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जबूंदीवपण्णत्ती
[१.१०५
गंदणवणस्स कूडा पुवादिकमेण होति णायम्वा । जिणईदवरघराणं उभयप्पासेसु दो दो दु ॥ १०५ गिरिकृडवरगिहेस य दिब्वामलरूवदेहधारीमो । दिसकष्णकुमारीभो वसंति परिवारजुत्तामो ॥१०६ कण्णकुमारीण घरा कोसायामा तदद्धविक्खंभा । पण्णरस धगुसदाई उत्तुंगा कूडसिहरेसु ॥ १०७ मेषकरा मेघवदी सुमेघा तह मेघमालिणी णाम | तोयंधरा विचित्ता मणिमालिणि णिदिदा इदरों ॥ १०८ एदामो देवीओ भटेव य होति तेसु कूडेसु । अंदणवणस्स या पदाहिणे मंदरगिरिस्त ॥ १०९ उप्पलकुमुदा लिणा तह उप्पलउज्जला दु णामाओ । दक्खिणपुग्वे णेया वावीमो होति विमलामो . भिंगा भिंगणिभा तह कज्जलवर कज्जलाभ पवराभो । दक्षिणपश्छिमभागे जिम्मलजलपुण्णवावीमो ॥ सिरिभदा सिरिकता सिरिमहिदा तय होदि सिरिणिलया। अवरुत्तरम्मि भागणीलुप्पलकुमुदछण्णाभो ॥ लिणा य लिणगुम्मा कुमुदा कुमुदप्पभा य वावीभोपुवुत्तरम्मि भाग णायचा गंदणवणस्स ॥११३ पणुवीसा विक्खंभा पण्णासा जोयणा य आयामा । दस जोयणावगाढा वावीण पमाणपरिसंखा ॥ ११४ दिणयरमजहचुंबियवियसियसयवत्तसंडणिवहाभो । मपरंदरेणुपिंजरससिधवलसुगंधसलिलामो ॥१५
-.......................... वनके · उपर्युक्त कूट पूर्वादिक्रमसे जिनभवनोंके दोनों पार्श्वभागों में दो दो होते हैं, ऐसा मानना चाहियेना १०५ ।। गिरिके कूटें.पर स्थित गृहोंमें दिव्य व निर्मल रूपसे युक्त देहको धारण करनेवाली दिक्कन्याकुमारियां अपने परिवारसे युक्त होकर निवास करती हैं॥१०६ ॥ कूटशिखरोंपर स्थित उक्त दिक्कन्याकुमारियोंके गृह एक कोश आयत, इससे आधे विस्तृत, और पन्द्रह सौ धनुष प्रमाण ऊंचे हैं ॥१०७॥ मन्दरगिरि सम्बन्धी नन्दन वनके उन कुटोंपर प्रदक्षिणक्रमस मेघकरा, मेघवती, सुमेधा, मेघमालिनी, तोयंधा, विचित्रा, मणिमालिनी और अनिंदिता, ये आठ देवियां रहती हैं ॥ १०८-१०९॥ नन्दन वनके दक्षिण-पूर्वमें उत्पला, कुमुदा, नलिना व उत्पलोज्वला नामक निर्मल वापिकायें जाननी चाहिये ॥ ११० ॥ उसके दक्षिण-पश्चिम भागमें भंगा, भृगनिभा, कजला तथा कजलामा नामक निर्मल जलसे परिपूर्ण श्रेष्ठ वापियां हैं ॥ १११ ॥ उसके पश्चिमोत्तर भागमें नीलोत्पल और कुमुदोसे व्याप्त श्रीभद्रा, श्रीकान्ता, श्रीमहिता तथा श्रीनिलया नामक वापियां हैं ॥ ११२ ॥ नन्दन क्मके पूर्वोत्तर भागमें कुमुदोसे व्याप्त नलिना, नलिनगुल्मा, कुमुदा और कुमुदप्रभा नामक वापियां हैं ।। ११३ ॥ विष्कम्म पच्चीस योजन, आयाम पचास योजन, और अवगाद दश योजन, यह उन वापियों के प्रमाणकी संख्या है ॥ ११४॥ उक्त सब वापियां दिनकर (सूर्य) की किरणोंसे चुम्बित होकर विकासको प्राप्त हुए कमलखण्डोंके समूहसे सहित, परागकी धूलिसे पीत वर्णको प्राप्त हुए चन्द्रवत् धवल
। उ उमयपासेस, प य उमये पासेसु, -श उमणे पाससु. २ प ब वसति ३ पब पण्णरस धदाई. ४उश मणमालिणि इदिदा पहा. ५पब सिरिमहदा. ६ उ गुम्मा कुमुदप्पमा य वावीओ, श गुम्मा कुमुदा कुमुदप्पलकुमुदण्ण्णाओ. ७शप्रतावेतस्या गाथाया उत्तरार्द्ध त्रुटितम्. ८पब पण्णासा जोय आयामा १उ दिणयरमउहविय, श दियणरमओहचिविय. १. पब विया वियसियसत्तचत्त, श वियसियसियवस.
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