श मंदारसोय ९ उ प बा पउमज्झया. १० उ श्रवक्राद्रवतिणिवा, श धवलदवतिणिवहा.
नं. दी. ११.
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