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४. १२५ )
त्यो उद्देसो
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सिसिरयरकरविणिग्गयेविभिण्णवर कुमुद कुसुमपउराभो । पवणवस चलियेणिम्मलत रंगरंगंत रमणाओ || गयणयरजुवई मज्जणत्रियत्रियधम्मिल्ल कुसुमणित्राओ । खपरैविलासिणि उरपर्दकुंकुमपंकेण कित्ताओ ॥ विज्जाहरवर सुंदरि जल कीडासराव मुद्दलाओ । उच्छलियदूर बहुजल पडायसंघारमणाभो ॥ ११८ वणवेदीजुत्तामो वरतोरणमंडियाओ सव्वाओ । सोहंति हुं वादीओ निम्मलसलिलेहिं पुण्णाओ ॥ ११९ दक्खिणदिसाविभागे सोइम्मिदस्स होंति वावीओ | उत्तरदिसाविभाए ईसादिस्त जायन्वा ॥ १२० बावीस होंति गेा तरंगसंघट्टेस गंभीरा । दिव्यामोयसुगंधा रयणुज्जलैकिरणविंजरिया ॥ १२१ बासट्टिजोयणाई बे कोसा वरघरा" समुत्तुंगा । सक्कोसा इगितीसा विक्खंभायाम गिट्ठिा ॥ १२२ तेषु घरेसु वि या णाणामणिविष्फुरंत किरणेसु । सीहासणा विचित्ता इंदाण सभा समुद्दिट्ठा १२३ इंदा सलोयवाला भच्छरसहिदा य वात्रिभवणेसु । कीडति पहिट्ठमणा पुष्वक्कर्येणिम्मलतवेण ॥ १२४ एवं सोमणसवणे वावीओ विमलसलिलपुष्णाभो । कंचणकूडा य तथा पासादा होति णायव्वा ॥ १२५
सुगन्धित जलसे परिपूर्ण, चन्द्रकिरणोंके निकलने से विकासको प्राप्त हुए प्रचुर उत्तम कुमुदकुसुमसे युक्त, पत्रनके प्रभावसे उठती हुई निर्मल तरंगों के चलनेसे रमणीय, विद्याधरयु- नियोंके स्नान करनेमें निकले हुए चोटीके फूलों के समूह से संयुक्त, विद्याधरविलासिनियों के उरस्थल से निकले हुए कुंकुमपंकसे लिप्त, विद्याधरों की श्रेष्ठ सुन्दरियों की जलक्रीड़ाके शब्द से मुखरित, दूर तक उछलते हुए बहुत से जलबिन्दुओंके संघातसे रमणीय, वन और वेदियों से युक्त, उत्तम तोरणोंसे मण्डित, और निर्मल जलसे परिपूर्ण होती हुई शोभायमान हैं ॥ ११५-११९ ॥ दक्षिणदिशा विभागमें सौधर्म इन्द्र की वापियां और उत्तरदिशा विभागम ईशान इन्द्रकी वापियां जाननी चाहिये ॥ १२० ॥ वापियों में तरंगों के टकरानेके शब्द से गम्भीर, दिव्य आमोदसे सुगन्धित और रत्नों की उच्च किरणोंसे पीत वर्ण हुए गृह बासठ योजन दो कोश ( ६२ ३ यो. ) इकतीस ( ३१ योजन प्रमाण कहा किरणोंसे सहित उन गृहों में भी विचित्र
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होते हैं ॥ १२१ ॥ इन उत्तम गृहोंकी उंचाई और विष्कम्भ तथा आयाम एक कोश सहित गया है || १२२ || नाना मणियोंकी प्रकाशमान सिंहासनोंसे युक्त इन्द्र की सभा कही गई है १२३ ॥ पूर्वकृत तपके प्रभावसे लोकपालें। और अप्सराओंसे सहित इन्द्र मनमें हर्षित होते हुए इन वापीभवनोंमें क्रीड़ा करते हैं ॥ १२४ ॥ इसी प्रकार सौमनस वनमें भी निर्मल जलसे परिपूर्ण वापियां, कंचनकूट तथा प्रासाद जानना चाहिये ॥ १२५ ॥ नन्दन वनसे बासठ हजार पांच सौ
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१ प ब सिसियरकरविणिग्गिय २ श विलिय. ३ उ गयणयरज्जुवई, प ब गहणयरजुवय, श गणय हुबई. ४ श लम्मिल्ल, ५३ श खयल, प व खर. ६ उ उस्यदु, प ब उखड, श उरपड. ७ उ श विवाहरिवरसुंदरि, प ब विवाहवसुंदरि उ शकील, प व कीला. ९ उ जलपडियसंन्याय, प व जलपडायसंघाय, श जलपाण्यसंध्याय १० उ सोहंति बहु. ११ श संवह. १२ श सुरंधा नयज्जलं. १३ श जोयणाए. १४ उ रा मख्वरा १५ उश न्वरेसु. १६ उ पुव्वकय, रा पुष्वकरा.
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