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________________ -१. २२४ ] चउत्यो उद्देसो [७९ बलदेवहरिगणाण य तप्पडिवक्खाण तह य वरचरियं । णचंति अमरविंदा णिहिट्ठा तदियकग्छाए' ॥२.५ चोइसरयणवईणं णवणिहिमक्खीणकोसणाहाणं । चक्कहराण य चरियं चउत्थकछम्मि णच्चंति ॥ २१६ सव्वाणं परिमाण सळोयवालाण सुरवरिंदाणं । चरियं णच्चंति' सुरा कच्छाए' पंचमाए दु ॥ २१७ जिम्मळवरबुद्धीणं अणिमादिविसुद्धरिद्धिपत्ताण । गणहरदेवाण सुरा चरियं णचंति छट्ठीए ॥ २१८ घरपाडिहरमासयकल्लाणभणंतसोक्खजुत्ताणं । जिर्ण इंदाणं चरियं सत्तमकच्छम्मि णचति ॥ २१९ तेवण्णकोडिदेवा छाहत्तरिलक्ख दिव्वदेहधरा । णचंति य जिणचरियं सुरसुंदरिसंजुदा धीरा ॥ २२० इण्टाठाणं विरलिय काऊणं एयरूवपरिहाणी"। इच्छगुणं दाऊण २५ विरलियरवेसु सम्वेसु ॥२२॥ अण्णोण्णभत्येण य जाएणय तेण रासिणा गणिदे१३ । इच्छाण मूलरासिं इच्छधणं होह सव्वाण" ॥२२२ रूऊणे अद्धाणे विरलिय रासिम्मि इच्छगुण दिग्णे । अण्णोण्णगुणण हदे भादिधर्ण हवइ इच्छफलं ॥ २२३ दिग्वामल देवधरा दिवालंकारभूसियसरीरा। जच्चंता गायंता मेरुं तत्तो समुप्पड्या ॥ २२४ प्रतिशत्रुओंके (प्रतिनारायणेकि ) उत्तम चरित्रका अभिनय करते हैं ॥ २१५॥ चतुर्थ कक्षाके नर्तक देव चौदह रत्नोंके अधिपति और नौ निधियों तथा अक्षीण कोषके स्वामी चक्रवर्तियोंके चरित्रका अभिनय करते हैं ॥ २१६ ॥ पंचम कक्षाके नर्तक देव चरमशरीरियों और लोकपालों सहित समस्त इन्द्रोके चरित्रका अभिनय करते हैं ॥ २१७ ॥ छठी कक्षाके नर्तक देव निर्मल उत्तम बुद्धिके धारक तथा अणिमादि विशुद्ध ऋद्धियोंको प्राप्त हुए गणधर देवोंके चरित्रका अभिनय करते हैं ॥ २१८ ॥ सातवीं कक्षाके नर्तक देव उत्तम प्रातिहार्य अतिशय, कल्याणक एवं अनन्त सुखसे संयुक्त जिनेन्द्रोंके चरित्रका अभिनय करते हैं ।। २१९ ॥ दिव्य देहके धारक उपर्युक्त तिरेपन करोड़ छयत्तर लाख (७ - १ = ६; २ x २ x २४ २x२x२ = ६४, ८४०००००४ ६४ = ५३७६०००००) धीर नर्तकानीक देव देवांगनाओंसे संयुक्त होकर जिनचरित्रका अभिनय करते हैं ॥ २२० ॥ इच्छित स्थानको एक अंकसे हीन कर विरलन करके विरलित सब अंकोंके प्रति इच्छित गुणकारको देकर परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उससे इच्छित मूल राशिको गुणा करनेपर इच्छित सर्वधन प्राप्त होता है ( देखिये पीछे गाथा २०४-५) ॥ २२१-२२२ ॥ एक कम अध्वानका ( स्थानोंका ) विरलन करके विरलित राशिके ऊपर इच्छित गुणकारको देकर परस्पर गुणित करनेसे जो प्राप्त हो उससे आदि धनको गुणा करनेपर इच्छाफल ( इच्छित धन ) प्राप्त होता है ( देखिये पीछे गाथा २०४-५) ॥ २२३ ॥ दिव्य एवं निर्मल देहके धारक और दिव्य अलंकारोंसे विभूषित शरीरवाले उक्त देव नाचते गाते हुए वहांसे मेरुके ऊपर जाते हैं ।। २२४ ।। गन्धवोंकी सेनाके श्रेष्ठ देव जिन भगवान्के जन्मसे १ पब तप्पवक्रवाण. २ श पियकच्छाण. ३ श सेलोय ४ श गच्छंति. ५ श गच्छाए. ६ उ मरा. कच्छा पंच उडमाए दु. श सुरों करेलीय छडमाए दु. ७ उ श अइसया, प अइसुय, ब अहिसुय, ८ उश भण. १ उश देहदिवघरा. १० उश णचंति जिणवरेयं. १५उश परिहाणा, ब परिहाणं. ११उदाऊणं णाय, श दाऊणं णि य. १२ उशजायेण. १३ पब तोरणासिणा, गणिदो १४ उश इच्छाणं होह सम्बघणं. Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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