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________________ - ४. १६६ ] त्यो उसो [ ७३ बारसयसयसहस्सा अभंतरपारिसा सुरा होंति । चउदसय सय सहस्सा मज्झिमपरिसा समुद्दिट्ठा ॥ १५६ पोलसय सय सहस्सा बाहिरपरिसासुराण परिसंखा । सब्वे वि दिन्वरूचा णाणाविद्दपद्दरणाभरणा' ॥ १५७ तिण्ण वि परिसर कहिया एतो सत्ताणिया पवक्खामि । सोद्दम्मकप्पवासी इंदस्सर महाणुभावस्स ॥ १५८ वसभरहतुरयेमयगलणञ्चणगंधन्वभिच्चवग्गणं । सत्ताणीया दिट्ठा सत्तहि कच्छाहि संजुत्ता ॥ १५९ तुलसीदिसयसहस्सा [वैरवसभा संखकुंदसंकाला । पढमाए कच्छाए पुरदो गच्छेति लीकाहिं ॥ १५० सहसा ] या कोडी हवंांत वरवसभा | जासवणकुसुमवण्णा मणिरयणविहूसिया बिदिए || १६१ तिष्णेन य कोडीओ छत्तीसा ससस्स वरवसहा । णीलुप्पलसंकासा तदियाकंच्छम्मि णिडिट्ठा ॥ १६२ वेब य कोडीको वाइत्तरिसयसदस्स वरवसदा । मरगयमणिकिरणोहा चढत्थकच्छट्टिया जंति ॥ ११३ तेरह वह कोडीको चडदाला सबसहस्त्र वरवसदा । कणयणिमा विष्णेया पंचमकच्छहि णिदिट्ठा ॥ १३० छब्बीसा कोडीनो अट्ठासीदा य सबसहस्साणि । छट्ठर्मकच्छे दिट्ठा भिण्णंजणस कहा बसभा || १६५ तेवण्णा कोडीनो छातरि सबसदस्स बरवसभा | सत्तमकच्छे दिट्ठा किंसुयकुसुमप्पभा' या ॥ १६६ देव बारह लाख, मध्यम परिषद चौदह लाख और बाह्य पारिषद सोलह लाख प्रमाण कहे गये हैं । ये सब ही देव दिव्य रूपसे संयुक्त और नाना प्रकारके आयुधों एवं आभरणोंसे विभूषित होते हैं । १५६ - १५७ ॥ तीनों ही परिषदोंका कथन किया जा चुका है । अब यहसि आगे मद्दा प्रभावसे युक्त सौधर्म इन्द्रकी सात अनीकोका वर्णन करते हैं ॥ १५८ ॥ वृषभ, रथ, तुरंग, मदगल (हाथी), नर्तक, गन्धर्व और भृत्यवर्ग, इनकी सात कक्षास संयुक्त सात सेनायें कही गई हैं ॥ १५९ ॥ प्रथम कक्षामै शंख एवं कुंद पुष्पके सदृश धवल चौरासी लाख उत्तम वृषभ लीलापूर्वक आगे जाते हैं ॥ १६० ॥ द्वितीय कक्षा जपाकुसुमके सदृश वर्णवाले और मणि एवं रत्नोंसे विभूषित वे उत्तम वृषभ एक करोड़ अङ्गसठ लाख होते हैं ॥ १६९ ॥ तृतीय कक्षा में नील कमलके सदृश वर्णवाले उत्तम वृषम तीन करोड़ छत्तीस लाख कहे गये हैं ॥ १६२ ॥ चतुर्थ कक्षा में स्थित मरकत मणिकी किरणोंके समूह के समान कान्तिवाले उत्तम वृषभ छह करोड़ बहत्तर लाख होते हैं ॥ १६३ ॥ पंचम कक्षा में सुवर्णके सदृश बर्णवाले उत्तम वृषभ तेरह करोड़ चालीस लाख निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ १६४ ॥ छठी कक्षा में भिन्न अंजनके सदृश कान्तिवाले वृषभ छब्बीस करोड़ अठासी लाख कहे गये हैं ॥ १६५ ॥ सातवीं कक्षामें किंशुक कुठुमके समान प्रभावाले उत्तम वृषभ तिरेपन करोड़ छयत्तर लाख कहे गये समझना चाहिये ॥ १६६ ॥ उनके मध्य मध्यमें बजते हुए महा बादित्रों के १ उशपहरणावरणा, प ब यहरणावरणे. ५ उ तिणि, श विग ३ उश इंदस, व इंदरला. * या महाभावस्था. ५ प व वससरहरिय. ६ शविष्य ७ उ-शमत्योस्त्रुटितोऽयं कोष्ठकस्थः पाठः । ८ श ओटुम ९ प ब प्पहा. नंदी. १०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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