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उत्थो उद्देस
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कणयादवत्तचामरघयव देधुन्वंत भासुराडोवा । निद्धंत कैणय सुघडियर हैपउरा तदियकच्छम्मि ॥ १७६ मरगयरयणविणिम्मिय बहुचक्कुप्प गैस गंभीरा । [ "दुब्वंकुरदलसंगिव महारहा तह चउत्थीए || १७७ कक्केयणमणिणिम्मिय बहुचक्क घुलंत सद्दगंभीरा | ] णोलुप्पलदल संणिभ महारदा होंति पंचमिए ॥ १७८ वरपड मरायमणिमयवरधुर अक्खचक्क संघडिया । पष्कुलकमलसंणिभ महारहा होंति छट्टीए ॥ १७९ सिद्दिकंठपण्णमणिमयणिम्मल किरणोद्दजालपज्जलिया । वरईदणीक संणिभ महारद्दा होंति सत्तमिए' ।। १८० एवं महारहाणं सत्त वि कच्छा जलंतमणिकिरणा । आयासं छायंता चलिया जिणजम्मकलाणे || १८१ वज्र्जततूरणिवा रद्दकच्छा' अंतरेसु सध्येसु । गच्छंता पवररहा सोइंति मणोहरा तुंगा ॥ १८२ बहुदेव देविपुण्णा वरचामरछत्तधयवडा णिवहा । लंबेतकुसुममाला भच्छेर यरूवसंठाणा ॥ १८३ पुव्वक्कण या मायारहिएण चरणसुद्वेण । धम्मेण तेण लद्धा ईदेण महाविहूईभो ॥ १८४ खरपवणवायवियलिय खारो वहिवरत रंगणिवण्णा" । वरसियचलंतचामर धवलस्सा पढमकच्छा ॥ १८५
ध्वजपटोंके आटोप ( आडम्बर ) प्रकाशमान तथा सुवर्ण से निर्मित प्रचुर रथ गमन करते हैं ।। १७६ ॥ चतुर्थ निर्मित बहुत चाकों से उत्पन्न हुए शब्दसे गम्भीर और वर्णवाले महारथ होते हैं ॥ १७७ ॥ पांचवीं कक्षा में कर्केतन
अग्निसंयोग से संशोधित निर्मल कक्षामें मरकत मणियों से दूर्वाङ्कुर के पत्तोंके सदृश रत्नोंसे निर्मित व
बहुत से
चाके घूमने के शब्द से गम्भीर महारथ नीलोलपत्र के सदृश वर्णवाले होते हैं ॥ छठी कक्षा में उत्कृष्ट पद्मराग मणिमय उत्तम धुरा, दृढ़ अक्ष एवं चाकस मद्दारथ प्रफुल्ल कमलके सदृश वर्णवाले होते हैं ॥ १७९ ॥ सातवीं कक्षा में मयूरकण्ठके समान वर्णवाले व मणियोंसे निर्मित निर्मल किरणसमूहसे देदीप्यमान महारथ उत्तम इन्द्रनील मणिके सदृश कान्तिवाले होते हैं ॥ १८० ॥ इस प्रकार प्रकाशमान मणिकिरणों से सहित महारथोंकी सात कक्षायें आकाशको आच्छादित करती हुई जिनजन्मकल्याणक में जाती हैं । १८१ ॥ सब रथ कक्षाओं के मध्यमें बजते हुए वादित्रोंके समूइसे सहित, उन्नत व मनोहर उत्तम रथ गमन करते हुए शोभायमान होते हैं ।। १८२ ॥ बहुतसे देव देवियों से परिपूर्ण; उत्तम चमर, छत्र और ध्वजापताकाओंके समूह से सहित; लटकती हुई कुसुमोंकी मालाओं से सुशोभित, तथा आश्चर्यजनक रूप एवं आकृतिसे संयुक्त, उक्त रथ रूप महा विभूतियां सौधर्म इन्द्रको पूर्वकृत निष्कपट शुद्ध चारित्र धर्मसे प्राप्त होती हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ १८३ - १८४ ॥ प्रथम कक्षा में तीक्ष्ण पवन के घातसे विचलित हुए क्षीरोदधिकी उत्तम तरंगों के सदृश वर्णवाले और चलते हुए उत्तम धवल चामरोंसे सहित धवल अश्व होते हैं ॥ १८२ ॥ द्वितीय
रूप
१ उश धयवर २ प ब निद्धत्त ३ उश लह. ४ उ श चक्करपण, प व चक्क न. ५ कोष्ठकस्थोऽयं पाठ: प-य प्रत्योर्नोपलभ्यते । ६ उ श दढ. ७ उ जालप्पंजरिया, प जाड पिंजरिया, ब जाउपिंज्जरिया, श आलप्पजरिया उप सचामिए. ९ प रहछा, ब राहछा, शप्रतावतोऽये स्खलितः पाठः । १० उ ब्वायवियलिय, व घायत्रियलिया, श घायविरलिय. ११ उ वस्तुरंगणिमवगा, प व वरंगतुरंगणिहवण्णा, श वस्तुरंगणिवत्रणा,
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१७८ ॥
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