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जंबूदीवपण्णी
18. १२६
बासा च सहस्सा पंचसया जोषणा व उपया' । णवगादु वा सो मगसवर्ग' समुद्दिनं ॥ १२६ पंचेव' जोयणपया विस्थिष्णो रयणजाल किरणोहो । देवासुरिंदणिव हो जिणभवणविहूसिनो दिग्वो ॥ १२७ बेगाउदउध्विद्धा पंचधणुस्सय पमाणविस्थिण्णा । वणवेदी णिडिट्ठा णंदणत्रणसोमणस्त्राणं ॥ १२८ अवसेसाण वणाणं सव्त्राण गिरीण सव्वसरियाणं । उच्छेदो विक्खंभो एसेव कमो दु वेद।णं ॥ १२९ तत्तो' सोमणसाद। उडुं छत्तीसजोयणसहस्सा गंतूण पंडुकवणं होइ महातेयसंपणं ॥ १३० छज्जेोयणपरिहीणो पंचसया जोयणा य विस्थिष्णो । बहुविहरु गाउरो वरमंदर सिहरवणंडो ॥ १३१ पंडुकवणस्स मज्झे वेरुलियमया दु' चूलिया दिट्ठा' । मणिगणजकं तणिवा जोयण - लिीस उलूंगा ॥ १३२ बारह जोयण मूले मझे भट्ठे व जोयणा नेया । सिहरे चत्तारि हवे विक्खंभायामपरिसंखा ॥ १३३ मंदर महानगाणं बेदीणं चूलियाण कूडाणं । सब्वाण पब्वदाणं भवणःणं वरघराणं च ॥ १३४
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योजन ऊपर सौमनस वन कहा गया जानना चाहिये ॥ १२६ ॥ यह दिव्य वन पांच सौ योजन विस्तीर्ण, रत्नसमूहकी किरणमालासे संयुक्त, देवेन्द्र एवं असुरेन्द्रों के समूह से सहित, और जिनभवनों से विभूषित है ॥ १२७ ॥ नन्दन वन और सौमनस वनकी वनवेदी दो कोश ऊंची और पांच सौ धनुष प्रमाण विस्तीर्ण कही गई है ॥ १२८ ॥ शेष सत्र वनों, पर्वत और सत्र नदियोंकी वेदियोंकी उंचाई व विष्कम्भका यही क्रम जानना चाहिये ॥ १२९ ॥ सौमनस वनसे छत्तीस हजार योजन ऊपर जाकर महा तेजसे सम्पन्न पाण्डुक वन है ॥ १३० ॥ उत्तम मन्दर पर्वत के शिखर सम्बधी यह बन-खण्ड छह योजन कम पांच सौ ( ४९४ ) योजन विस्तीर्ण व बहुत प्रकार के प्रचुर वृक्षोंके समूह से सहित वनखण्डों से संयुक्त है ॥ १३१ ॥ पाण्डुक वनके मध्य में चमकते हुए मणिसमूहोंसे सहित और चालीस योजन ऊंची दीर्घ वैडूर्यमय चूलिका है ॥ १३२ ॥ इसके विष्कम्भ और श्रायामका प्रमाण मूळमें बारह योजन, मध्यमें आठ योजन, और शिखरपर चार योजन जानना चाहिये ॥ १३३ ॥ कटि ( मूत्रविस्तार ) और शिर ( शिखरविस्तार ) को परस्पर में घटाकर [ शेषको उत्सेबसे भाजित करनेपर जो लब्ध हो ] उतना भूमिकी अपेक्षा इनके विष्कम्भमें हानिका तथा मुखकी अपेक्षा वृद्धिका प्रमाण होता है । इसको अभीष्ट स्थानकी उंचाईसे गुणा करनेपर जो प्राप्त हो उसे मूलविस्तारमेंसे कम करने अथवा मुखमें मिला देनेपर अभीष्ट स्थानमें इच्छित विस्तारका प्रमाण होता है । इन करणगाथाओंके द्वारा मन्दर महापर्वतों, वेदियों, चूलिकाओं, कूटों,
१ श वाविडि २श उप्पनिया ३ प ब सोमणवाण ४ उ रा पंचेण ५ श सम्माण सम्वगिरीण. १ उश ससो. ७ ब पवरो. ८ उश वेतुलियमया घु, प व वेदलियमहा दु. १ ज श दिधा. १० वरम्बराणं, का वरम्यणाणं.
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